Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 16
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    न द्वि॒तीयो॒ न तृ॒तीय॑श्चतु॒र्थो नाप्यु॑च्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । द्वि॒तीय॑: । न । तृ॒तीय॑: । च॒तु॒र्थ: । न । अपि॑ । उ॒च्य॒ते॒ ॥५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न द्वितीयो न तृतीयश्चतुर्थो नाप्युच्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । द्वितीय: । न । तृतीय: । चतुर्थ: । न । अपि । उच्यते ॥५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 16

    भावार्थ -
    वह परमेश्वर (न द्वितीयः) न दूसरा है, (न तृतीयः) न तीसरा, (चतुर्थः न अपि उच्यते) और चौथा भी नहीं कहा जाता। (न पञ्चमः) न पांचवां है (न षष्ठः) न छठा, (न सप्तमः) सातवां भी नहीं (उच्यते) कहा जाता। (न अष्टमः) न आठवां है, (न नवमः) न नवां और (दशम अपि न उच्यते) दशवां भी नहीं कहा जाता। प्रत्युत वह सब से ‘प्रथम’ सर्वश्रेष्ठ सब से अद्वितीय और सब से मुख्य है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १४ भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, १५ आसुरी पंक्तिः, १६, १९ प्राजापत्याऽनुष्टुप, १७, १८ आसुरी गायत्री। अष्टर्चं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top