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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 9
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - आत्मा देवता छन्दः - शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    ऊर्क् च॑ मे सू॒नृता॑ च मे॒ पय॑श्च मे॒ रस॑श्च मे घृ॒तं च॑ मे॒ मधु॑ च मे॒ सग्धि॑श्च मे॒ सपी॑तिश्च मे कृ॒षिश्च॑ मे॒ वृष्टि॑श्च मे॒ जैत्रं॑ च म॒ऽऔद्भि॑द्यं च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊर्क्। च॒। मे॒। सू॒नृता॑। च॒। मे॒। पयः॑। च॒। मे॒। रसः॑। च॒। मे॒। घृ॒तम्। च॒। मे॒। मधु॑। च॒। मे॒। सग्धिः॑। च॒। मे॒। सपी॑ति॒रिति॒ सऽपी॑तिः। च॒। मे॒। कृ॒षिः। च॒। मे॒। वृष्टिः॑। च॒। मे॒। जैत्र॑म्। च॒। मे॒। औद्भि॑द्य॒मित्यौत्ऽभि॑द्यम्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्क्च मे सूनृता च मे पयश्च मे रसश्च मे घृतञ्च मे मधु च मे सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे कृषिश्च मे वृष्टिश्च मे जैत्रञ्च म औद्भिद्यञ्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्क्। च। मे। सूनृता। च। मे। पयः। च। मे। रसः। च। मे। घृतम्। च। मे। मधु। च। मे। सग्धिः। च। मे। सपीतिरिति सऽपीतिः। च। मे। कृषिः। च। मे। वृष्टिः। च। मे। जैत्रम्। च। मे। औद्भिद्यमित्यौत्ऽभिद्यम्। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 9
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - (उपासक कामना करीत आहे) (मे) माझे (ऊर्क्) उत्तमप्रकारे शिजविलेले सुसंस्कारित अन्न (च) आणि सुवासिक पदार्थांनी युक्त (स्वादिष्ट, मधुर) व्यंजन तसेच (मे) माझी (सूवृत्ता) प्रिय, मधुर वाणी (च) आणि सत्यवचन (उत्तम आचरणाद्वारे पूर्ण होवोत) (मे) माझे (पद:) दूध (च) आणि उत्कृष्टपणे शिजवलेले औषधी आदी पदार्थ तसेच (मे) माझे (रस:) सर्व पदार्थांचे रस वा सार (माझ्यासाठी हितकर होवो) (मे) माझे (समीति:) सर्वांसह मिळून जल आदी पेय पदार्थांचे सेवन (च) आणि खाद्य व चूष्य पदार्थ (चोखण्याचे पदार्थ) तसेच (ये) माझे (कृषि:) भूमी खणणारे शेती करणे आदी कार्य (च) आणि गहू आदी धान्य (माझ्या श्रमामुळे मला हितकर व्हावेत) (मे) माझी (वा माझ्यासाठी होणारी) (वृष्टि:) वृष्टी (च) आणि होम-हवन आदी कार्यांद्वारे वायूची शुद्धी करणारे कार्य, तसेच (मे) माझा (जैत्रम्) विजयी होण्याचा स्वभाव (च) आणि अवश्यमेव विजयी होणारे माझे प्रशिक्षित सैनिक (कल्याणकारी होवोत) (मे) माझे (वा माझ्यासाठी) (औद्भिद्यम्) भूमी फोडून उमवणारे वृक्ष-वनस्पती आदी (य) आणि त्यापासून होणारे फळ-पुण्य आदी पदार्थ (यज्ञेम) समस्त रस आणि पदार्थांची वृद्धी करणार्‍या माझ्या कर्माद्वारे वा उपायांद्वारे माझ्यासाठी (कल्पन्ताम्) हितकारी व्हावेत ॥9॥

    भावार्थ - भावार्थ - मनुष्यांनी समस्त उत्तम रययुक्त पदार्थ एकत्रित करून त्यांचा उपयोग ऋतूंप्रमाणे उपयुक्त होम आदी उत्तम कार्यांसाठी केला पाहिजे ॥9॥

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