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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 39
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - परा त्रिष्टुप् पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    स्वा॑स॒स्थेभ॑वत॒मिन्द॑वे नो यु॒जे वां॒ ब्रह्म॑ पू॒र्व्यं नमो॑भिः। वि श्लोक॑ एतिप॒थ्येव सू॒रिः शृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ अ॒मृता॑स ए॒तत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वास॑स्थे॒ इति॑ सु॒ऽआस॑स्थे । भ॒व॒त॒म् । इन्द॑वे । न॒: । यु॒जे । वा॒म् । ब्रह्म॑ । पू॒र्व्यम् । नम॑:ऽभि: । वि । श्लोक॑ । ए॒ति॒ । प॒थ्या॑ऽइव । सू॒रि: । शृ॒ण्वन्तु॑ । विश्वे॑ । अ॒मृता॑स: । ए॒तत् ॥३.३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वासस्थेभवतमिन्दवे नो युजे वां ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिः। वि श्लोक एतिपथ्येव सूरिः शृण्वन्तु विश्वे अमृतास एतत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वासस्थे इति सुऽआसस्थे । भवतम् । इन्दवे । न: । युजे । वाम् । ब्रह्म । पूर्व्यम् । नम:ऽभि: । वि । श्लोक । एति । पथ्याऽइव । सूरि: । शृण्वन्तु । विश्वे । अमृतास: । एतत् ॥३.३९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 39

    पदार्थ -
    (नः) हमारे (इन्दवे)ऐश्वर्य के लिये (स्वासस्थे) अच्छे आसन पर बैठनेवाले (भवतम्) तुम दोनों होओ, (वाम्) तुम दोनों के लिये (पूर्व्यम्) पहिले [योगियों] करके प्रत्यक्ष किये (ब्रह्म) बड़े परमेश्वर का (नमोभिः) सत्कारों के साथ (युजे) मैं ध्यान करता हूँ। (श्लोकः) वेदवाणी में कुशल (सूरिः) विद्वान् (पथ्या इव) सुन्दर मार्ग के समान (वि) विविध प्रकार से (एति) चलता है, (विश्वे) सब (अमृतासः) अमर [पुरुषार्थी]लोग (एतत्) यह (शृण्वन्तु) सुनें ॥३९॥

    भावार्थ - सब स्त्री-पुरुषपूर्वज योगियों के समान योगाभ्यास से आत्मशुद्धि करके परमात्मा को प्राप्तहोवें, और जैसे विद्वानों का बनाया मार्ग सब यात्रियों को सुखदायक होता है, वैसे ही वेदकुशल विद्वानों का विद्याप्रचार सबको आनन्द देता है ॥३९॥यह मन्त्रकुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१३।१, २ तथा यजुर्वेद में−११।५ ॥

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