अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 49
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
प्रि॒यं प्रि॒याणां॑ कृणवाम॒ तम॒स्ते य॑न्तु यत॒मे द्वि॒षन्ति॑। धे॒नुर॑न॒ड्वान्वयो॑वय आ॒यदे॒व पौरु॑षेय॒मप॑ मृ॒त्युं नु॑दन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठप्रि॒यम् । प्रि॒याणा॑म् । कृ॒ण॒वा॒म॒ । तम॑: । ते । य॒न्तु॒ । य॒त॒मे । द्वि॒षन्ति॑ । धे॒नु: । अ॒न॒ड्वान् । वय॑:ऽवय: । आ॒ऽयत् । ए॒व । पौरु॑षेयम् । अप॑ । मृ॒त्युम् । नु॒द॒न्तु॒॥३.४९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रियं प्रियाणां कृणवाम तमस्ते यन्तु यतमे द्विषन्ति। धेनुरनड्वान्वयोवय आयदेव पौरुषेयमप मृत्युं नुदन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठप्रियम् । प्रियाणाम् । कृणवाम । तम: । ते । यन्तु । यतमे । द्विषन्ति । धेनु: । अनड्वान् । वय:ऽवय: । आऽयत् । एव । पौरुषेयम् । अप । मृत्युम् । नुदन्तु॥३.४९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 49
भाषार्थ -
(प्रियाणाम्) प्रियों का (प्रियं कृणवाम) हम प्रिय करें। (यतमे) जो (द्विषन्ति) हमारे साथ द्वेष करते हैं (ते) वे (तमः यन्तु) तमोगुण को प्राप्त रहें। (धेनुः) दूध देने वाली गौ (अनड्वान) तथा बैलगाड़ी चलाने वाला बैल (वयः वयः) प्रत्येक अन्नरूप है, अन्न प्रदाता है (आयत् एव) ये हमें प्राप्त होते ही रहें, और (पौरुषेयम्) पुरुष सम्बन्धी (अप मृत्युम्) बुरी मृत्यु को (नुदन्तु) धेनु और अनड्वान् दूर करते रहें।
टिप्पणी -
[सद्गृहस्थी प्यारों के प्रिय अर्थात् अभीष्ट का सम्पादन करे, और द्वेषियों के साथ द्वेष न कर उन्हें इस तमोमयी वृत्ति में रहने दे कर, उन के सम्बन्ध में उपेक्षावृत्ति धारण करें। यथा "मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम् (योग १।३३) में अपुण्यों के प्रति उपेक्षा करने को कहा है। मनुष्यों के उपकारार्थ सद्गृहस्थी दूधदायक गौओं, तथा खेती में सहायक बैलों का उपार्जन करता रहे, क्यों कि ये दोनों प्रकार के प्राणी दूध तथा कृष्यन्न देते हैं। इन अन्नों द्वारा मनुष्य मात्र की सेवा करके उन्हें अन्नाभाव के कारण होने वाली अपमृत्यु से बचाया जा सकता है]।