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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 71
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुरी पङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    सर्वा॒स्याङ्गा॒ पर्वा॑णि॒ वि श्र॑थय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑ । अ॒स्य॒ । अङ्गा॑ । पर्वा॑णि । वि । श्र॒थ॒य॒ ॥११.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वास्याङ्गा पर्वाणि वि श्रथय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वा । अस्य । अङ्गा । पर्वाणि । वि । श्रथय ॥११.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 71

    पदार्थ -
    (अस्य) उसके (सर्वा) सब (अङ्गा) अङ्गों और (पर्वाणि) जोड़ों को (वि श्रथय) ढीला कर दे ॥७१॥

    भावार्थ - नीतिनिपुण धर्मज्ञ राजा वेदमार्ग पर चलकर वेदविमुख अत्याचारी लोगों को विविध प्रकार दण्ड देकर पीड़ा देवे ॥६८-७१॥

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