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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 30
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स वै रात्र्या॑ अजायत॒ तस्मा॒द्रात्रि॑रजायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । वै । रात्र्या॑: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । रात्रि॑: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वै रात्र्या अजायत तस्माद्रात्रिरजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । वै । रात्र्या: । अजायत । तस्मात् । रात्रि: । अजायत ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 30

    भावार्थ -
    (सः वा) वह सूर्य जिस प्रकार (रात्र्याः अजायत) रात्रि के उत्तर काल में उदित होकर रात्रि से उत्पन्न होता प्रतीत है और सूर्य के अस्त हो जाने पर रात्रि के आजाने से (तस्माद् रात्रिः अजायत) उस सूर्य से रात्रि होती प्रतीत होती है उसी प्रकार वह परमेश्वर उस महा प्रलय की घोर रात्रि से ही जाना जाता है, वस्तुतः उस परमेश्वर से ही वह प्रलय काल की रात्रि भी उत्पन्न होती है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - २९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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