अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 49
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - निचृत्साम्नी बृहती
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
अ॒न्नाद्ये॑न॒ यश॑सा॒ तेज॑सा ब्राह्मणवर्च॒सेन॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्न॒ऽअद्ये॑न । यश॑सा । तेज॑सा । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सेन॑ ॥८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्नाद्येन यशसा तेजसा ब्राह्मणवर्चसेन ॥
स्वर रहित पद पाठअन्नऽअद्येन । यशसा । तेजसा । ब्राह्मणऽवर्चसेन ॥८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 49
विषय - परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ -
और दया करके आप मुझे (अन्नाद्येन) अन्न आदि के भोग सामर्थ्य, (यशसा) वीर्य, (तेजसा) तेज और (ब्राह्मणवर्चसा) ब्राह्मण, वेद के विद्वानों के बल से बढ़ाइये।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ४६ आसुरी गायत्री, ४७ यवमध्या गायत्री, ४८ साम्नी उष्णिक्, ४९ निचृत् साम्नी बृहती, ५० प्राजापत्यानुष्टुप, ५१ विराड गायत्री। षडृचात्मक पञ्चमं पर्यायसूक्तम्॥
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