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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 1
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    इ॒यं नारी॑पतिलो॒कं वृ॑णा॒ना नि प॑द्यत॒ उप॑ त्वा मर्त्य॒ प्रेत॑म्। धर्मं॑पुरा॒णम॑नुपा॒लय॑न्ती॒ तस्यै॑ प्र॒जां द्रवि॑णं चे॒ह धे॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । नारी॑ । प॒ति॒ऽलो॒कम् । वृ॒णा॒ना । नि । प॒द्य॒ते॒ । उप॑ । त्वा॒ । म॒र्त्य॒ । प्रऽइ॑तम् । धर्म॑म् । पु॒रा॒णम् । अ॒नु॒ऽपा॒लय॑न्ती । तस्यै॑ । प्र॒ऽजाम् । द्रवि॑णम् । च॒ । इ॒ह । धे॒हि॒ ॥३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयं नारीपतिलोकं वृणाना नि पद्यत उप त्वा मर्त्य प्रेतम्। धर्मंपुराणमनुपालयन्ती तस्यै प्रजां द्रविणं चेह धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । नारी । पतिऽलोकम् । वृणाना । नि । पद्यते । उप । त्वा । मर्त्य । प्रऽइतम् । धर्मम् । पुराणम् । अनुऽपालयन्ती । तस्यै । प्रऽजाम् । द्रविणम् । च । इह । धेहि ॥३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (मर्त्य) हे मनुष्य ! (इयम्) यह (नारी) नारी (पतिलोकम्) पति के लोक [गृहाश्रम के सुख] को (वृणाना)चाहती हुई और (पुराणम्) पुराने [सनातन] (धर्मम्) धर्म को (अनुपालयन्ती) निरन्तरपालती हुई (प्रेतम्) मरे हुए [पति] की (उप) स्तुति करती हुई (त्वा) तुझको (निपद्यते) प्राप्त होती है, (तस्यै) उस [स्त्री] को (प्रजाम्) सन्तान (च) और (द्रविणम्) बल (इह) यहाँ पर (धेहि) धारण कर ॥१॥

    भावार्थ - यदि विधवा स्त्री मृतपति के गुण गाती हुई सन्तान उत्पन्न करना चाहे, वह मृतस्त्रीक पुरुष के साथयथाविधि नियोग करके अपने कुल की वृद्धि के लिये सन्तान उत्पन्न करे। इसी प्रकारमृतस्त्रीक पुरुष अपने कुल को बढ़ती के लिये सन्तान उत्पन्न करने को विधवास्त्री से विधिवत् नियोग करे ॥१॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका नियोगविषय में व्याख्यात है ॥

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