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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 81
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः
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    इ॒माऽउ॑ त्वा पुरूवसो॒ गिरो॑ वर्द्धन्तु॒ या मम॑।पा॒व॒कव॑र्णाः॒ शुच॑यो विप॒श्चितो॒ऽभि स्तोमै॑रनूषत॥८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। त्वा॒। पु॒रू॒व॒सो॒। पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो। गिरः॑। व॒र्द्ध॒न्तु॒। याः। मम॑ ॥ पा॒व॒कव॒॑र्णा॒ इति॑ पाव॒कऽव॑र्णाः। शुच॑यः। वि॒प॒श्चित॒ इति॑ विपः॒ऽचितः। अ॒भि। स्तोमैः॑। अ॒नू॒ष॒त॒ ॥८१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमाऽउ त्वा पुरूवसो गिरो वर्धन्तु या मम । पावकवर्णाः शुचयो विपश्चितोभि स्तोमैरनूषत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमाः। ऊँऽइत्यूँ। त्वा। पुरूवसो। पुरुवसो इति पुरुऽवसो। गिरः। वर्द्धन्तु। याः। मम॥ पावकवर्णा इति पावकऽवर्णाः। शुचयः। विपश्चित इति विपःऽचितः। अभि। स्तोमैः। अनूषत॥८१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 81
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    पदार्थ -
    हे (पुरूवसो) बहुत पदार्थों में वास करनेहारे परमात्मन्! (याः) जो (इमाः) ये (मम) मेरी (गिरः) वाणी (त्वा) आपको (उ) निश्चय कर (वर्द्धन्तु) बढ़ावें, उनको प्राप्त होके (पावकवर्णाः) अग्नि के तुल्य वर्णवाले तेजस्वी (शुचयः) पवित्र हुए (विपश्चितः) विद्वान् लोग (स्तोमैः) पदार्थविद्याओं की प्रशंसाओं से (अभि, अनूषत) सब ओर से प्रशंसा करें॥८१॥

    भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये कि सदैव ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना, उस ईश्वर की सत्ता के प्रतिपादन तथा अभ्यास और सत्यभाषण से अपनी वाणियों को शुद्ध कर विद्वान् होके सब पदार्थविद्याओं को प्राप्त होवें॥८१॥

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