अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
यं वां॑ पि॒ता पच॑ति॒ यं च॑ मा॒ता रि॒प्रान्निर्मु॑क्त्यै॒ शम॑लाच्च वा॒चः। स ओ॑द॒नः श॒तधा॑रः स्व॒र्ग उ॒भे व्याप॒ नभ॑सी महि॒त्वा ॥
स्वर सहित पद पाठयम् । वा॒म् । पि॒ता । पच॑ति । यम् । च॒ । मा॒त । रि॒प्रात् । नि:ऽमु॑क्त्यै । शम॑लात् । च॒ । वा॒च: । स: । ओ॒द॒न: । श॒तऽधा॑र: । स्व॒:ऽग: । उ॒भे इति॑ । वि । आ॒प॒ । नभ॑सी॒ इति॑ । म॒हि॒ऽत्वा ॥३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यं वां पिता पचति यं च माता रिप्रान्निर्मुक्त्यै शमलाच्च वाचः। स ओदनः शतधारः स्वर्ग उभे व्याप नभसी महित्वा ॥
स्वर रहित पद पाठयम् । वाम् । पिता । पचति । यम् । च । मात । रिप्रात् । नि:ऽमुक्त्यै । शमलात् । च । वाच: । स: । ओदन: । शतऽधार: । स्व:ऽग: । उभे इति । वि । आप । नभसी इति । महिऽत्वा ॥३.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(रिप्रात्) पाप से (च वाचः शमलात्) और वाणी के मल से (निर्मुक्त्यै) छुटकारे के लिये, हे पुत्र और पुत्री ! (वाम्) तुम दोनों का (पिता, यम्, पचति) पिता जिस ओदन नामक परमेश्वर को [निज जीवन में योगाभ्यास द्वारा] परिपक्व करता है, (यं च माता) और जिसे तुम्हारी माता परिपक्व करती है, (सः) वह ओदन नामक परमेश्वर (शतधारः) सैकड़ों का धारण-पोषण करता, या सैकड़ों आनन्द धाराओं को प्रवाहित करता (स्वर्गः) और विशिष्ट सुख प्राप्त कराता है। (महित्वा) निज महिमा से (उभे नभसी) वह दोनों भूलोक और द्युलोक में (व्याप) व्याप्त है।
टिप्पणी -
[रिप्रम् = रीयते तद् रिप्रम, कुत्सितं "पापम्" (उणा० ५।५५, महर्षि दयानन्द)। शमलम् =शम + अलम्, सुखशान्ति को समाप्त करने वाला वाचिक मल, मिथ्या भाषण, दुर्भाषण, अति भाषण आदि। मन्त्र के वर्णन द्वारा स्पष्ट है कि मन्त्र ४ और ५ में ओदन द्वारा परमेश्वर का वर्णन है। यह दर्शाने के लिये कि हम जैसे शारीरिक भूख की शान्ति के लिये प्राकृतिक ओदन का सेवन करते हैं, वैसे अध्यात्मिक भूख की शान्ति के लिये, तथा मानसिक पाप और वाचिक मल से मुक्ति पाने के लिये अध्यात्मिक ओदन का भी सेवन प्रतिदिन करना चाहिये। गृहजीवन में जिन के माता पिता परमेश्वरोपासना में रत होंगे उन की सन्तानें भी आस्तिक बन जायेंगी]।