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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 14
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    परा॑ यात पितर॒ आच॑ याता॒यं वो॑ य॒ज्ञो मधु॑ना॒ सम॑क्तः। द॒त्तो अ॒स्मभ्यं॒ द्रवि॑णे॒ह भ॒द्रंर॒यिं च॑ नः॒ सर्व॑वीरं दधात ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परा॑ । या॒त॒ । पि॒त॒र॒: । आ । च॒ । या॒त॒। अ॒यम् । व॒: । य॒ज्ञ: । मधु॑ना । सम्ऽअ॑क्त: । द॒त्तो इति॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । द्रवि॑णा । इ॒ह । भ॒द्रम् । र॒यिम् । च॒ । न॒: । सर्व॑ऽवीरम् । द॒धा॒त॒ ॥३.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परा यात पितर आच यातायं वो यज्ञो मधुना समक्तः। दत्तो अस्मभ्यं द्रविणेह भद्रंरयिं च नः सर्ववीरं दधात ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परा । यात । पितर: । आ । च । यात। अयम् । व: । यज्ञ: । मधुना । सम्ऽअक्त: । दत्तो इति । अस्मभ्यम् । द्रविणा । इह । भद्रम् । रयिम् । च । न: । सर्वऽवीरम् । दधात ॥३.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (पितरः) हे पितरो ! [पिता आदि रक्षक महात्माओ] (परा) प्रधानता से (यात) चलो, (च) और (आ यात) आओ, (वः)तुम्हारा (अयम्)(यज्ञः) पूजनीय व्यवहार (मधुना) विज्ञान के साथ (समक्तः)सर्वथा ख्यात है। (अस्मभ्यम्) हमको (इह) यहाँ पर (द्रविणा) अनेक धन और (भद्रम्)कल्याण (दत्तो) अवश्य देओ, (च) और (नः) हमें (सर्ववीरम्) सब वीरों को रखनेवाला (रयिम्) धन (दधात) धारण करो ॥१४॥

    भावार्थ - विद्वान् माता-पिता आदि महापुरुष सन्तान आदि गृहस्थों से मिलकर उन को उपदेश करें कि जिस से वे लोगअनेक धनों को प्राप्त होकर वीर पुरुषों का आदर करते रहें ॥१४॥

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