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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 60
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्र्यवसाना षट्पदा जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    50

    शं॑ ते नीहा॒रोभ॑वतु॒ शं ते॑ प्रु॒ष्वाव॑ शीयताम्। शीति॑के॒ शीति॑कावति॒ ह्लादि॑के॒ह्लादि॑कावति। म॑ण्डू॒क्यप्सु शं भु॑व इ॒मं स्वग्निं श॑मय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । ते॒ । नी॒हा॒र: । भ॒व॒तु॒ । शम् । ते॒ । प्रु॒ष्वा । अव॑ । शी॒य॒ता॒म् । शीति॑के । शीति॑काऽवति । ह्लादि॑के । ह्लादि॑काऽवति । म॒ण्डू॒की । अ॒प्ऽसु । शम् । भु॒व॒: । इ॒मम् । सु । अ॒ग्निम् । श॒म॒य॒ ॥३.६०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं ते नीहारोभवतु शं ते प्रुष्वाव शीयताम्। शीतिके शीतिकावति ह्लादिकेह्लादिकावति। मण्डूक्यप्सु शं भुव इमं स्वग्निं शमय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम् । ते । नीहार: । भवतु । शम् । ते । प्रुष्वा । अव । शीयताम् । शीतिके । शीतिकाऽवति । ह्लादिके । ह्लादिकाऽवति । मण्डूकी । अप्ऽसु । शम् । भुव: । इमम् । सु । अग्निम् । शमय ॥३.६०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 60
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    घर की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) तेरे लिये (नीहारः) कुहरा (शम्) शान्तिदायक (भवतु) होवे, (ते) तेरे लिये (प्रुष्वा) वृष्टि (शम्) शान्ति से (अव शीयताम्) नीचे गिरे। (शीतिके) हे शीतल स्वभाववाली (शीतिकावति) हे शीतल क्रियाओंवाली (ह्लादिके) हे आनन्द देनेवाली (ह्लादिकावति)हे आनन्दयुक्त क्रियाओंवाली ! [प्रजा अर्थात् प्रत्येक स्त्री-पुरुष] (अप्सु)जल में (मण्डूकी) मेंडुकी [के समान] तू (शम्) शान्त (भुवः) हो, और (इमम्) इस (अग्निम्) आग [महासन्ताप] को (सु) अच्छे प्रकार (शमय) शान्त कर ॥६०॥

    भावार्थ

    सब स्त्री-पुरुषकुहरे, वृष्टि आदि का सहन कर के और जल में मेंडुकी के समान शान्त स्वभाव औरप्रसन्नचित्त रहकर सन्ताप अर्थात् विघ्नों का नाश करें ॥६०॥इस मन्त्र का भाग (शीतिके.... शमय) कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१६।१४ ॥

    टिप्पणी

    ६०−(शम्) सुखकरः (ते)तुभ्यम् (नीहारः) घनीभूतशिशिरम् (भवतु) (शम्) शान्तिप्रदः (ते) (प्रुष्वा)शीङ्क्रुशिरुहि०। उ० ४।११४। प्रुष स्नेहनसेवनपूरणेषु-क्वनिप्। वृष्टिपातः (अवशीयताम्) शीङ् स्वप्ने-भावे लोट्। अधो वर्तताम्। अधः पततु (शीतिके) स्वार्थेकन्, टाप्। उदीचामातः स्थाने यकपूर्वायाः। पा० ७।३।४६। अत इत्त्वम्। हेशीतलस्वभावे प्रजे (शीतिकावति) हे शीतलक्रियायुक्ते (ह्लादिके) ह्लादीसुखे-ण्वुल्। प्रत्ययस्थात् कात्पूर्वस्यात इदाप्यसुपः। पा० ७।३।४४। अतइत्त्वम्। हे सुखकारिणि (ह्लादिकावति) हे सुखवतीक्रियायुक्ते (मण्डूकी) मण्डूक-स्त्री यथा (अप्सु) जलेषु (शम्) शान्ता (भुवः) लेटि रूपम्। भवेः (इमम्) (सु)सुष्ठु (अग्निम्) सन्तापम्। विघ्नम् (शमय) शान्तं कुरु ॥

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    विषय

    मण्डूकपर्णी

    पदार्थ

    २.है पुरुष! (ते) = तेरे लिए (नीहारः शं भवतु) = कोहरा शान्ति देनेवाला हो। (पुष्वा) = जल बिन्दुओं के फुहार भी (ते) = तेरे लिए (शं) = शान्तिकर होकर (अवशीयताम्) = भूमि पर गिरें। हे (शीतिके) = शीतवीर्य ओषधे! (शीतिकावति) = तू शीतवीर्यवाली होती हुई शरीर से उत्तेजना को दूर करके शान्ति को जन्म देती है। हे (ह्लादिकावति) = शरीर में उत्तम धातुओं को जन्म देकर अह्राद को बढ़ानेवाली (ह्लादिके) = हादिका नामवाली ओषधे! तू (मण्डूकी) = मण्डूकी है-शरीर को उत्तम धातुओं से मण्डित करनेवाली है। २. तू (अप्सु) = रेतःकणों के निमित्त (शंभुवः) = शान्ति को पैदा करनेवाली हो। सब प्रकार की उत्तेजना को समाप्त करके तू रेत:कणों के रक्षण का साधन बन। (इमम् अग्निं सुशमय) = तू इस कामानि को शान्त करनेवाली हो। कामाग्नि की शान्ति के द्वारा ही तू रेत:कणों में उबाल को समाप्त करेगी और इसप्रकार रेत:कणों का रक्षण करने में सहायक बनेगी। सुरक्षित रेत:कण शरीर को 'स्वास्थ्य-नैर्मल्य व ज्ञानदीति' से अलंकृत करेंगे।

    भावार्थ

    हमारे लिए नीहार व जलबिन्दुप्रपात शान्तिकर हों। 'मण्डूकी' नामक ओषधि उत्तेजना को दूर करके हमें शान्त बनाए। उत्तम धातुओं को जन्म देकर हमें आनन्दयुक्त करे। हमें रेत:कणों के रक्षण के द्वारा 'स्वास्थ्य, नैर्मल्य व ज्ञानदीति' से मण्डित करनेवाली यह 'मण्डूकी' इस अन्वर्थ नामवाली हो।

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    भाषार्थ

    हे शवाग्नि ! (ते) तुझे (नीहारः) कोहरा (शम् भवतु) शान्त करे= ठण्डा कर दे। (प्रुष्वा) वृष्टिजल (ते) तुझे (शम्) शान्त करे और (अवशीयताम्) मेघ से नीचे गिरकर तुझे आवृत करदे। (शीतिकावति) हे शीतल कमलिनियों वाली (शीतिके) शीतल सरसी ! (ह्लादिकावति) हे आह्लाददायक कमलिनियों वाली (ह्लादिके) आह्लाद देनेवाली सरसी ! (हमम् अग्निम्) इस शवाग्नि को (सु) अच्छे प्रकार (शमय) तू शान्त कर दे। (अप्सु) जलों में रहनेवाली (मप्डूकि) हे मण्डूकी! तू भी (शं भुवः) अग्नि को शान्त करनेवाली बन। [शवाग्नि को शान्त करने तथा उस समग्र स्थान को सुरम्य बनाने के लिये वहां तालाब बनवा कर उसे सजल करने का विधान किया है। मण्डूकी के वर्णन द्वारा यह सूचित किया है कि मण्डूकी-संन्तति के जीवित रहने के लिये उस तालाब को सदा जल पूरित रखना चाहिये।]

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    विषय

    स्त्री-पुरुषों के धर्म।

    भावार्थ

    हे पुरुष ! (ते) तेरे लिये (नीहारः) नीहार, कोहरा (शं) सुखकारक (भवतु) हो। (प्रुष्वा) जलबिन्दु के फुहार भी (ते) तेरे लिये (शम्) सुखकारी रूप से (अव शीयताम्) भूमि पर आवें। हे (शीतिके) शीत गुण वाली लते ! हे (शीतिकावति) शीतगुण वाली लता से युक्त भूमे और (ह्लादिके) आह्लाद, चित्त में हर्ष उत्पन्न करने वाली लते ! और हे (ह्लादिकावति) हर्ष उत्पन्न करने वाली ओषधियों से युक्त भूमे ! तू (मण्डूकी) मण्डूकी या मेंढ़की के समान जल में डूबी रहकर तू सदा (शंभुवः) कल्याणकारी हो और (इमम् अग्निम्) इस जीव रूप अग्नि को (सु शमय) भली प्रकार शान्त कर।

    टिप्पणी

    ‘मण्डूक्यासु संगमः’ (च०) ‘इमं स्वग्नि हर्षय’ इति ऋ०। ‘शंभव’ इति सायणाभिमतः। (च०) ‘ह्लादुके ह्लादुकावति’ (प्र०) ‘नीहारो वर्षतु’, ‘शुमुप्रुष्वा’ इति तै० आ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः मन्त्रोक्ताश्च बहवो देवताः। ५,६ आग्नेयौ। ५० भूमिः। ५४ इन्दुः । ५६ आपः। ४, ८, ११, २३ सतः पंक्तयः। ५ त्रिपदा निचृद गायत्री। ६,५६,६८,७०,७२ अनुष्टुभः। १८, २५, २९, ४४, ४६ जगत्यः। (१८ भुरिक्, २९ विराड्)। ३० पञ्चपदा अतिजगती। ३१ विराट् शक्वरी। ३२–३५, ४७, ४९, ५२ भुरिजः। ३६ एकावसाना आसुरी अनुष्टुप्। ३७ एकावसाना आसुरी गायत्री। ३९ परात्रिष्टुप् पंक्तिः। ५० प्रस्तारपंक्तिः। ५४ पुरोऽनुष्टुप्। ५८ विराट्। ६० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। ६४ भुरिक् पथ्याः पंक्त्यार्षी। ६७ पथ्या बृहती। ६९,७१ उपरिष्टाद् बृहती, शेषास्त्रिष्टुमः। त्रिसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Let the fog and mists be cool and comfortable to you. Let rain showers come cool and refreshing to you for peace. O cool and refreshing herbs and plants, O happy and delightful people in quality of mind and in response and vibrations, be calm, happy and comfortable in home life as a frog in cool comfortable water and calm this heat and fire of the mind and body.

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    Translation

    Let the mist be weal for thee; let the frost fall down (as) weal for thee; O cool one, possessing cool ones; mayest thou be with weal a she-frog in the waters; kindly pacify thou this fire.

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    Translation

    O man, may the frost be sweet for you and may auspicious rain come down for you. Let the herbaceous creeper of cool nature and cool effect, the healing plant of pleasant nature and pleasant effect, like female frog in the water, be pleasant for you and calm the heat and burning of your body.

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    Translation

    Let the hoar-frost be sweet to thee, sweetly on thee the rain descend! O calm, cool subjects, tranquilin nature, thou pleasure-giving subjects, full of joyous acts, allay obstacles, just as water keeps the female frog cool.

    Footnote

    See Rig, 10-16-14.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६०−(शम्) सुखकरः (ते)तुभ्यम् (नीहारः) घनीभूतशिशिरम् (भवतु) (शम्) शान्तिप्रदः (ते) (प्रुष्वा)शीङ्क्रुशिरुहि०। उ० ४।११४। प्रुष स्नेहनसेवनपूरणेषु-क्वनिप्। वृष्टिपातः (अवशीयताम्) शीङ् स्वप्ने-भावे लोट्। अधो वर्तताम्। अधः पततु (शीतिके) स्वार्थेकन्, टाप्। उदीचामातः स्थाने यकपूर्वायाः। पा० ७।३।४६। अत इत्त्वम्। हेशीतलस्वभावे प्रजे (शीतिकावति) हे शीतलक्रियायुक्ते (ह्लादिके) ह्लादीसुखे-ण्वुल्। प्रत्ययस्थात् कात्पूर्वस्यात इदाप्यसुपः। पा० ७।३।४४। अतइत्त्वम्। हे सुखकारिणि (ह्लादिकावति) हे सुखवतीक्रियायुक्ते (मण्डूकी) मण्डूक-स्त्री यथा (अप्सु) जलेषु (शम्) शान्ता (भुवः) लेटि रूपम्। भवेः (इमम्) (सु)सुष्ठु (अग्निम्) सन्तापम्। विघ्नम् (शमय) शान्तं कुरु ॥

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