अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 37
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
स वा अ॒द्भ्योजा॑यत॒ तस्मा॒दापो॑ऽजायन्त ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । अ॒त्ऽभ्य: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । आप॑: । अ॒जा॒य॒न्त॒ ॥७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
स वा अद्भ्योजायत तस्मादापोऽजायन्त ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । अत्ऽभ्य: । अजायत । तस्मात् । आप: । अजायन्त ॥७.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 37
विषय - परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ -
(सः वा अद्भयः अजायत) वह सूर्य जिस प्रकार जलों से उत्पन्न होता है और (तस्माद् आपः अजायन्त) सूर्य से वे जल वर्षाधारा रूप से उत्पन्न होते हैं। उसी प्रकार वह परमेश्वर (अद्भयः अजायत) जलों से प्रकट होता है और वे जल उस परमेश्वर से उत्पन्न होते हैं।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - २९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
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