Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 84
    ऋषिः - भरद्वाज ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः
    10

    अद॑ब्धेभिः सवितः पा॒युभि॒ष्ट्वꣳ शि॒वेभि॑र॒द्य परि॑ पाहि नो॒ गय॑म्।हिर॑ण्यजिह्वः सुवि॒ताय॒ नव्य॑से॒ रक्षा॒ माकि॑र्नोऽअ॒घश॑ꣳसऽईशत॥८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अद॑ब्धेभिः। स॒वि॒त॒रिति॑ सवितः। पा॒युभि॒रिति॑ पा॒युऽभिः॑। त्वम्। शि॒वेभिः॑। अ॒द्य। परि॑। पा॒हि। नः॒। गय॑म् ॥ हिर॑ण्यजिह्व॒ इति॒ हिर॑ण्यजिह्वः। सु॒वि॒ताय॑। नव्य॑से। र॒क्ष॒। माकिः॑। नः॒। अ॒घशं॑सः। ई॒श॒त॒ ॥८४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्ट्वँ शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम् । हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिर्ना अघशँस ईशत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अदब्धेभिः। सवितरिति सवितः। पायुभिरिति पायुऽभिः। त्वम्। शिवेभिः। अद्य। परि। पाहि। नः। गयम्॥ हिरण्यजिह्व इति हिरण्यजिह्वः। सुविताय। नव्यसे। रक्ष। माकिः। नः। अघशंसः। ईशत॥८४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 84
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे (सवितः) समग्र ऐश्वर्य से युक्त राजन्! (त्वम्) आप (अद्य) आज (अदब्धेभिः) न बिगाड़ने योग्य (शिवेभिः) मङ्गलकारी (पायुभिः) अनेक प्रकार के रक्षा के उपायों से (नः) हमारी (गयम्) प्रजा की (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा कीजिये (हिरण्यजिह्वः) सबके हित में रमण करने योग्य वाणी से युक्त हुए (नव्यसे) अतिशय कर नवीन (सुविताय) ऐश्वर्य के अर्थ (नः) हमारी (रक्ष) रक्षा कीजिये, जिससे (अघशंसः) दुष्ट चोर हम पर (माकिः)(ईशत) समर्थ वा शासक हो॥८४॥

    भावार्थ - राजाओं की योग्यता यह है कि सब प्रजा के सन्तानों की ब्रह्मचर्य, विद्यादान और स्वयंवर विवाह करा के और डाकुओं से रक्षा कर के उन्नति करें॥८४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top