Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 52
    ऋषिः - लुश ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    5

    विश्वे॑ऽअ॒द्य म॒रुतो॒ विश्व॑ऽऊ॒ती विश्वे॑ भवन्त्व॒ग्नयः॒ समि॑द्धाः।विश्वे॑ नो दे॒वाऽअव॒सा ग॑मन्तु॒ विश्व॑मस्तु॒ द्रवि॑णं॒ वाजो॑ऽअ॒स्मै॥५२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑। अ॒द्य। म॒रुतः॑। विश्वे॑। ऊ॒ती। विश्वे॑। भ॒व॒न्तु॒। अ॒ग्नयः॑। समि॑द्धा॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धाः ॥ विश्वे॑। नः॒॑। दे॒वाः। अव॑सा। आ। ग॒म॒न्तु॒। विश्व॑म्। अ॒स्तु॒। द्रवि॑णम्। वाजः॑। अ॒स्माऽइत्य॒स्मै ॥५२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वेऽअद्य मरुतो विश्वऽऊती विश्वे भवन्त्वग्नयः समिद्धाः । विश्वे नो देवाऽअवसा गमन्तु विश्वमस्तु द्रविणँवाजो अस्मे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। अद्य। मरुतः। विश्वे। ऊती। विश्वे। भवन्तु। अग्नयः। समिद्धा इति सम्ऽइद्धाः॥ विश्वे। नः। देवाः। अवसा। आ। गमन्तु। विश्वम्। अस्तु। द्रविणम्। वाजः। अस्माऽइत्यस्मै॥५२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 52
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे राजा आदि मनुष्यो! (अद्य) आज जैसे (विश्वे) सब आप लोग (विश्वे) सब (मरुतः) मरणधर्मा मनुष्य और (विश्वे) सब (समिद्धाः) प्रदीप्त (अग्नयः) अग्नि (ऊती) रक्षण क्रिया से (नः) हमारे रक्षक (भवन्तु) होवें (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (अवसा) रक्षा आदि के साथ (नः) हमको (आ, गमन्तु) प्राप्त हों, वैसे (विश्वम्) सब (द्रविणम्) धन और (वाजः) अन्न (अस्मै) इस मनुष्य के लिये (अस्तु) प्राप्त होवे॥५२॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जैसा सुख अपने लिये चाहें, वैसा ही औरों के लिये भी। इस जगत् में जो विद्वान् हों, वे आप अधर्माचरण से पृथक हो के औरों को भी वैसे करें॥५२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top