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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 9
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आर्च्येकपदानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    आयु॑श्च रू॒पं च॒ नाम॑ च की॒र्तिश्च॑ प्रा॒णश्चा॑पा॒नश्च॒ चक्षु॑श्च॒ श्रोत्रं॑ च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आयु॑: । च॒ । रू॒पम् । च॒ । नाम॑ । च॒ । की॒र्ति: । च॒ । प्रा॒ण: । च॒ । अ॒पा॒न: । च॒ । चक्षु॑: । च॒ । श्रोत्र॑म् । च॒ ॥६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयुश्च रूपं च नाम च कीर्तिश्च प्राणश्चापानश्च चक्षुश्च श्रोत्रं च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आयु: । च । रूपम् । च । नाम । च । कीर्ति: । च । प्राण: । च । अपान: । च । चक्षु: । च । श्रोत्रम् । च ॥६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (च) और (आयुः) जीवन [ब्रह्मचर्यसेवन और वीर्यरक्षण से जीवन का बढ़ाना], (च) और (रूपम्) रूप [शरीरपुष्टि से सुन्दरता], (च) और (नाम) नाम [सत्कर्मों से प्रसिद्धि], (च) और (कीर्तिः) कीर्ति [श्रेष्ठ गुणों के ग्रहण के लिये ईश्वर के गुणों का कीर्तन और विद्यादान आदि सत्य आचरणों से प्रशंसा को स्थिर रखना], (च) और (प्राणः) प्राण वायु (च) और (अपानः) अपान वायु (च) और (चक्षुः) दृष्टि [प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान प्रमाण], (च) और (श्रोत्रम्) श्रवण [शब्द, ऐतिह्य, अर्थापत्ति, संभव और अभाव प्रमाण] ॥९॥

    भावार्थ - जो राजा के कुप्रबन्ध से वेदविद्या प्रचार से रुक जाती है, अविद्या के फैलने से वह राजा और उसका राज्य सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है ॥७-१०॥

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