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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स ए॑ति सवि॒ता स्वर्दि॒वस्पृ॒ष्ठेव॒चाक॑शत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । ए॒ति॒ । स॒वि॒ता । स्व᳡: । दि॒व: । पृ॒ष्ठे । अ॒व॒ऽचाक॑शत् ॥४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स एति सविता स्वर्दिवस्पृष्ठेवचाकशत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । एति । सविता । स्व: । दिव: । पृष्ठे । अवऽचाकशत् ॥४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (सः) वह (सविताः) सूर्य के समान ज्योतिष्मान् (स्वः) परम सुखमय मोक्षलोक में (एति) व्याप्त है (दिवः पृष्ठे) द्यौः, आकाश के उच्चतम भाग में सूर्य के समान वह प्रकाशमय मोक्षधाम में (आवचाकशत्) प्रकाशित है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्मं रोहितादित्यो देवता। त्रिष्टुप छन्दः। षट्पर्यायाः। मन्त्रोक्ता देवताः। १-११ प्राजापत्यानुष्टुभः, १२ विराङ्गायत्री, १३ आसुरी उष्णिक्। त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥

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