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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 8/ मन्त्र 17
    सूक्त - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त

    ये अ॒र्वाङ्मध्य॑ उ॒त वा॑ पुरा॒णं वेदं॑ वि॒द्वांस॑म॒भितो॒ वद॑न्ति। आ॑दि॒त्यमे॒व ते परि॑ वदन्ति॒ सर्वे॑ अ॒ग्निं द्वि॒तीयं॑ त्रि॒वृतं॑ च हं॒सम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒र्वाङ् । मध्ये॑ । उ॒त । वा॒ । पु॒रा॒णम् । वेद॑म् । वि॒द्वांस॑म् । अ॒भित॑: । वद॑न्ति । आ॒दि॒त्यम् । ए॒व । ते । परि॑ । व॒द॒न्ति॒ । सर्वे॑ । अ॒ग्निम् । द्वि॒तीय॑म् । त्रि॒ऽवृत॑म् । च॒ । हं॒सम् ॥८.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये अर्वाङ्मध्य उत वा पुराणं वेदं विद्वांसमभितो वदन्ति। आदित्यमेव ते परि वदन्ति सर्वे अग्निं द्वितीयं त्रिवृतं च हंसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अर्वाङ् । मध्ये । उत । वा । पुराणम् । वेदम् । विद्वांसम् । अभित: । वदन्ति । आदित्यम् । एव । ते । परि । वदन्ति । सर्वे । अग्निम् । द्वितीयम् । त्रिऽवृतम् । च । हंसम् ॥८.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 17

    पदार्थ -

    १. (ये) = जो वेदज्ञ (अर्वाङ्) = इस काल में, मध्ये मध्य में (उत वा) = और (पुराणम्) = पुराण काल में, अर्थात् सदा ही (वेदम्) = ज्ञान को (विद्वांसम्) = जाननेवाले ईश को (अभित:) = चारों ओर अथवा दिन के प्रारम्भ व अन्त में-दिन के दोनों ओर-प्रात:-सायं (वदन्ति) = वर्णित व स्तुत करते हैं, (ते सर्वे) = वे सब (आदित्यम् एव परिवदन्ति) = ज्ञानों का अपने में आदान करनेवाले प्रभु को ही कहते हैं। स्तोता लोग यही कहते हैं कि वे प्रभु सदा ही ज्ञानमय हैं-सम्पूर्ण ज्ञानों का आदान करनेवाले वे प्रभु'सूर्यसम ज्योति' ही तो हैं 'ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिः'। २. वे स्तोता उस प्रभु को (द्वितीयम्) = [द्वयोः पूरणः] जीव व प्रकृति दोनों का पूरण करनेवाला और (अग्निम्) = अग्रणी प्रतिपादित करते हैं, (च) = तथा वे प्रभु को (त्रिवृतम्) = [त्रिषु वर्तते] तीनों कालों व तीनों लोकों में सदा सर्वत्र वर्तमान (हंसम्) = [हन्ति] पापों का विनाशक कहते हैं। प्रभु की सर्वव्यापकता का स्मरण हमें पापों से बचाता है।

    भावार्थ -

    प्रभु सदा ही ज्ञानस्वरूप हैं। हम प्रातः-सायं प्रभु का इस रूप में स्मरण करें कि वे सब ज्ञानों का अपने में आदान करनेवाले 'आदित्य' हैं, प्रकृति व जीव का पूरण करनेवाले वे प्रभु हमें आगे ले-चलनेवाले 'अग्नि' हैं, सदा सर्वत्र वर्तमान वे प्रभु हमें पापों से बचानेवाले हमारी पापवृत्तियों को नष्ट करनेवाले 'हंस' है।

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