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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 76
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठ ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    नाभा॑ पृथि॒व्याः स॑मिधा॒नेऽअ॒ग्नौ रा॒यस्पोषा॑य बृह॒ते ह॑वामहे। इ॒र॒म्म॒दं बृ॒हदु॑क्थं॒ यज॑त्रं॒ जेता॑रम॒ग्निं पृत॑नासु सास॒हिम्॥७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नाभा॑। पृ॒थि॒व्याः। स॒मि॒धा॒न इति॑ सम्ऽइधा॒ने। अ॒ग्नौ। रा॒यः। पोषा॑य। बृ॒ह॒ते। ह॒वा॒म॒हे॒। इ॒र॒म्म॒दमिती॑रम्ऽम॒दम्। बृ॒हदु॑क्थ॒मिति॑ बृ॒हत्ऽउ॑क्थम्। यज॑त्रम्। जेता॑रम्। अ॒ग्निम्। पृत॑नासु। सा॒स॒हिम्। सा॒स॒हिमिति॑ सस॒हिम् ॥७६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नाभा पृथिव्याः समिधानेऽअग्नौ रायस्पोषाय बृहते हवामहे । इरम्मदम्बृहदुक्थ्यँयजत्रञ्जेतारमग्निम्पृतनासु सासहिम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नाभा। पृथिव्याः। समिधान इति सम्ऽइधाने। अग्नौ। रायः। पोषाय। बृहते। हवामहे। इरम्मदमितीरम्ऽमदम्। बृहदुक्थमिति बृहत्ऽउक्थम्। यजत्रम्। जेतारम्। अग्निम्। पृतनासु। सासहिम्। सासहिमिति ससहिम्॥७६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 76
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে গৃহী ব্যক্তিগণ ! যেমন আমরা (বৃহতে) মহতী (রায়ঃ) লক্ষ্মীর (পোষায়) পুষ্টিকারক পুরুষের জন্য (পৃথিব্যাঃ) পৃথিবীর (নাভা) মধ্যে (সমিধানে) সম্যক প্রদীপ্ত (অগ্নৌ) অগ্নি এবং (পৃতনাসু) সেনা মধ্যে (সাসহিম্) অত্যন্ত সহ্যশীল, (ইর ম্মদম্) অন্ন দ্বারা আনন্দ লাভ কারী, (বৃহদুক্থম্) অত্যন্ত প্রশংসাযুক্ত, (য়জত্রম্) সংগ্রাম করিবার যোগ্য, (অগ্নিম্) বিদ্যুতের ন্যায় তীব্র গতি সম্পন্ন, (জেতারম্) বিজয়শীল সেনাপতি পুরুষকে (হবামহে) আহ্বান করি, সেইরূপ তোমরাও তাকে আহ্বান কর ॥ ৭৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- পৃথিবীর উপর রাজ্য করিতে থাকিয়া মনুষ্যদিগের উচিত যে, আগ্নেয়াদি অস্ত্র এবং তলোয়ারাদি শস্ত্র সঞ্চয় করিবে এবং পূর্ণ বুদ্ধি ও মনোবলযুক্ত পুরুষকে সেনাপতি করিয়া নির্ভয় হইয়া আচরণ করিবে ॥ ৭৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - নাভা॑ পৃথি॒ব্যাঃ স॑মিধা॒নেऽঅ॒গ্নৌ রা॒য়স্পোষা॑য় বৃহ॒তে হ॑বামহে ।
    ই॒র॒ম্ম॒দং বৃ॒হদু॑ক্থং॒ য়জ॑ত্রং॒ জেতা॑রম॒গ্নিং পৃত॑নাসু সাস॒হিম্ ॥ ৭৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - নাভেত্যস্য নাভানেদিষ্ঠ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । স্বরাডার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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