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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 35
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - भुरिक्साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अभू॑तिरुपह्रि॒यमा॑णा॒ परा॑भूति॒रुप॑हृता ॥
स्वर सहित पद पाठअभू॑ति: । उ॒प॒ऽह्रि॒यमा॑णा । परा॑ऽभूति: । उप॑ऽहृता ॥८.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अभूतिरुपह्रियमाणा पराभूतिरुपहृता ॥
स्वर रहित पद पाठअभूति: । उपऽह्रियमाणा । पराऽभूति: । उपऽहृता ॥८.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 35
विषय - वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ -
वह [वेदवाणी] (उपह्रियमाणा) छीनी जाती हुई [वेदनिरोधक के लिये] (अभूतिः) अनैश्वर्य [असमर्थता], और (उपहृता) छीन ली गयी (पराभूतिः) पराजय [हार] होती है ॥३५॥
भावार्थ - अत्याचारी पुरुष वेदविद्या के रोकने से हार ही पाता है ॥३५॥
टिप्पणी -
३५−(अभूतिः) अनैश्वर्यम् (उपह्रियमाणा) अपहरणं गम्यमाना (पराभूतिः) पराजयः (उपहृता) अपहरणं गता ॥