Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 36
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - एकवसाना आसुरी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    ध॒र्तासि॑ध॒रुणो॑ऽसि॒ वंस॑गोऽसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ध॒र्ता । अ॒सि॒ । ध॒रुण॑: । अ॒सि॒ । वंस॑ग: । अ॒सि॒ ॥३.३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धर्तासिधरुणोऽसि वंसगोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धर्ता । असि । धरुण: । असि । वंसग: । असि ॥३.३६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 36

    पदार्थ -
    [हे ईश्वर !] (धर्ता)तू धारण करनेवाला (असि) है, (धरुणः) तू स्थिर स्वभाववाला (असि) है और (वंसगः) तूसेवनीय व्यवहारों का प्राप्त करानेवाला (असि) है ॥३६॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य हैकि पूर्वोक्त प्रकार से परमात्मा को सब दिशाओं में व्यापक जानकर दृढ़ स्वभावहोवें और शुद्ध जल, वायु, अन्न आदि से शरीर के धातुरसों को पुष्ट करें। वहसर्वपोषक परमात्मा जल आदि स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों से और ज्ञानियों के ज्ञानसे अधिक आगे है ॥३६, ३७॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top