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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 68
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    लोमा॑न्यस्य॒ सं छि॑न्धि॒ त्वच॑मस्य॒ वि वे॑ष्टय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लोमा॑नि । अ॒स्य॒ । सम् । छि॒न्धि॒ । त्वच॑म् । अ॒स्य॒ । वि । वे॒ष्ट॒य॒ ॥११.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लोमान्यस्य सं छिन्धि त्वचमस्य वि वेष्टय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    लोमानि । अस्य । सम् । छिन्धि । त्वचम् । अस्य । वि । वेष्टय ॥११.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 68

    पदार्थ -
    (अस्य) उस [वेदविरोधी] के (लोमानि) लोमों को (सं छिन्धि) काट डाल, (अस्य) उसकी (त्वचम्) खाल (वि वेष्टय) उतार ले ॥६८॥

    भावार्थ - नीतिनिपुण धर्मज्ञ राजा वेदमार्ग पर चलकर वेदविमुख अत्याचारी लोगों को विविध प्रकार दण्ड देकर पीड़ा देवे ॥६८-७१॥

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