Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 27
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    तस्ये॒मे सर्वे॑ या॒तव॒ उप॑ प्र॒शिष॑मासते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्य॑ । इ॒मे । सर्वे॑ । या॒वत॑: । उप॑ । प्र॒ऽशिष॑म् । आ॒स॒ते॒ ॥६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्येमे सर्वे यातव उप प्रशिषमासते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्य । इमे । सर्वे । यावत: । उप । प्रऽशिषम् । आसते ॥६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 27

    भावार्थ -
    (तस्य) उसके (प्रशिषम्) शासन को (सर्वे) सब (यातवः) गतिमान सूर्य, ग्रह आदि पिण्ड और समस्त जंगम प्राणी भी (उप आसते) मानते हैं। (तस्य वशे) उसके वश में (चन्द्रमसा सह) चन्द्रमा सहित (अमू) ये (सर्वा) समस्त (नक्षत्रा) नक्षत्रगण भी हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - २२ भुरिक् प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २३ आर्ची गायत्री, २५ एकपदा आसुरी गायत्री, २६ आर्ची अनुष्टुप् २७, २८ प्राजापत्याऽनुष्टुप्। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top