अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 48
सूक्त - भृगुः
देवता - अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त
अ॑न॒ड्वाहं॑ प्ल॒वम॒न्वार॑भध्वं॒ स वो॒ निर्व॑क्षद्दुरि॒ताद॑व॒द्यात्। आ रो॑हत सवि॒तुर्नाव॑मे॒तां ष॒ड्भिरु॒र्वीभि॒रम॑तिं तरेम ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न॒ड्वाह॑म् । प्ल॒वम् । अ॒नु॒ऽआर॑भध्वम् । स : । व॒: । नि: । व॒क्ष॒त् । दु॒:ऽइ॒तात् । अ॒व॒द्यात् । आ । रो॒ह॒त॒ । स॒वि॒तु: । नाव॑म् । ए॒ताम् । ष॒टऽभि: । उ॒र्वीभि॑: । अम॑तिम् । त॒रे॒म॒ ॥२.४८॥
स्वर रहित मन्त्र
अनड्वाहं प्लवमन्वारभध्वं स वो निर्वक्षद्दुरितादवद्यात्। आ रोहत सवितुर्नावमेतां षड्भिरुर्वीभिरमतिं तरेम ॥
स्वर रहित पद पाठअनड्वाहम् । प्लवम् । अनुऽआरभध्वम् । स : । व: । नि: । वक्षत् । दु:ऽइतात् । अवद्यात् । आ । रोहत । सवितु: । नावम् । एताम् । षटऽभि: । उर्वीभि: । अमतिम् । तरेम ॥२.४८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 48
भाषार्थ -
(अनड्वाहम्) संसाररूपी शकट का वहन करने वाली, (प्लवम्) भवसागर से तैराने वाली नौका रूप परमेश्वर का (अनु) निरन्तर (आरभध्वम्) आलम्बन लो, (सः) वह (वः) तुम्हारा (निर्वक्षत्) निर्वहन करेगा (अवद्यात्) गर्ह्य अर्थात् निन्दनीय (दुरितात्) तथा दुष्परिणामी पाप से। (सवितुः) संसार के उत्पादक परमेश्वर रूपी (एतां नावम्) इस नौका पर (आ रोहत) आरोहण करो ताकि (षड्भिः) छः (उर्वीभिः) विस्तृत षट्-सम्पत्ति रूपी नौकाओं द्वारा (अमतिम्) अध्यात्म-अज्ञानरूपी नद को (तरेम) हम तैर जांय।
टिप्पणी -
[अनड्वाहम्; अनस् =शकट, उस का वहन करने वाला, अर्थात् संसार रूपी शकट का वहन करने वाला परमेश्वर। प्लवम्= नौका। परमेश्वर को ब्रह्मोडुप१ भी कहा है, अर्थात् ब्रह्म रूपी डोंगी या नौका (श्वेता० उप० अध्या० २, खं. ८)। सवितुः नावम्= सविता रूपी नौका (विकल्पे षष्ठी)। भवसागर से तैराने वाली नौका है परमेश्वर, और जिस अध्यात्म-अज्ञानरूपी नद में हम गोते खा रहे हैं, या डूबे जा रहे हैं, उस अज्ञानरूपी नद से तैराने वाली हैं षट्-सम्पत्ति रूपी छः नौकाएँ२]। [१. "ब्रह्मोडुपेन प्रतरेत विद्वान् स्रोतांसि सर्वाणि भयावहानि"। २. एक सात्त्विक मन और सात्त्विक ५ ज्ञानेन्द्रिया रूपी नौकाएं।]