अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
सूक्त - भृगुः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त
न॒डमा रो॑ह॒ न ते॒ अत्र॑ लो॒क इ॒दं सीसं॑ भाग॒धेयं॑ त॒ एहि॑। यो गोषु॒ यक्ष्मः॒ पुरु॑षेषु॒ यक्ष्म॒स्तेन॒ त्वं सा॒कम॑ध॒राङ्परे॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठन॒डम् । आ । रो॒ह॒ । न । ते॒ । अत्र॑ । लो॒क: । इ॒दम् । सीस॑म् । भा॒ग॒ऽधेय॑म् । ते॒ । आ । इ॒हि॒ । य: । गोषु॑ । यक्ष्म॑: । पुरु॑षेषु । यक्ष्म॑: । तेन॑ । त्वम् । सा॒कम् । अ॒ध॒राङ् । परा॑ । इ॒हि॒ ॥२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
नडमा रोह न ते अत्र लोक इदं सीसं भागधेयं त एहि। यो गोषु यक्ष्मः पुरुषेषु यक्ष्मस्तेन त्वं साकमधराङ्परेहि ॥
स्वर रहित पद पाठनडम् । आ । रोह । न । ते । अत्र । लोक: । इदम् । सीसम् । भागऽधेयम् । ते । आ । इहि । य: । गोषु । यक्ष्म: । पुरुषेषु । यक्ष्म: । तेन । त्वम् । साकम् । अधराङ् । परा । इहि ॥२.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
हे अग्नि ! (नडम्) नड पर (आ रोह) तू आरोहण कर, (अत्र) इस नड पर (ते) तेरा (लोकः न) घर नहीं, (इदं सीसम्) यह सिक्का (ते) तेरा (भागधेयम्) भाग है, (एहि) तू आ। (यः) जो (गोषु यक्ष्मः) गौओं में यक्ष्मरोग है, (पुरुषेषु यक्ष्मः) और पुरुषों में यक्ष्मरोग है (तेन साकम्१) उस यक्ष्म के साथ (त्वम्) हे अग्नि ! तू (अधराङ्) नीचे आ, (परेहि) और परे चली जां।
टिप्पणी -
[वर्णन कविता के ढंग का है। अभिप्राय है सीस अर्थात् सिक्के की भस्म का निर्माण। सीस भस्म के निर्माण के लिये नड अर्थात् नड़े की आग चाहिये। नड (Reed) दलदली भूमि में पैदा होता है। सीस शीघ्र पिघल जाता है इसलिये तीव्र ज्वाला न चाहिये, नड की अल्पकालिक और नर्म ज्वाला सीस भस्म के लिये उपयुक्त है। सीसभस्म यक्ष्मरोग की औषध है। नड पर अग्नि देर तक जलती न रहनी चाहिये, इसे "न ते अत्र लोकः" द्वारा सूचित किया है। चन्द्रराज भण्डारी विशारद द्वारा "वनौषधि-चन्द्रोदय" की हिन्दी टीका में, सीस के सम्बन्ध में निम्नलिखित उद्धरण विशेष प्रकाश डालता है— "हिन्दी सीसा, नाग। अँग्रेजी Lead। लेटिन Glumbum। जो सीसा आग पर रखने से शीघ्र गल जाय, तोड़ने से काला और भीतर उज्ज्वल हो और बाहर से काला हो वह उत्तम होता है। सीसा क्षयरोग, वातविकार, गुल्म, पाण्डुरोग, भ्रम, क्रिमि, कफ, शूल, प्रमेह, खांसी, संग्रहणी और गुदा के रोगों में लाभदायक होता है। यह जीवन-शक्तिवर्धक, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला, बलवर्द्धक होता है। इसे मन्दाग्नि में पकाएं। सोंठ के चूर्ण और पुराने गुड़ के साथ नागभस्म अर्थात् सीसाभस्म खाने से सिर का दर्द और कमर का दर्द मिटता है"] [१. तेन साकम् = यक्ष्मरोग तथा नड़ की अग्नि का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध दर्शाने के लिये कहा है कि नड पर की अग्नि के शान्त होते ही [निर्मित सीसभस्म के सेवन से] यक्ष्म रोग भी शीघ्र शान्त हो जायगा, अर्थात् नड पर से अग्नि के उतरते ही मानो यक्ष्म का भी निवारण हो जायगा। इस द्वारा सीसभस्म की अद्भुत शक्ति को सूचित किया हैं।]