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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 50
    ऋषिः - भूमि देवता - प्रस्तार पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    39

    उच्छ्व॑ञ्चस्वपृथिवि॒ मा नि बा॑धथाः सूपाय॒नास्मै॑ भव सूपसर्प॒णा। मा॒ता पु॒त्रं यथा॑सि॒चाभ्येनं भूम ऊर्णुहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । श्व॒ञ्च॒स्व॒ । पृ॒थि॒व‍ि॒ । मा । नि । वा॒ध॒था॒: । सु॒ऽउ॒पा॒य॒ना । अ॒स्मै॒ । भ॒व॒ । सु॒ऽउ॒प॒स॒र्प॒णा । मा॒ता । पु॒त्रम् । यथा॑ । सि॒चा । अ॒भि । ए॒न॒म् । भू॒मे॒ । ऊ॒र्णु॒हि॒ ॥३.५०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उच्छ्वञ्चस्वपृथिवि मा नि बाधथाः सूपायनास्मै भव सूपसर्पणा। माता पुत्रं यथासिचाभ्येनं भूम ऊर्णुहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । श्वञ्चस्व । पृथिव‍ि । मा । नि । वाधथा: । सुऽउपायना । अस्मै । भव । सुऽउपसर्पणा । माता । पुत्रम् । यथा । सिचा । अभि । एनम् । भूमे । ऊर्णुहि ॥३.५०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पितरों और सन्तानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (पृथिवी) हे पृथिवी तू (उत् श्वञ्चस्व) फूलजा [फूल के समान खिल जा], (मानिबाधथाः) मत दबी जा, (अस्मै)इस [पुरुष] के लिये (सूपायना) अच्छे प्रकार पाने योग्य और (सूपसर्पणा) भलेप्रकार चलने योग्य (भव) हो। (यथा) जैसे (माता) माता (पुत्रम्) पुत्र को (सिचा)अपने आँचल से, [वैसे] (भूमे) हे भूमि ! (एनम्) इस [पुरुष] को [अपने रत्नों से] (अभि) सब ओर से (ऊर्णुहि) ढक ले ॥५०॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विज्ञानपूर्वक पृथिवी के पदार्थों और गुणों का प्रकाश करते हैं, वे अनेक रत्नों को पाकरऐसे सुखी होते हैं, जैसे माता से रक्षित बालक आनन्द पाता है ॥५०॥इस मन्त्र काउत्तरार्ध आ चुका है-अथ० १८।२।५० ॥

    टिप्पणी

    ५०−(उच्छ्वञ्चस्व) श्वचि गतौ-लोट्। उदेहि।पुलकिता भव (पृथिवि) (मा नि बाधथाः) संपीडिता मा भूः (सूपायना) सु+उप+अयना।सुखेन प्राप्तव्या (अस्मै) (भव) (सूपसर्पणा) सु+उप+सर्पणा। सुखेन गन्तव्या (माता) जननी (पुत्रम्) सन्तानम् (यथा) (सिचा) चेलाञ्चलेन (अभि) सर्वतः (एनम्)जिज्ञासुम् (भूमे) हे पृथिवि (उर्णुहि) आच्छादय स्वरत्नैः ॥

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    विषय

    सूपायना-सूपसर्पणा

    पदार्थ

    १. हे (पृथिवि) = अपनी सन्तानों की शक्तियों का विस्तार करनेवाली मातः! त उदासी को छोड़कर (उत्सु अञ्चस्व) = उत्तमता से गति करनेवाली हो। (मा निबाधथा:) = व्यर्थ के शोक से अपने को पीड़ित मत कर। (अस्मै) = अपनी इस सन्तान के लिए (सूपायना भव) = सुगमता से समीप प्राप्त होनेवाली हो। (स उपसर्पणा) = बच्चे तेरे समीप सुगता से प्राप्त हो सकें। २. हे (भूमे) = भूमिमातः! तु भी (एनम्) = साथी के चले जाने से दुःखित इस जन को (अभि ऊर्णुहि) = अभितः आच्छादित करनेवाली हो, अर्थात् इसे न तो खानपान की कमी हो, न ही इसके मानस उत्साह में कमी आये। इसको तू इसप्रकार सुरक्षित कर (यथा) = जैसे (माता) = माता (पुत्रम्) = पुत्र को (सिचा) = वस्त्र प्रान्त से ढककर सुरक्षित कर लेती है।

    भावार्थ

    माता शोक से अपने को पीड़ित न करती हुई बच्चों के पालन में आनन्द का अनुभव करे। वह बच्चों के लिए 'सूपायना व सूपसर्पणा' हो।

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    भाषार्थ

    (पृथिवि) हे पृथिवी ! जीवित प्राणियों के द्वारा (उच्छ्वञ्चस्व) तु उद्गति को प्राप्त हो, उन्नति को प्राप्त हो, (मा नि बाधथाः) उन्नति में तू विघ्न-बाधारूप न हो। (अस्मै) इस जीवित प्राणिवर्ग के लिये (सूपायना) उत्तमोत्तम भेंट देनेवाली (भव) तू बन। (सूपसर्पणा) उस के लिये सुगमता से विचरने योग्य बन। (माता यथा) माता जैसे (पुत्रम्) पुत्र को (सिचा) आञ्चल से आच्छादित करती है, वैसे तू जीवित प्राणिवर्ग को निज भेंटों द्वारा आच्छादित कर।

    टिप्पणी

    [पृथिवी में समुन्नति प्राणिवर्ग के द्वारा होती है। कृषि, उद्यान, सड़कें, यातायात के साधन, विविध प्रकार के मकान, व्यापार, डाक का आना-जाना, रेलें, तार, हवाईजहाज, नहरें आदि के कारण पृथिवी समुन्नत होती है। इस समुन्नति में प्राणिवर्ग ही कारण है। इस समुन्नति में विघ्न-बाधा के कारण हैं – अतिवर्षा और उसके द्वारा जलप्रवाह, अवर्षा और उसके द्वारा कृषि विनाश, भूचाल, आग्नेय पर्वतों का फटाव आदि। सूपायना= सु + उपायन (भेटें)। यह पृथिवी सोना, लोहा, तैल, अन्न, फल-फूल, विविध औषधियां, स्वच्छ जल, प्राणवायु आदि की भेंटें प्राणिवर्ग को दे रही हैं। सूपसर्पणा = सड़कों का निर्माण, तथा जङ्गलों को काटना– आदि द्वारा पृथिवी आसानी से विचरने योग्य हो जाती है। यह पृथिवी उपर्युक्त भेंटों द्वारा प्राणिवर्ग को आच्छादित कर रही है। अभ्यूर्णहि = अभि (सब प्रकार से) + ऊर्णुहि, ऊर्णुञ् आच्छादने। उच्छ्वञ्चस्व = उत् (उद्) + श्वचि (गतौ)।]

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    विषय

    स्त्री-पुरुषों के धर्म।

    भावार्थ

    हे (पृथिवि) भूमि ! तू (उत्-ष्वञ्चस्व) उन्नति को प्राप्त हो। ऊपर उठ। (मा नि बाधथाः) अपने ऊपर के निवासी प्रजा और राजा को पीड़ित मत कर। (अस्मै) इस उत्तम राजा के लिये (सूउपायना) उत्तम रीति से प्राप्त करने योग्य एवं उत्तम उपहार के समान और (सु-उपसर्पणा) उत्तम रीति से उपसर्पण करने वाली उसके शरण में आनेवाली होकर (भव) रह। हे (भूमे) सर्वाश्रय भूमे ! (माता पुत्रं यथा) जिस प्रकार माता पुत्र को प्रेम से अपना दूध पिलाती है उसी प्रकार तू (एम्) उस राजा को (सिच) सुखप्रद अन्नों से पूर्ण कर और (अभि ऊर्णूहि) सब प्रकार आच्छादित कर, सुरक्षित कर। यहां पृथिवी से पृथिवी और उसमें निवास करने वाली प्रजा दोनों का ग्रहण करना चाहिये।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘सुपवञ्चना’ इति ऋ०। (प्र०) ‘उच्मत्चस्व’, ‘विवाधिताः सूपवश्चना’ (च०) ‘भूमिवृणु’ इति तै० आ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः मन्त्रोक्ताश्च बहवो देवताः। ५,६ आग्नेयौ। ५० भूमिः। ५४ इन्दुः । ५६ आपः। ४, ८, ११, २३ सतः पंक्तयः। ५ त्रिपदा निचृद गायत्री। ६,५६,६८,७०,७२ अनुष्टुभः। १८, २५, २९, ४४, ४६ जगत्यः। (१८ भुरिक्, २९ विराड्)। ३० पञ्चपदा अतिजगती। ३१ विराट् शक्वरी। ३२–३५, ४७, ४९, ५२ भुरिजः। ३६ एकावसाना आसुरी अनुष्टुप्। ३७ एकावसाना आसुरी गायत्री। ३९ परात्रिष्टुप् पंक्तिः। ५० प्रस्तारपंक्तिः। ५४ पुरोऽनुष्टुप्। ५८ विराट्। ६० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। ६४ भुरिक् पथ्याः पंक्त्यार्षी। ६७ पथ्या बृहती। ६९,७१ उपरिष्टाद् बृहती, शेषास्त्रिष्टुमः। त्रिसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    O Mother Earth, wax and bloom and swell for this soul, pray do not suppress it, be kind as mother for the child, pleasant for it to walk upon and move forward. O Mother Earth, cover him with your protection as a mother covers the child with the hem of her sari.

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    Subject

    Bhumi : Earth

    Translation

    Swell thou up, O earth; do not press down; be to him easy of access, easy of approach; as a mother her son with her skirt, do thou, O earth, cover him. (of.Rg.X.18.11)

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    Translation

    Let this earth have and swell, let it not press in contraction and give any discomfort (to jiva), let it be easily accessible and of pleasant approach for this Jiva. Let this earth cover this Jiva as a mother wrap to cover her child with her skirt.

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    Translation

    O Earth, may thou prosper. Torment not the king and the people who dwell upon thee. Afford easy access to the king, be pleasant for his travels ! Just as a mother wraps her skirt about her child, so do thou protect the king with all thy food-products.

    Footnote

    See Rig, 10-18-11.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५०−(उच्छ्वञ्चस्व) श्वचि गतौ-लोट्। उदेहि।पुलकिता भव (पृथिवि) (मा नि बाधथाः) संपीडिता मा भूः (सूपायना) सु+उप+अयना।सुखेन प्राप्तव्या (अस्मै) (भव) (सूपसर्पणा) सु+उप+सर्पणा। सुखेन गन्तव्या (माता) जननी (पुत्रम्) सन्तानम् (यथा) (सिचा) चेलाञ्चलेन (अभि) सर्वतः (एनम्)जिज्ञासुम् (भूमे) हे पृथिवि (उर्णुहि) आच्छादय स्वरत्नैः ॥

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