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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 46
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    भूया॒निन्द्रो॑ नमु॒राद्भूया॑निन्द्रासि मृ॒त्युभ्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भूया॑न् । इन्द्र॑: । न॒मु॒रात् । भूया॑न् । इ॒न्द्र॒ । अ॒सि॒ । मृ॒त्युऽभ्य॑: ॥८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूयानिन्द्रो नमुराद्भूयानिन्द्रासि मृत्युभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूयान् । इन्द्र: । नमुरात् । भूयान् । इन्द्र । असि । मृत्युऽभ्य: ॥८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 46

    भावार्थ -
    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (नमुराद् भूयान्) नमुर अर्थात् मृत्यु के न होने अर्थात् अमर रहने से भी अधिक ऐश्वर्यवान् है और हे इन्द्र ! परमेश्वर तू (मृत्युभ्यः) सब मौतों से भी (भूयान्) बड़ा और अधिक शक्तिशाली है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ४६ आसुरी गायत्री, ४७ यवमध्या गायत्री, ४८ साम्नी उष्णिक्, ४९ निचृत् साम्नी बृहती, ५० प्राजापत्यानुष्टुप, ५१ विराड गायत्री। षडृचात्मक पञ्चमं पर्यायसूक्तम्॥

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