ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 12
इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृळी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः। बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । सु॒ऽत्रामा॑ । स्वऽवा॑न् । अवः॑ऽभिः । सु॒ऽमृ॒ळी॒कः । भ॒व॒तु॒ । वि॒श्वऽवे॑दाः । बाध॑ताम् । द्वेषः॑ । अभ॑यम् । कृ॒णो॒तु॒ । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑यः । स्या॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृळीको भवतु विश्ववेदाः। बाधतां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः। सुऽत्रामा। स्वऽवान्। अवःऽभिः। सुऽमृळीकः। भवतु। विश्वऽवेदाः। बाधताम्। द्वेषः। अभयम्। कृणोतु। सुऽवीर्यस्य। पतयः। स्याम ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 12
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृशो भवेत्तस्य रक्षा कैः कार्येत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यः सुत्रामा स्ववान् विश्ववेदा इन्द्रोऽवोभिरस्माकं सुमृळीको भवतु द्वेषो बाधतामभयं कृणोतु तस्य सुवीर्यस्य वयं पतयः स्याम तस्य रक्षका यूयमपि भवत ॥१२॥
पदार्थः
(इन्द्रः) दुष्टताविदारको राजा (सुत्रामा) सुष्ठुरक्षकः (स्ववान्) बहवः स्वे विद्यन्ते यस्य सः (अवोभिः) रक्षणादिभिः (सुमृळीकः) सुष्ठु सुखकरः (भवतु) (विश्ववेदाः) यो विश्वं विज्ञानं वेत्ति (बाधताम्) निवारयतु (द्वेषः) द्वेषादिदोषयुक्तान् (अभयम्) भयराहित्यम् (कृणोतु) करोतु (सुवीर्यस्य) शोभनं वीर्यं पराक्रमो ब्रह्मचर्यं यस्य तस्य (पतयः) पालकाः स्वामिनः (स्याम) ॥१२॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यो राजाऽखिलविद्यः कृतपूर्णब्रह्मचर्यो बहुमित्रः स्वात्मवच्छ्रेष्ठस्य रक्षको दुष्टस्य दण्डकृत्सर्वतो निर्भयतां करोति तस्य रक्षा सर्वैः सर्वथा कर्त्तव्या ॥१२॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर वह कैसा हो और उसकी रक्षा कौन करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (सुत्रामा) उत्तम प्रकार रक्षा करनेवाला (स्ववान्) बहुत अपने जन विद्यमान जिसके ऐसा (विश्ववेदाः) सम्पूर्ण विज्ञान को जाननेवाला (इन्द्रः) दुष्टता का नाश करनेवाला (अवोभिः) रक्षण आदि से हम लोगों का (सुमृळीकः) उत्तम प्रकार सुख करनेवाला (भवतु) हो तथा (द्वेषः) आदि दोषों से युक्त जनों का (बाधताम्) निवारण करे और (अभयम्) निर्भयपन (कृणोतु) करे, उस (सुवीर्यस्य) सुन्दर पराक्रम वा ब्रह्मचर्य्यवाले के हम लोग (पतयः) पालन करनेवाले स्वामी (स्याम) होवें, उसके रक्षक आप लोग भी हूजिये ॥१२॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो राजा सम्पूर्ण विद्या और किये हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य्य से युक्त बहुत मित्रोंवाला और अपने सदृश श्रेष्ठ का रक्षक, दुष्टों को दण्ड देनेवाला, सब प्रकार से निर्भयता करता है, उसकी रक्षा सब को चाहिये कि सब प्रकार से करें ॥१२॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जो राजा संपूर्ण विद्या, ब्रह्मचर्ययुक्त अनेक मित्र असलेला व स्वतःप्रमाणे श्रेष्ठांचा रक्षक, दुष्टांना दंड देणारा, सर्व प्रकारे निर्भय असतो त्याचे सर्वांनी सर्व प्रकारे रक्षण करावे. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord omniscient, mighty protector and sole lord of his own essential powers may, we pray, be kind and gracious with his modes of protection and advancement, ward off hate and enmity and grant us freedom from fear so that we may be masters and promoters of the noble strength and honour of life.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal