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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 48
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    41

    ये स॒त्यासो॑हवि॒रदो॑ हवि॒ष्पा इन्द्रे॑ण दे॒वैः स॒रथं॑ तु॒रेण॑। आग्ने॑ याहिसुवि॒दत्रे॑भिर॒र्वाङ्परैः॒ पूर्वै॒रृषि॑भिर्घर्म॒सद्भिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । स॒त्यास॑: । ह॒वि॒:ऽअद॑: । ह॒वि॒:ऽपा: । इन्द्रे॑ण‍ । दे॒वै: । स॒ऽरथ॑म् । तु॒रेण॑ । आ । अ॒ग्रे॒ । या॒हि॒ । सु॒ऽवि॒दत्रे॑भि: । अ॒र्वाङ् । परै॑: । पूर्वै॑: । ऋषि॑ऽभि: । घ॒र्म॒सत्ऽभि॑: ॥३.४८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये सत्यासोहविरदो हविष्पा इन्द्रेण देवैः सरथं तुरेण। आग्ने याहिसुविदत्रेभिरर्वाङ्परैः पूर्वैरृषिभिर्घर्मसद्भिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । सत्यास: । हवि:ऽअद: । हवि:ऽपा: । इन्द्रेण‍ । देवै: । सऽरथम् । तुरेण । आ । अग्रे । याहि । सुऽविदत्रेभि: । अर्वाङ् । परै: । पूर्वै: । ऋषिऽभि: । घर्मसत्ऽभि: ॥३.४८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 48
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों और सन्तानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (सत्यासः)सत्यशील, (हविरदः) ग्राह्य अन्न खानेवाले, (हविष्पाः) देने-लेने योग्य पदार्थोंके रक्षक पुरुष (देवैः) विजयी पुरुषों के सहित (तुरेण) वेगवान् (इन्द्रेण) बड़ेऐश्वर्यवाले जन के साथ (सरथम्) एकरथ में [चलते हैं]। (अग्ने) हे विद्वान् ! (सुविदत्रेभिः) बड़े धनी, (परैः) श्रेष्ठ (पूर्वैः) पूर्वज, (घर्मसद्भिः) यज्ञमें बैठनेवाले, (ऋषिभिः) उन ऋषियों के साथ (अर्वाङ्) सन्मुख होकर (आ याहि) तू आ॥४८॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग, प्रतापीपुरुष के सहायक, शूरवीरों के नायक पूजनीय महापुरुषों से मिलकर सदा उन्नति काउपाय सोचें ॥४८॥

    टिप्पणी

    ४८−(सत्यासः) सत्याः। सत्यशीलाः (हविरदः) हविषां ग्राह्यान्नानांभक्षयितारः (हविष्पाः) हविषां दातव्यग्राह्यपदार्थानां रक्षकाः (इन्द्रेण)परमैश्वर्यवता पुरुषेण सह (देवैः) विजयिपुरुषैः सह (सरथम्) यथा तथा। समाने रथेवर्तमानाः (त्वरेण) त्वरमाणेन (अग्ने) हे विद्वन् (आयाहि) आगच्छ (सुविदत्रेभिः)बहुधनयुक्तैः (अर्वाङ्) अभिमुखः सन् (परैः) उत्कृष्टैः (पूर्वैः) पूर्वपुरुषैः।अन्यत् पूर्ववत्-म० ४७ ॥

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    विषय

    'सत्यवादी-सुविदत्र' पितरों के सम्पर्क में

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (सत्यास:) = सदा सत्य बोलनेवाले हैं। (हविरदः) = हवि को ही खानेवाले हैं और (हविष्याः) = हवि का ही पान करनेवाले हैं, अर्थात् जिनका खानपान हविरूप है-जो यज्ञशेष को ही खानेवाले हैं। (तुरेण:) = शत्रुओं का संहार करनेवाले इन्द्रेण सर्वशक्तिमान् प्रभु के साथ तथा (देवैः) = दिव्यगुणों के साथ (सरथम) = समान रथ में गति करते हैं। यह शरीर ही रथ है। इसे वे प्रभु के दिव्यगुणों का अधिष्ठान बनाते हैं। २. प्रभु कहते हैं कि हे अग्ने प्रगतिशील जीव! तू इन (सुविदत्रेभिः) = उत्तम ज्ञान के द्वारा त्राण करनेवाले, (परैः) = उत्कृष्ट जीवनवाले, (पूर्वैः) = अपना पूरण करनेवाले-न्यूनताओं को दूर करनेवाले, (ऋषिभिः) = [ऋष to kill] वासनाओं को विनष्ट करनेवाले (घर्मसद्भि) = यज्ञों में आसीन होनेवाले पितरों के सम्पर्क में रहता हुआ (अर्वाड़ आयाहि) = अपने हृदयदेश में हमारी और आनेवाला हो।

    भावार्थ

    हम सत्यवादी, यज्ञशेष का सेवन करनेवाले, प्रभु के साथ विचरनेवाले, ज्ञान के द्वारा रक्षण करनेवाले, उत्कृष्ट: न्यूनताशून्य जीवनवाले, वासनाओं का संहार करनेवाले, यज्ञशील पितरों के सम्पर्क में अपने जीवनों को भी इसी प्रकार का बनाते हुए प्रभु की ओर चलनेवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (सत्यासः) सत्य आचार-विचारवाले, (हविरदः) हविष्यान्नों के खानेवाले, (हविष्पाः) हविष्य रसों के पीनेवाले (ये) जो पितर (तुरेण) शीघ्र कार्यकारी (इन्द्रेण) सम्राट् के साथ, तथा (देवैः) देवकोटि के राज्याधिकारियों के साथ (सरथम्) एक रथ में बैठ कर जाते-आते हैं, उन (सुविदत्रेभिः) सुविज्ञ (परैः) उत्कृष्ट (पूर्वैः) सद्गुणों में परिपूर्ण (घर्मसद्भिः) तपोनिष्ठ (ऋषिभिः) ऋषियों के साथ (अग्ने) हे उनके अग्रणी नेता ! (अर्वाङ्) आप हम गृहस्थों की ओर (आ याहि) आया कीजिये।

    टिप्पणी

    [इन्द्रः= सम्राट् (यजु० ४।३७)। देवैः = राज्याधिकारीवर्ग देवकोटि का होना चाहिये, आसुर वा राक्षसकोटि का नहीं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Those who are dedicated to the pursuit of truth, receive and consume holy offerings of yajnic inputs and develop, refine, protect and further promote the holy inputs, and move along with Indra, divine omnipotence and energies of nature at a velocity faster than anything else, with these generous performers and pioneers, sages and seers, and visionary creators ancient and modern steeped in the science of yajna, heat and light, O Agni, leading light of life and path maker of the future, come to us.

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    Translation

    The true, oblation-eating, oblation-drinking (ones) that (go) in alliance with the gods, with strong Indra - come hither ward, O Agni, with the beneficent, exalted, ancient seers, sitting at the gharma. (of. Rg-X.I5.9)

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    Translation

    Come along to us, O preceptor, with those fore-fathers who are well-experienced, excellent, accomplished in knowledge and shining with radiance, and with those who are truthful, eaters of grain, preservers of grains and who travel with the man of supreme power and wise statesmen in the same conveyance. [N. B.—The verses 49, 50 and 51 under interpretation, seem to be concerned with the primitive state when creature come to emergence. All the living beings in their matured forms come out of the womb of earth. This creation takes place under God's preservation without co-habitation of parental pair. The procreation from parental pairs starts thereafter.]

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    Translation

    Come Acharya, with highly learned persons, with excellent artists, with sages glittering like the Sun, who are truthful, eat nice, pure food, protect estables, and travel with the rulers and a strong-foe-killing warrior!

    Footnote

    See Rig, 10-15-10

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४८−(सत्यासः) सत्याः। सत्यशीलाः (हविरदः) हविषां ग्राह्यान्नानांभक्षयितारः (हविष्पाः) हविषां दातव्यग्राह्यपदार्थानां रक्षकाः (इन्द्रेण)परमैश्वर्यवता पुरुषेण सह (देवैः) विजयिपुरुषैः सह (सरथम्) यथा तथा। समाने रथेवर्तमानाः (त्वरेण) त्वरमाणेन (अग्ने) हे विद्वन् (आयाहि) आगच्छ (सुविदत्रेभिः)बहुधनयुक्तैः (अर्वाङ्) अभिमुखः सन् (परैः) उत्कृष्टैः (पूर्वैः) पूर्वपुरुषैः।अन्यत् पूर्ववत्-म० ४७ ॥

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