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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 49
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
क्षि॒प्रं वै तस्य॒ वास्तु॑षु॒ वृकाः॑ कुर्वत ऐल॒बम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । वास्तु॑षु । वृका॑: । कु॒र्व॒ते॒ । ऐ॒ल॒बम् ॥१०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षिप्रं वै तस्य वास्तुषु वृकाः कुर्वत ऐलबम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । वास्तुषु । वृका: । कुर्वते । ऐलबम् ॥१०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 49
विषय - वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ -
(क्षिप्रम्) शीघ्र (वै) निश्चय करके (तस्य) उस [वेदनिन्दक] के (वास्तुषु) घरों में (वृकाः) भेड़िये आदि (ऐलबम्) कलकल शब्द (कुर्वते) करते हैं ॥४९॥
भावार्थ - कुकर्म के कारण वेदविरोधियों की बस्तियाँ ऊजड़ हो जाती हैं और वहाँ जंगली जन्तु बसने लगते हैं ॥४९॥
टिप्पणी -
४९−(वास्तुषु) निवासेषु (वृकाः) हिंस्राः पशवः (ऐलबम्) म० ४७। आक्रोशम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० ४७ ॥