अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 41
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
वसो॒र्या धारा॒ मधु॑ना॒ प्रपी॑ना घृ॒तेन॑ मि॒श्रा अ॒मृत॑स्य॒ नाभ॑यः। सर्वा॒स्ता अव॑ रुन्धे स्व॒र्गः ष॒ष्ट्यां श॒रत्सु॑ निधि॒पा अ॒भीच्छा॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठवसो॑: । या: । धारा॑: । मधु॑ना । प्रऽपी॑ना: । घृ॒तेन॑ । मि॒श्रा: । अ॒मृत॑स्य । नाभ॑य: । सर्वा॑: । ता: । अव॑ । रु॒न्धे॒ । स्व॒:ऽग: । ष॒ष्ट्याम्। श॒रत्ऽसु॑ । नि॒धि॒ऽपा: । अ॒भि । इ॒च्छा॒त् ॥३.४१॥
स्वर रहित मन्त्र
वसोर्या धारा मधुना प्रपीना घृतेन मिश्रा अमृतस्य नाभयः। सर्वास्ता अव रुन्धे स्वर्गः षष्ट्यां शरत्सु निधिपा अभीच्छात् ॥
स्वर रहित पद पाठवसो: । या: । धारा: । मधुना । प्रऽपीना: । घृतेन । मिश्रा: । अमृतस्य । नाभय: । सर्वा: । ता: । अव । रुन्धे । स्व:ऽग: । षष्ट्याम्। शरत्ऽसु । निधिऽपा: । अभि । इच्छात् ॥३.४१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 41
भाषार्थ -
(याः) जो (वसोः धाराः) दूध की धाराएं, (मधुना प्रपीनाः) मधु द्वारा अभिवर्धित, (घृतेन मिश्राः) घृतमिश्रित हैं, वे (अमृतस्य नाभयः) शीघ्र न मरने के केन्द्ररूप है। (स्वर्गः) स्वर्गीय जीवनरूप हैं (ताः सर्वाः) सब धाराएं। (षष्ट्यां शरत्सु) ६० वर्षों की आयु में (निधिपाः) गृह्यसम्पत्ति का रक्षक (अभि इच्छात्) अगले आश्रम की इच्छा करें।
टिप्पणी -
[दूध में शहद और घृत मिला कर सेवन करने से आयु बढ़ती है। गृहस्थरूपी स्वर्ग में ये सब वस्तुएँ प्रभूतमात्रा में होनी चाहियें। इन सुखों की प्राप्ति के होते हुए भी गृहस्थी को, ६० बर्षों की आयु हो जाने पर, आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति के लिये अगले आश्रमों में जाने की इच्छा करनी चाहिये। गृहस्थ जीवन स्वर्गरूप है, इस निमित्त देखो (अथर्व० ४।३४।१-८) इस सूक्त में दर्शाया है कि गृहस्थ में मधु, घृत, क्षीर अर्थात् दूध, दधि, उदक से भरे कुम्भ होने चाहियें। ऐसे गृहस्थ को स्वर्ग कहा है (मन्त्र ५, ७)। यदि सब प्रकार की सुखसामग्री प्राप्त हो तो गृहस्थ भी स्वर्ग हैं, आधिभौतिक स्वर्ग है, परन्तु वानप्रस्थ आदि का निरीह जीवन आध्यात्मिक स्वर्ग है]।