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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 32
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स वै वा॒योर॑जायत॒ तस्मा॑द्वा॒युर॑जायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । वै । वा॒यो: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । वा॒यु: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वै वायोरजायत तस्माद्वायुरजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । वै । वायो: । अजायत । तस्मात् । वायु: । अजायत ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 32

    भावार्थ -
    (वै) इसी प्रकार (सः) वह परमेश्वरी शक्ति (वायोः) वायु से (अजायत) प्रादुर्भूत या प्रकट होती है। और (वायुः) यह वायु (तस्मात् अजायत) उस परमेश्वर से उत्पन्न होता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - २९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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