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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 13
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    सर्वा॑ण्यस्यां घो॒राणि॒ सर्वे॑ च मृ॒त्यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑णि। अ॒स्या॒म् । घो॒राणि॑ । सर्वे॑ । च॒ । मृ॒त्यव॑: ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वाण्यस्यां घोराणि सर्वे च मृत्यवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वाणि। अस्याम् । घोराणि । सर्वे । च । मृत्यव: ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 13

    पदार्थ -
    (अस्याम्) इस [वेदवाणी] में [रोके जाने पर−मन्त्र १२] [वेदनिरोधक को] (सर्वाणि) सब (घोराणि) घोर [महाभयानक] कर्म (च) और (सर्वे) सब प्रकार के (मृत्यवः) मृत्यु होते हैं ॥१३॥

    भावार्थ - धर्मनिरूपक वेदवाणी में रोक डालने से संसार में घोर पाप छा जाता है, और सब प्राणी महाकष्ट पाते हैं ॥१३, १४॥

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