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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 53
    ऋषिः - सुहोत्र ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    विश्वे॑ देवाः शृणु॒तेम॒ꣳ हवं॑ मे॒ येऽअ॒न्तरि॑क्षे॒ यऽउप॒ द्यवि॒ ष्ठ।येऽअ॑ग्निजि॒ह्वाऽउ॒त वा॒ यज॑त्राऽआ॒सद्या॒स्मिन् ब॒र्हिषि॑ मादयध्वम्॥५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑। दे॒वाः॒। शृ॒णु॒त॒। इम॑म्। हव॑म्। मे॒। ये। अ॒न्तरि॑क्षे। ये। उप॑। द्यवि॑। स्थ। ये। अ॒ग्नि॒जि॒ह्वा इत्य॑ग्निऽजि॒ह्वाः। उ॒त। वा। यज॑त्राः। आ॒स॒द्येत्या॑ऽस॒द्य। अ॒स्मिन्। ब॒र्हिषि॑। मा॒द॒य॒ध्व॒म् ॥५३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे देवाः शृणुतेमँ हवम्मे येऽअन्तरिक्षे यऽउप द्यवि ष्ठ । येऽअग्निजिह्वाऽउत वा यजत्राऽआसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयध्वम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। देवाः। शृणुत। इमम्। हवम्। मे। ये। अन्तरिक्षे। ये। उप। द्यवि। स्थ। ये। अग्निजिह्वा इत्यग्निऽजिह्वाः। उत। वा। यजत्राः। आसद्येत्याऽसद्य। अस्मिन्। बर्हिषि। मादयध्वम्॥५३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 53
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    पदार्थ -
    हे (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोगो! तुम (ये) जो (अन्तरिक्षे) आकाश में (ये) जो (द्यवि) प्रकाश में (ये) जो (अग्निजिह्वाः) जिह्वा के तुल्य जिनके अग्नि हैं, वे (उत) और (वा) अथवा (यजत्राः) सङ्गति करनेवाले पूजनीय पदार्थ हैं, उनके जाननेवाले (स्थ) हूजिये (मे) मेरे (इमम्) इस (हवम्) पढ़ने-पढ़ाने रूप व्यवहार को (उप, शृणुत) निकट से सुनो (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) सभा वा आसन पर (आसद्य) बैठ कर (मादयध्वम्) आनन्दित होओ॥५३॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो! तुम जितने भूमि, अन्तरिक्ष और प्रकाश में पदार्थ हैं, उनको जान विद्वानों की सभा कर विद्यार्थियों की परीक्षा कर विद्या सुशिक्षा को बढ़ा और आप आनन्दित होके दूसरों को निरन्तर आनन्दित करो॥५३॥

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