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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 38
    ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - न्युङ्कुसारिणी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    अ॒पो दे॒वीरुप॑सृज॒ मधु॑मतीरय॒क्ष्माय॑ प्र॒जाभ्यः॑। तासा॑मा॒स्थाना॒दुज्जि॑हता॒मोष॑धयः सुपिप्प॒लाः॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पः। दे॒वीः। उप॑। सृ॒ज॒। मधु॑मती॒रिति॒ मधु॑ऽमतीः। अ॒य॒क्ष्माय॑। प्र॒जाभ्य॒ इति॑ प्र॒ऽजाभ्यः॑। तासा॑म्। आ॒स्थाना॒दित्या॒ऽस्थाना॑त्। उत्। जि॒ह॒ता॒म्। ओष॑धयः। सु॒पि॒प्प॒ला इति॑ सुऽपिप्प॒लाः ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपो देवीरुपसृज मधुमतीरयक्ष्माय प्रजाभ्यः । तासामास्थानादुज्जिहतामोषधयः सुपिप्पलाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अपः। देवीः। उप। सृज। मधुमतीरिति मधुऽमतीः। अयक्ष्माय। प्रजाभ्य इति प्रऽजाभ्यः। तासाम्। आस्थानादित्याऽस्थानात्। उत्। जिहताम्। ओषधयः। सुपिप्पला इति सुऽपिप्पलाः॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 38
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে শ্রেষ্ঠ বৈদ্য পুরুষ ! আপনি (মধুমতীঃ) প্রশংসিত মধুরাদি গুণযুক্ত (দেবীঃ) পবিত্র (অপঃ) জলকে (উপসৃজ) উৎপন্ন করুন যাহাতে (তাসাম্) সেই জলের (আস্থানাৎ) আশ্রয়ে (সুপিপ্পলাঃ) সুন্দর ফলযুক্ত (ওষধয়ঃ) সোমলতাদি ওষধিগুলিকে (প্রজাভ্যঃ) রক্ষা করিবার যোগ্য প্রাণিদিগের (অয়ক্ষ্মাব) যক্ষ্মাদি রোগ নিবৃত্তি হেতু (উজ্জিহতাম্) প্রাপ্ত হউন ॥ ৩৮ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- রাজার উচিত দুই প্রকার বৈদ্য রাখা । এক সুগন্ধাদি পদার্থ দ্বারা হোম করিয়া জল ও ওষধি শুদ্ধ করিবেন । দ্বিতীয় – শ্রেষ্ঠ বিদ্বান্ বৈদ্য হইয়া নিদানাদি সব প্রাণীকে রোগরহিত রাখিবেন । এই কর্ম ব্যতীত সংসারে সার্বজনিক সুখ হইতে পারে না ॥ ৩৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒পো দে॒বীরুপ॑সৃজ॒ মধু॑মতীরয়॒ক্ষ্মায়॑ প্র॒জাভ্যঃ॑ ।
    তাসা॑মা॒স্থানা॒দুজ্জি॑হতা॒মোষ॑ধয়ঃ সুপিপ্প॒লাঃ ॥ ৩৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অপো দেবীরিত্যস্য সিন্ধুদ্বীপ ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । ন্যঙ্কুসারিণী বৃহতী ছন্দঃ । মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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