अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 22
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - जगती
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
पृ॑थि॒वीं त्वा॑ पृथि॒व्यामा वे॑शयामि त॒नूः स॑मा॒नी विकृ॑ता त ए॒षा। यद्य॑द्द्यु॒त्तं लि॑खि॒तमर्प॑णेन॒ तेन॒ मा सु॑स्रो॒र्ब्रह्म॒णापि॒ तद्व॑पामि ॥
स्वर सहित पद पाठपृ॒थि॒वीम् । त्वा॒ । पृ॒थि॒व्याम् । आ । वे॒श॒या॒मि॒ । त॒नू: । स॒मा॒नी । विऽकृ॑ता । ते॒ । ए॒षा । यत्ऽय॑त् । द्यु॒त्तम् । लि॒खि॒तम् । अर्प॑णेन । तेन॑ । मा । सु॒स्रो॒: । ब्रह्म॑णा । अपि॑ । तत् । व॒पा॒मि॒ ॥३.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
पृथिवीं त्वा पृथिव्यामा वेशयामि तनूः समानी विकृता त एषा। यद्यद्द्युत्तं लिखितमर्पणेन तेन मा सुस्रोर्ब्रह्मणापि तद्वपामि ॥
स्वर रहित पद पाठपृथिवीम् । त्वा । पृथिव्याम् । आ । वेशयामि । तनू: । समानी । विऽकृता । ते । एषा । यत्ऽयत् । द्युत्तम् । लिखितम् । अर्पणेन । तेन । मा । सुस्रो: । ब्रह्मणा । अपि । तत् । वपामि ॥३.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 22
भाषार्थ -
(त्वा पृथिवीम्) तुझ पृथिवी रूप को (पृथिव्याम् आवेशयामि) पृथिवी पर मैं स्थापित करता हूं, (तनूः समानी) [तुम दोनों का] स्वरूप समान है, (एषा) यह [उखा तथा कुम्भी, मन्त्र २३] (ते) हे पृथिवी! तेरा (बिकृता) विकृत स्वरूप है। [हे उखा तथा कुम्भो !] (यत् यत्) जो-जो तुम्हारा भाग (द्युत्तम्) अग्नि द्वारा जला है, तथा (अर्पणेन) खुर्चने द्वारा (लिखितम्) क्षत हुआ है (तेन) उस से (सुस्रोः मा) तू स्रवित न हो, चू मत, (तद् अपि) उस को भी (ब्रह्मणा) वेदानुसार (वपामि) ठीक कर देता हूं।
टिप्पणी -
[मन्त्र २३ में उखा अर्थात् अंगीठी, तथा कुम्भी अर्थात् तण्डुल पकाने की हण्डिया का वर्णन हुआ है। ये दोनों पृथिवी अर्थात् मिट्टी के ही विकृत स्वरूप है। है ये तीनों अर्थात् पृथिवी, उखा और कुम्भी समानरूप। उखा और कुम्भी को अग्नि में पकाया जाता है। इस का निर्देश "द्युत्तम्" द्वारा किया है (द्युत् दीप्तौ)। तथा इस से पूर्व खर्च कर उखा और कुम्भी पर कुछ चित्रकारी की जाती है जिसे कि "लिखितम्" द्वारा निर्दिष्ट किया है। लेप द्वारा इन्हें लीप दिया जाता है ताकि ये सुन्दर रूप हो जांए, और तण्डुल पकाते समय कुम्भी से जल स्रवित न हो]