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यजुर्वेद अध्याय - 7

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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 34
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - आर्षी गायत्री,निचृत् आर्षी उष्णिक् स्वरः - ऋषभः, षड्जः
    99

    विश्वे॑ देवास॒ऽआग॑त शृणु॒ता म॑ऽइ॒मꣳ हव॑म्। एदं ब॒र्हिर्निषी॑दत। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि॒ विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्य॑ऽए॒ष ते॒ योनि॒र्विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्यः॑॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑। दे॒वा॒सः॒। आ। ग॒त॒। शृ॒णु॒त। मे॒। इ॒मम्। हव॑म्। आ। इ॒दम्। ब॒र्हिः। नि। सी॒द॒त॒। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। विश्वे॑भ्यः। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। विश्वे॑भ्यः। त्वा। दे॒वेभ्यः॑ ॥३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमँ हवम् । एदम्बर्हिर्नि षीदत । उपयामगृहीतोसि विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यऽएष ते योनिर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। देवासः। आ। गत। शृणुत। मे। इमम्। हवम्। आ। इदम्। बर्हिः। नि। सीदत। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। विश्वेभ्यः। त्वा। देवेभ्यः। एषः। ते। योनिः। विश्वेभ्यः। त्वा। देवेभ्यः॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 34
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ प्रत्यहमध्यापनविषयमाह॥

    अन्वयः

    हे पूर्वमन्त्रप्रतिपादितगुणकर्म्मस्वभावा विश्वे देवासो यूयमस्माकं निकटमागत अस्माभिर्दत्तमिदं बर्हिरासनमानिषीदत, मे ममेमं हवं शृणुत। गृहस्थाः स्वपुत्रादीन् प्रत्येवं ब्रूयुर्यतस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि तस्मात् त्वा त्वां विश्वेभ्यो देवेभ्यो प्रयच्छेम, ते तवैष योनिरस्ति, त्वा त्वां विश्वेभ्यो देवेभ्योऽधिकां विद्यां दापयेम॥३४॥

    पदार्थः

    (विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) आगच्छत (शृणुत) अत्र संहितायाम्। (अष्टा॰६।३।११४) इति दीर्घः। (मे) मम विद्यार्थिनः (इमम्) वक्ष्यमाणम् (हवम्) स्तुतिवादम् (आ) समन्तात् (इदम्) अस्माभिर्दत्तम् (बर्हिः) उत्तममासनम् (नि) नितराम् (सीदत) आध्वम् (उपयामगृहीतः) (असि) (विश्वेभ्यः) समस्तेभ्यः (त्वा) त्वाम् (देवेभ्यः) अध्यापकेभ्यः (एषः) सकलविद्यासंग्रहः (ते) तव (योनिः) गृहम् (विश्वेभ्यः) (त्वा) त्वाम् (देवेभ्यः)॥ अयं मन्त्रः (शत॰४। २। ५। २६) व्याख्यातः॥३४॥

    भावार्थः

    एके विद्वांसोऽन्वहं विद्यार्थिनः पाठयेयुरपरे विपश्चितो विद्वांसः प्रतिमासमध्येतॄणां परीक्षणं च कुर्य्युः। तत्कृत्वाऽध्यापकाः प्रतीततीव्रबुद्धीन् परिश्रमं कुर्वतोऽध्येतॄनतिश्रमेण पाठयेयुरिति॥३४॥

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    विषयः

    अथ प्रत्यहमध्यापनविषयमाह।।

    सपदार्थान्वयः

    हे पूर्वमन्त्रप्रतिपादितगुणकर्म्मस्वभावाविश्वे सर्वे देवासः! विद्वांसः ! यूयमस्माकं निकटमागत आगच्छत, अस्माभिर्दत्तमिदं बर्हिः=आसनम् उत्तममासनम् आनिषीदत समन्तान्नितराम् माध्वम्; मे=मम विद्यार्थिनः इमं वक्ष्यमाणं हवं स्तुतिवादं शृणुत। गृहस्थाः स्वपुत्रादीन् प्रत्येवं ब्रूयुः--यतस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि तस्मात् त्वा=त्वां विश्वेभ्यः समस्तेभ्य: देवेभ्यः अध्यापकेभ्यः प्रयच्छेम, ते=तवैषः सकलविद्यासङ्ग्रहः योनिः गृहम्अस्ति, त्वा=त्वां विश्वेभ्यो देवेभ्योऽधिकां विद्यां दापयेम।। ७ । ३४।। [हे........विश्वे देवासः! यूयमस्माकं निकटमागत, अस्माभिर्दत्तमिदं बर्हिः=आसनमानिषीदत, मे=ममेमं हवं शृणुत]

    पदार्थः

    (विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) आगच्छत (शृणुत) अत्र संहितायाम् ॥ अ० ६ । ३ । ११४ ॥ इति दीर्घः। (मे) मम विद्यार्थिनः (इमम्) वक्ष्यमाणम् (हवम्) स्तुतिवादम् (आ) समन्तात् (इदम्) अस्माभिर्दत्तम् (बर्हिः) उत्तममासनम् (नि) नितराम् (सीदत) आध्वम् (उपयामगृहीतः) (असि) (विश्वेभ्यः) समस्तेभ्यः (त्वा) त्वाम् (देवेभ्य:) अध्यापकेभ्यः (एषः) सकलविद्यासंग्रहः (ते) तव (योनि:) गृहम् (विश्वेभ्यः) (त्वा) त्वाम् (देवेभ्यः) ॥ अयं मन्त्रः शत० ४ । २ । ५। २६ व्याख्यातः ॥ ३४ ॥

    भावार्थः

    एके विद्वांसोऽन्वहं विद्यार्थिनः पाठयेयुरपरे विपश्चितो विद्वांसः प्रतिमासमध्येतॄणां परीक्षणं च कुर्युः। तत्कृत्वाऽध्यापकाः प्रतिततीव्रबुद्धीन् परिश्रमं कुर्वतोऽध्येतृनतिश्रमेण पाठयेयुरिति ।। ७ । ३४।।

    विशेषः

    गृत्समदः। विश्वेदेवाः=विद्वांसः। आद्यस्यार्षी गायत्री। षड्जः। उपयाम इत्यस्य निचृदार्ष्युष्णिक्। ऋषभः॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब प्रतिदिन पढ़ाने की योग्यता का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे पूर्वमन्त्रप्रतिपादित गुणकर्म्मस्वभाववाले (विश्वे देवासः) समस्त विद्वान् लोगो! आप हमारे समीप (आगत) आइये और हम लोगों के दिये हुए (इदम्) इस (बर्हिः) आसन पर (आ निषीदत) यथावकाश सुखपूर्वक बैठिये (मे) मेरी (हवम्) इस स्तुतियुक्त वाणी को (शृणुत) सुनिये। गृहस्थ अपने पुत्रादिकों के प्रति कहे कि हे पुत्र! जिस कारण तू (उपयामगृहीतः) विद्वानों का ग्रहण किया हुआ (असि) है, इससे हम (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) समस्त (देवेभ्यः) अच्छे-अच्छे विद्या पढ़ाने वाले विद्वानों को सौंपें, जिसलिये (एषः) यह समस्त विद्या का संग्रह (ते) तेरा (योनिः) घर के तुल्य है, इसलिये (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) (देवेभ्यः) समस्त उक्त महाशयों से विद्या दिलाना चाहते हैं॥३४॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोगों को उचित है कि प्रतिदिन विद्यार्थियों को पढ़ावें और परम विद्वान् पण्डित लोग उन की परीक्षा भी प्रत्येक महीने में किया करें। उस परीक्षा से जो तीक्ष्णबुद्धियुक्त परिश्रम करने वाले प्रतीत हों, उनको अत्यन्त परिश्रम से पढ़ाया करें॥३४॥

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    विषय

    विश्वेदेवाः

    पदार्थ

    गत मन्त्र का मधुच्छन्दा सब दिव्य गुणों को अपनाकर प्रभु का सच्चा उपासक ‘गृत्स’ बनता है और आनन्दमय जीवनवाला होने के कारण ‘मद’ होता है। यह ‘गृत्समद’ प्रार्थना करता है कि १. ( विश्वे देवासः ) = हे सब दिव्य गुणो! ( आगत ) = आओ। ( मे ) = मेरी ( इमं हवम् ) = इस पुकार को, इस प्रार्थना को ( शृणुत ) = सुनो और ( इदम् ) = इस ( बर्हिः ) = वासनाशून्य हृदय में ( आनिषीदत ) = सर्वथा विराजमान होओ। जब हृदय में से वासनाओं का कूड़ा-करकट दूर कर दिया जाता है तब यह हृदयक्षेत्र दिव्य गुणों के बीजवपन के लिए तैयार हो जाता है। यह दिव्य गुण-बीजवपन ही प्रभु का सच्चा उपासन है। उपासना का यह परिणाम कम-से- कम होना ही चाहिए। 

    २. यह गृत्समद प्रभु से कहता है कि ( उपयामगृहीतः असि ) = आप उपयामों से गृहीत होते हैं। ( विश्वेभ्यः त्वा देवेभ्यः ) = सब दिव्य गुणों के लिए मैं आपको स्वीकार करता हूँ। ( एषः ते योनिः ) = यह शरीर तेरा निवास-स्थान है। मैं तुझे अपने हृदय-मन्दिर में प्रतिष्ठित करता हूँ। ( विश्वेभ्यः त्वा देवेभ्यः ) = सब दिव्य गुणों के लिए तुझे स्वीकार करता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम प्रभु के उपासक बनें। सदा प्रसन्न रहें, जिससे सब दिव्य गुणों के पात्र हों।

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    विषय

    विद्वान् पुरुषों की नियुक्ति ।

    भावार्थ

    हे ( विश्वेदेवासः ) समस्त विद्वान् देवगण ! प्रजाजनो ! आप लोग ( आगत ) आओ । ( मे ) मेरा ( इदं हविम् ) इस अभ्यर्थना को (शृणुत ) सुनो । (उपयामगृहीतः असि० इत्यादि ) पूर्ववत् ।

    टिप्पणी

    १ विश्वे देवास। २ उपयाम। 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः । ( १ ) आर्षी गायत्री षड्जः । ( २ ) निचृदार्ष्युष्णिक् । ऋषभः ॥

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    विषय

    अब प्रतिदिन अध्यापन विषय का उपदेश किया जाता है ।।

    भाषार्थ

    हे पूर्व मन्त्र में प्रतिपादित गुण, कर्म, स्वभाव वाले (विश्वे) सब (देवासः) विद्वानो ! आप हमारे निकट (आगत) आओ, हमारे दिये हये इस (बर्हिः) उत्तम आसन पर (आनिषीदत) उत्तम रीति से बैठो, और (मे) मुझ विद्यार्थी के (इमम्) इस (हवम्) स्तुतिवाद को (शृणुत) सुनो। गृहस्थ लोग अपने पुत्र आदि को ऐसा कहें--हे पुत्र ! क्योंकि तू (उपयामगृहीतः) नियमानुसार स्वीकार किया गया है (असि) है, इसलिये (त्वा) तुझको हम (विश्वेभ्यः) सब (देवेभ्यः) अध्यापकों के लिए (प्रयच्छेम) सौंपते हैं, और (ते) तेरा (एषः) सब विद्याओं को ग्रहण करना (योनिः) सुख-धाम है, इसलिये (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) सब (देवेभ्यः) अध्यापकों से अधिक विद्या दिलाते हैं ॥ ७ । ३४ ।।

    भावार्थ

    कुछ विद्वान् लोग प्रतिदिन विद्यार्थियों को पढ़ावें और दूसरे परीक्षक विद्वान् लोग प्रतिमास छात्रों की परीक्षा किया करें । उस परीक्षा से तीव्रबुद्धि, परिश्रमी सिद्ध होने वाले छात्रों को अध्यापक लोग अति परिश्रम से पढ़ाया करें ।। ७ । ३४ ।।

    प्रमाणार्थ

    (शृणुता) 'शृणुता' यहाँ'संहितायाम्' (अ० ६ । ३ । ११४) इस सूत्र से दीर्घ है। इस मन्त्र की व्याख्या शत० (४।२।५ । २६) में की गई है ।। ७ । ३४ ।।

    भाष्यसार

    प्रतिदिन अध्यापन--विद्यार्थी जनों का कर्त्तव्य है कि वे पूर्व मन्त्र में प्रतिपादित गुण, कर्म, स्वभाव वाले विद्वानों को अत्यन्त सत्कारपूर्वक कहें कि हे गुरुजनो! आप हमारे समीप आइये और हमारे द्वारा दिये इस आसन पर बैठिये और हमारी स्तुति को सुनिये । गृहस्थों का कर्त्तव्य है कि वे अपने पुत्र आदि को ऐसा उपदेश करें कि तुम अब नियमानुसार विद्यादि शुभ गुणों को ग्रहण करने योग्य हो, इसलिये हम तुम्हें सुयोग्य विद्वानों को सौंपते हैं। क्योंकि सकल विद्याओं का संग्रह करना ही तुम्हारे लिये सुख का धाम है, इसलिये हम सुयोग्य विद्वानों से तुम्हें अधिक से अधिक विद्या दिलाते हैं। विद्वानों का कर्त्तव्य है कि वे विद्यार्थीजनों को प्रतिदिन पढ़ावें और दूसरे प्रकाण्ड विद्वान् प्रतिमास उनकी परीक्षा किया करें । परीक्षा के उपरान्त जिन विद्यार्थियों को परीक्षक विद्वान् तीव्र बुद्धि और पुरुषार्थी समझें उन्हें अत्यन्त परिश्रम से पढ़ावें ॥ ७ । ३४ ।।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    विद्वान लोकांनी दररोज विद्यार्थ्यांना शिकवावे व अत्यंत विद्वान पंडित लोकांनी प्रत्येक महिन्यात त्यांची परीक्षा घ्यावी. त्या परीक्षेतही जे तीक्ष्ण व कुशाग्र बुद्धीचे असून परिश्रमी असतील त्यांना अधिक मेहनत घेऊन शिकवावे.

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    विषय

    आतां प्रतिदिनी अध्यापनाची योग्यता काय, याविषयी पुढील मंत्रात उपदेश केला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (एक ग्रहस्थ पिता, एका अध्यापकाला आणि आपल्या पुत्राला उद्देशून म्हणत आहे) या पूर्वीच्या मंत्रात (क्र. 33) ज्या विद्वानांच्या गुणकर्मस्वभावाचे वर्णन केले आहे, असे ते हे (विश्वेदेवास:) समस्त विद्वज्जनहो, आपण आमच्याजवळ (आगत) या आणि आम्ही दिलेल्या (इदम्) या (बर्हि:) आसनावर (आनिषीदत) यथावकाश सुखाने बसा. (मे) माझी (बालक-बालिकेचा पिता) (हवम्) या स्तुतीपूर्ण वाणी (श्रृणुत) ऐका (आमची प्रार्थना मान्य करा)॥ यानंतर गृहस्थ पिता आपल्या पुत्र-पुत्री आदींना संबोधून म्हणतो-हे पुत्र, तू (उपयामगृहीत:) विद्वानांकडून विद्याभ्यासाठी विद्याभ्यासाच्या नियमांसह गृहीत (असि) आहेस. यामुळे आम्ही (त्वा) तुला (विश्वेभ्य:) समस्त (देवेभ्य:) उत्कृष्ट अध्यापक विद्वानांकडे सोपवित आहोत. यामुळे (एष:) तुला मिळणारे विद्या-धन वा ज्ञानसंग्रह (ते) तुझे (योनि:) घराप्रमाणे सुखदायक आहे. यासाठीच आम्ही (त्वा) तुला (विश्वेभ्य:) (देवेभ्य:) वर वर्णन केलेल्या सुयोग्य विद्वान अध्यापकातर्फे विद्या मिळावी, या हेतूने तुला त्यांच्याकडे सोपवित आहोत. ॥34॥

    भावार्थ

    भावार्थ - विद्वानांसाठी हे उचित कर्म आहे की त्यानी प्रतिदिनीं विद्यार्थ्यांना शिकवावे आणि अतिविद्वान अशा पंडितांनी दरमहा त्या विद्यार्थ्यांची परीक्षा घ्यावी. त्या परीक्षेत जे विद्याथी तीक्ष्णबुद्धीयुक्त आणि परिश्रमी वाटतील, त्यांना अधिक व विशेष प्रयत्न करून शिकवावे.॥34॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O ye all learned people, the nourishers and preservers of humanity with noble qualities ; the imparters of knowledge, accept this son of a charitably disposed person as your pupil. O pupil, I accept thee as a seeker after knowledge. I instruct thee to serve all the learned persons, whereby thou mayest enlarge thy store of knowledge. I move the learned to impart good instructions to thee.

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    Meaning

    Learned and wise people, come and sit on this seat, and listen to my prayer. Young learner, you are accepted and consecrated in the rules of this institution by the learned teachers. This is now your home. You are dedicated to the support and service of the good and the wise in faith and reverence.

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    Translation

    O all Nature's bounties, come here. Hear my this invocation. Be seated all around at this sacrifice. (1) O devotional bliss, you have been duly accepted. You to all the Nature's bounties. (2) This is your abode. You to all the Nature's bounties. (3)

    Notes

    Barhih, sacred grass; grass-mats; also, the sacrifice.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ প্রত্যহমধ্যাপনবিষয়মাহ ॥
    এখন প্রতিদিন পড়াইবার যোগ্যতার উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে পূর্ব মন্ত্র প্রতিপাদিত গুণকর্ম্ম স্বভাব যুক্ত (বিশ্বে দেবাসঃ) সমস্ত বিদ্বান্গণ । আপনারা আমার সমীপ (আগত) আসুন এবং আমাদের দ্বারা প্রদত্ত (ইদম্) এই (বর্হিঃ) আসনে (আ নিষীদত) যথাবকাশ সুখপূর্বক উপবেশন করুন । (মে) আমার (হবম্) এই স্তুতিযুক্ত বাণীকে (শৃণুত) শুনুন । গৃহস্থ তাহার পুত্রাদিগের প্রতি বলিবে–হে পুত্রগণ । যে কারণে তোমরা (উপয়ামগৃহীতাঃ) বিদ্বানদিগের দ্বারা গৃহীত, এই কারণে আমরা (ত্বা) তোমাদিগকে (বিশ্বেভ্যঃ) সমস্ত (দেবেভ্যঃ) ভাল-ভাল বিদ্যা অধ্যাপনকারী বিদ্বান্দিগকে সঁপিয়া দিই । যেহেতু (এষঃ) এই সমস্ত বিদ্যার সংগ্রহ (তে) তোমার (য়োণিঃ) গৃহের তুল্য এইজন্য (ত্বা) তোমাদিগকে (বিশ্বেভ্যঃ) (দেবেভ্যঃ) সমস্ত উক্ত মহাশয়দিগের হইতে বিদ্যা প্রদান করাইতে চাহি ॥ ৩৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- বিদ্বান্ লোকদিগের উচিত যে, প্রতিদিন বিদ্যার্থীদিগকে পাঠ দিবেন এবং পরম বিদ্বান্ পন্ডিতগণ তাহা পরীক্ষাও প্রত্যেক মাসে করিতে থাকিবেন । সেই পরীক্ষা হইতে যাহারা তীক্ষ্মবুদ্ধিযুক্ত পরিশ্রমকারী মনে হইবে তাহাদিগকে অত্যন্ত পরিশ্রম পূর্বক পড়াইতে থাকিবেন ॥ ৩৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বিশ্বে॑ দেবাস॒ऽআ গ॑ত শৃণু॒তা ম॑ऽই॒মꣳ হব॑ম্ । এদং ব॒র্হির্নি ষী॑দত । উ॒প॒য়া॒মগৃ॑হীতোऽসি॒ বিশ্বে॑ভ্যস্ত্বা দে॒বেভ্য॑ऽএ॒ষ তে॒ য়োনি॒র্বিশ্বে॑ভ্যস্ত্বা দে॒বেভ্যঃ॑ ॥ ৩৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বিশ্বেদেবাস আগত ইত্যস্য গৃৎসমদ ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । আদ্যস্যার্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ । উপয়ামেত্যস্য নিচৃদার্ষ্যুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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