यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 39
ऋषिः - जमदग्निर्ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - विराड् बृहती
स्वरः - मध्यमः
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बण्म॒हाँ२ऽअ॑सि सूर्य्य॒ बडा॑दित्य म॒हाँ२अ॑सि।म॒हस्ते॑ स॒तो म॑हि॒मा प॑नस्यते॒ऽद्धा दे॑व म॒हाँ२ऽअ॑सि॥३९॥
स्वर सहित पद पाठबट्। म॒हान्। अ॒सि॒। सू॒र्य्य। बट्। आ॒दि॒त्य॒। म॒हान्। अ॒सि॒ ॥ म॒हः। ते। स॒तः। म॒हि॒मा। प॒न॒स्य॒ते॒। अ॒द्धा। दे॒व॒। म॒हान्। अ॒सि॒ ॥३९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बण्महाँऽअसि सूर्य बडादित्य महाँऽअसि । महस्ते सतो महिमा पनस्यते द्धा देव महाँऽअसि ॥
स्वर रहित पद पाठ
बट्। महान्। असि। सूर्य्य। बट्। आदित्य। महान्। असि॥ महः। ते। सतः। महिमा। पनस्यते। अद्धा। देव। महान्। असि॥३९॥
विषय - फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे (सूर्य) चराचर के अन्तर्यामिन् ईश्वर! जिस कारण आप (बट्) सत्य (महान्) महत्त्वादि गुणयुक्त (असि) हैं। हे (आदित्य) अविनाशीस्वरूप! जिससे आप (बट्) अनन्त ज्ञानवान् (महान्) बड़े (असि) हो (सतः) सत्यस्वरूप (महः) महान् (ते) आपका (महिमा) महत्त्व (पनस्यते) लोगों से स्तुति किया जाता। हे (देव) दिव्य गुणकर्मस्वभावयुक्त ईश्वर! जिससे आप (श्रद्धा) प्रसिद्ध (महान्) महान् (असि) हैं, इसलिये हमको उपासना करने के योग्य हैं॥३९॥
भावार्थ - हे मनुष्यो! जिस ईश्वर के महिमा को पृथिवी, सूर्यादि पदार्थ जानते हैं, जो सबसे बड़ा है, उसको छोड़ के किसी अन्य की उपासना नहीं करनी चाहिये॥३९॥
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