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यजुर्वेद अध्याय - 7

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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 43
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - अन्तर्यामी जगदीश्वरो देवता छन्दः - भूरिक् आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
    82

    अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒येऽअ॒स्मान् विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्। यु॒यो॒ध्यस्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठां ते॒ नम॑ऽउक्तिं विधेम॒ स्वाहा॑॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। नय॑। सु॒पथेति॑ सु॒ऽपथा॑। रा॒ये। अ॒स्मान्। विश्वा॑नि। दे॒व॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। जु॒हु॒रा॒णम्। एनः॑। भूयि॑ष्ठाम्। ते॒। नम॑उक्ति॒मिति॒ नमः॑ऽउक्तिम्। वि॒धे॒म्। स्वाहा॑ ॥४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने नय सुपथा रायेऽअस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठान्ते नमउक्तिँ विधेम स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। नय। सुपथेति सुऽपथा। राये। अस्मान्। विश्वानि। देव। वयुनानि। विद्वान्। युयोधि। अस्मत्। जुहुराणम्। एनः। भूयिष्ठाम्। ते। नमउक्तिमिति नमःऽउक्तिम्। विधेम्। स्वाहा॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 43
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथैतदीश्वरप्रार्थनामाह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! त्वं राये अस्मान् विश्वानि वयुनानि नय। यतो वयं स्वाहा ते भूयिष्ठां नमउक्तिं विधेम। हे देव! विद्वंस्त्वं कृपया जुहुराणमेनश्चास्मद्युयोधि॥४३॥

    पदार्थः

    (अग्ने) सर्वेषां प्रकाशक! (नय) प्रापय (सुपथा) योगमार्गेण (राये) योगसिद्धये (अस्मान्) योगिनः (विश्वानि) अखिलानि (देव) योगप्रद! (वयुनानि) योगविज्ञानानि (विद्वान्) यो वेत्ति सर्वं योगं सः (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) अस्माकं योगानुष्ठातॄणां सकाशात् (जुहुराणम्) अस्मदन्तःकरणस्य कौटिल्यम् (एनः) दुष्कृतात्मकमपराधम् (भूयिष्ठाम्) भूयसीम् (ते) तव योगोपदेष्टुः परमगुरोः (नमउक्तिम्) नातिपुरःसरां स्तुतिम् (विधेम) कुर्य्याम (स्वाहा) सत्यया स्वकीयया वाचा वेदवाचा वा॥ अयं मन्त्रः (शत॰४।३।४।१२) व्याख्यातः॥४३॥

    भावार्थः

    न कश्चिदपि पुरुषः परमात्मनः सत्यप्रेमभक्त्या विना योगसिद्धिं प्राप्नोति, यश्चेत्थम्भूतो योगबलेन परमेश्वरं स्मरति, तस्मै स दयालुः शीघ्रं योगसिद्धिं ददाति॥४३॥

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    विषयः

    अथैतदीश्वरप्रार्थनामाह॥

    सपदार्थान्वयः

    हे अग्ने! सर्वेषां प्रकाशक !त्वं राये योगसिद्धये अस्मान् योगिनः विश्वानि अखिलानि वयुनानि योगविज्ञानानि [सुपथा] योगमार्गेण नय प्रापय, यतो वयं स्वाहा सत्यया स्वकीयया वाचा वेदवाचा वा ते तव योगोपदेष्टुः परमगुरोः भूयिष्ठां भूयसी नम उक्तिं नतिपुरःसरां स्तुतिं विधेम कुर्याम । हे देव ! योगप्रद [विद्वान्] यो वेत्ति सर्वं योगं सः त्वं कृपया जुहुराणम् अस्मदन्तःकरणस्य कौटिल्यम् एनः दुष्टतात्मकमपराधं च अस्मद् अस्माकं योगानुष्ठातृणां सकाशात् युयोधि वियोजय ॥ ७ । ४३ ।। [हे अग्ने! त्वं राये अस्मान् विश्वानि वयुनानि [सुपथा] नय, यतो वयं स्वाहा तेभूयिष्ठां नम उक्तिं विधेम]

    पदार्थः

    (अग्ने) सर्वेषां प्रकाशक! (नय) प्रापय (सुपथा) योगमार्गेण (राये) योगसिद्धये (अस्मान्) योगिनः (विश्वानि) अखिलानि (देव) योगप्रद! (वयुनानि) योगविज्ञानानि (विद्वान्) यो वेत्ति सर्वं योग सः (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) अस्माकं योगानुष्ठातृणां सकाशात् (जुहुराणम्) अस्मदन्तःकरणस्य कौटिल्यम् (एनः) दुष्कृतात्मकमपराधम् (भूयिष्ठाम्) भूयसीम् (ते) तव योगोपदेष्टुः परमगुरोः (नमउक्तिम्) नतिपुरःसरां स्तुतिम् (विधेम) कुर्य्याम (स्वाहा) सत्यया स्वकीयया वाचा वेदवाचा वा॥ अयं मन्त्रः श० ४ । ३ । ४ । १२ व्याख्यातः ॥ ४३॥

    भावार्थः

    न कश्चिदपि पुरुषः परमात्मनः सत्यप्रेमभक्त्या विना योगसिद्धिं प्राप्नोति। यश्चेत्थं भूतो योगबलेन परमेश्वरं स्मरति तस्मै स दयालुः शीघ्रं योगसिद्धिं ददाति।।७ । ४३ ।।

    विशेषः

    आङ्गिरसः। अन्तर्यामी जगदीश्वर:=स्पष्टम्। भुरिगार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः।।

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब ईश्वर की प्रार्थना अगले मन्त्र में कही है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) सब के अन्तःकरण में प्रकाश करने वाले परमेश्वर! आप (सुपथा) सत्यविद्या धर्म्मयोगयुक्त मार्ग से (राये) योग की सिद्धि के लिये (अस्मान्) हम लोगों को (विश्वानि) समस्त (वयुनानि) योग के विद्वानों को (नय) पहुंचाइये जिससे हम लोग (स्वाहा) अपनी सत्यवाणी वा वेदवाणी से (ते) आप की (भूयिष्ठाम्) बहुत (नमउक्तिम्) नमस्कारपूर्वक स्तुति को (विधेम) करें। हे (देव) योगविद्या को देनेवाले ईश्वर! (विद्वान्) समस्त योग के गुण और क्रियाओं को जानने वाले आप कृपा करके (जुहुराणम्) हम लोगों के अन्तःकरण के कुटिलतारूप (एनः) दुष्ट कर्म्मों को (अस्मत्) योगानुष्ठान करने वाले हम लोगों से (युयोधि) दूर कर दीजिये॥४३॥

    भावार्थ

    कोई भी पुरुष परमात्मा की प्रेमभक्ति के विना योगसिद्धि को प्राप्त नहीं होता और जो प्रेम-भक्तियुक्त होकर योगबल से परमेश्वर का स्मरण करता है, उसको वह दयालु परमात्मा शीघ्र योगसिद्धि देता है॥४३॥

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    विषय

    आङ्गिरस

    पदार्थ

    गत मन्त्र का ‘कुत्स’ ही ‘आङ्गिरस’ बनता है। सब दुर्गुणों का संहार ही मनुष्य को शक्तिशाली बनाता है। यह आङ्गिरस संसार में अपने गौरव के प्रतिकूल कोई बात नहीं करता। विशेष रूप से यह कुपथ से धन कमाने में प्रवृत्त नहीं होता। इसकी प्रार्थना है कि १. ( अग्ने ) = हमारी सब उन्नतियों के साधक हे प्रभो! ( अस्मान् ) = हमें ( राये ) = धन के लिए ( सुपथा ) = उत्तम मार्ग से ( नय ) = ले-चलिए। 

    २. हे ( देव ) = सब दिव्य गुणों के पुञ्ज प्रभो! आप ( विश्वानि ) = सब ( वयुनानि ) = विज्ञानों को ( विद्वान् ) = जानते हैं। आप हमें भी उन सब विज्ञानों को प्राप्त कराइए। 

    ३. ( अस्मत् ) = आप हमसे ( जुहुराणम् ) = सब कुटिलताओं को तथा ( एनः ) = सब पापों को ( युयोधि ) =  [ वियोजय—द० ] पृथक् कीजिए। 

    ४. हम ( ते ) = आपके लिए ( भूयिष्ठाम् ) = अत्यधिक ( नमउक्तिम् ) =  नतिपुरःसर स्तुति को ( विधेम ) = करते हैं। 

    ५. ( स्वाहा ) = अन्याय्य मार्ग से धन कमानेरूप पाप से बचने के लिए हम [ स्व+हा ] आपके प्रति अपना अर्पण करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम सदा न्याय-मार्ग से ही धन कमाएँ। पाप व कुटिलता से दूर रहें।

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    विषय

    मार्गदर्शक विद्वान् और परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्नि के समान सबके प्रकाशक और अग्रणी या दुष्टों के तापदायक ! हे ( देव ) देव ! राजन् ! ( अस्मान् ) हमें ( राये ) ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये ( सुपथा ) उत्तम मार्ग से ( नय ) ले चल । तू विश्वानि वयुनानि ) समस्त मार्गों और उत्कृष्ट ज्ञानों को ( विद्वान् ) जानता है। और ( जुहुराणम्) कुटिलता कराने वाले ( एन: ) पाप और पापी पुरुष को ( अस्मत् ) हम से ( युयोधि ) दूर कर । (ते) तेरे लिये हम ( भूयिष्ठाम् ) बहुत २ ( नमः ) आदर युक्त ( उक्तिम् ) वचन ( विधेम ) प्रयोग करते हैं । (स्वाहा ) जिससे तेरा उत्तम यश हो । 
    ईश्वर पक्ष में- हे अन्तर्यामिन् ! स्वप्रकाश ! देव ! तू हमें सन्मार्ग से योग सिद्धि प्राप्त करने के लिये आगे बढ़ा। तू हमारे सब कर्म उत्कृष्ट ज्ञानों को जानता है । हमारे हृदय से कुटिल पाप को दूर कर। हम ( स्वाहा ) वेदवाणी से तेरी बहुत २ स्तुति करते हैं । शत० ४ । ३ । ४ । १२ ।।
    (४४) ५\३७ प्रजाओं और सेनाओं का वर्गों में विभाग और प्रजाओं का निरीक्षण और सदस्यों द्वारा व्यवस्था ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आंगिरस ऋषिः । अग्निरन्तर्यामी जगदीश्वरो वा देवता । भुरिगार्षी त्रिष्टुप् । 
    धैवतः॥ 

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    विषय

    अब ईश्वर की प्रार्थना का उपदेश किया जाता है ।।

    भाषार्थ

    हे (अग्ने) सबके प्रकाशक जगदीश्वर ! आप (राये) योग की सिद्धि के लिये (अस्मान्) हम योगी लोगों को (विश्वानि) सब (वयुनानि) योग के विज्ञानों को (सुपथा) योगमार्ग से (नय) प्राप्त कराओ। जिससे हम लोग (स्वाहा) अपनी सत्यवाणी वा वेदवाणी के द्वारा (ते) योगोपदेष्टा परमगुरु आपकी (भूयिष्ठाम्) अत्यन्त (नम उक्तिम्) नम्रतापूर्वक स्तुति (विधेम) करें। हे (देव) योग-विद्या के दाता ! [विद्वान्] सब योग को जानने वाले जगदीश्वर! आप कृपा करके (जुहुराणम्) हमारे अन्तःकरण की कुटिलता को और (एनः) दुष्टता रूप अपराध को (अस्मत्) हम योगी जनों के पास से (युयोधि) दूर कीजिये ।। ७ । ४३ ।।

    भावार्थ

    कोई भी पुरुष परमात्मा की सच्ची प्रेमभक्ति के बिना योगसिद्धि को प्राप्तनहीं कर सकता ! और जो सच्ची प्रेमभक्ति से योग बल के द्वारा परमेश्वर को स्मरण करता है उसे वह दयालु परमात्मा शीघ्र योगसिद्धि प्रदान करता है ।। ७ । ४३ ।।

    प्रमाणार्थ

    इस मन्त्र की व्याख्या शत० (४ । ३ । ४ । १२) में की गई है ॥ ७ । ४३ ।।

    भाष्यसार

    ईश्वर प्रार्थना--हे सबके प्रकाशक ईश्वर ! आप योगसिद्धि के लिये हम योगी जनों को सम्पूर्ण योगविज्ञान योगमार्ग से प्राप्त कराइये। जिससे हम सत्य भाषणादि युक्त अपनी वाणी से अथवा आपकी वेदवाणी से योग के उपदेष्टा परमगुरु आपकी बहुत प्रकार की नम्रतापूर्वक स्तुति करें । हे योग के प्रदाता देव ! आप सम्पूर्ण योग को जानने वाले हो, सो कृपा करके हमारे अन्तःकरण की कुटिलता और पाप को दूर कर दीजिये ।। ७ । ४३ ।।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    कोणताही माणूस परमेश्वर भक्तीशिवाय योगसिद्धी प्राप्त करू शकत नाही व जो श्रद्धायुक्त अंतःकरणाने व योगाच्या साह्याने परमेश्वराचे स्मरण करतो त्याला दयाळू परमेश्वराकडून तत्काळ योगसिद्धीची प्राप्ती होते.

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    विषय

    पुढील मंत्रात ईश्वराला प्रार्थना केली आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) सर्वांच्या अंत:करणात प्रकाश व प्रेरणा देणारे परमेश्वर, आपण (सुपथ्य) सत्यविद्या, धर्म आणि योगाने युक्त अशा मार्गाने (राये) योगसिद्धीकरितां (अस्मान्) आम्हा योगसाधकांना (विश्वानि) समस्त (युनानि) योगज्ञान आणि विज्ञानापर्यंत न्या. या हेतूकरिता आम्ही (स्वाहा) आपल्या सत्यवाणीने (खर्‍यामनाने) अथवा वेदवाणीद्वारे (ते) आपली (भूमिष्ठाम्) अत्यंत (नमउक्तिम्) नमस्कार पूर्ण स्तुती (विद्येम) करीत आहोत. (देव) योगविद्या देणारे हे ईश्वर, (विद्वान) आपण योगाचे गुण आणि रीती-पद्धती जागणारे आहात. कृपाकरून (जुहुराणम्) आमच्या अंत:करणातील कुटिलतारुप (एन:) दुष्कर्मांना (अस्मत्) योगानुष्ठान करणार्‍या आम्हा योगीजनांपासून (युयोधि) दूर करा (योगाभ्यास करताना आमच्या हृदयात कुटिलता आदी पाप भावना येऊ नयेत, अशी कृपा करा) ॥43॥

    भावार्थ

    भावार्थ - परमात्म-भक्तीविना कोणीही माणूस योगसिद्धी प्राप्त करू शकत नाही. जो कोणी प्रेम आणि भक्तिभावाने योगशक्तीद्वारे परमेश्वराचे स्मरण करतो, त्यास तो दयाळू परमेश्वर शीघ्रमेव योगसिद्धी देतो. ॥43॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O’ God, for the attainment of yoga, lead us on, through the path of yoga, to all the secrets of yoga. Whereby, we may offer Thee ample adoration through vedic texts. Thou, the Giver and Knower of Yoga, remove from us the sin resulting from the crookedness of our heart.

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    Meaning

    Agni, Lord of light and knowledge, you know all the paths of the world into the treasures of wealth, (the science of yoga also). Take us, lead us on by the right path to the wealth of life, and remove from our heart all the sin and evil. We sing in praise of divine glory in all humility from the core of our heart. Bless us with success in Dharma, artha, kama and moksha through yoga and the divine voice, the Veda.

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    Translation

    O adroable Lord, lead us to richness by comfortable and painless paths. O God, you know all our actions. Remove our sin that leads us astray. We bow to you with reverence again and again. (1)

    Notes

    See notes XL. 16.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথৈতদীশ্বরপ্রার্থনামাহ ॥
    এখন ঈশ্বরের প্রার্থনা পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) সকলের অন্তঃকরণে প্রকাশক পরমেশ্বর ! আপনি (সুপথা) সত্যবিদ্যা ধর্ম্মযোগযুক্ত মার্গ দিয়া (রায়ে) যোগের সিদ্ধি হেতু (অস্মান্) আমাদিগকে (বিশ্বানি) সমস্ত (বয়ুনানি) যোগের বিদ্বান্ দিগকে (নয়) লইয়া চলুন যাহাতে আমরা (স্বাহা) স্বীয় সত্যবাণী বা বেদবাণী দ্বারা (তে) আপনার (ভূয়িষ্ঠাম্) বহু (নম উক্তিম্) নমস্কার পূর্বক স্তুতি (বিধেম) করি । হে (দেব) যোগবিদ্যা প্রদাতা ঈশ্বর ! (বিদ্বান্) সমস্ত যোগের গুণ এবং ক্রিয়া সকলের জ্ঞাতা আপনি কৃপা করিয়া (জুহুরাণম্) আমাদিগের অন্তঃকরণের কুটিলতা রূপ (এনঃ) দুষ্ট কর্ম্মকে (অস্মৎ) যোগানুষ্ঠানকারী আমাদিগের হইতে দূর করিয়া দিন ॥ ৪৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- কোন পুরুষ পরমাত্মার প্রেমভক্তি ব্যতীত যোগসিদ্ধি প্রাপ্ত হয় না এবং যে প্রেমভক্তি যুক্ত হইয়া যোগবল দ্বারা পরমেশ্বরকে স্মরণ করে তাহাকে সেই দয়ালু পরমাত্মা শীঘ্র যোগসিদ্ধি প্রদান করেন ॥ ৪৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অগ্নে॒ নয়॑ সু॒পথা॑ রা॒য়েऽঅ॒স্মান্ বিশ্বা॑নি দেব ব॒য়ুনা॑নি বি॒দ্বান্ । য়ু॒য়ো॒ধ্য᳕স্মজ্জু॑হুরা॒ণমেনো॒ ভূয়ি॑ষ্ঠাং তে॒ নম॑ऽউক্তিং বিধেম॒ স্বাহা॑ ॥ ৪৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অগ্নে নয়েত্যস্যাঙ্গিরস ঋষিঃ । অন্তর্য়ামী জগদীশ্বরো দেবতা ।
    ভুরিগার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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