ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 23
ऋषिः - गर्गः
देवता - प्रस्तोकस्य सार्ञ्जयस्य दानस्तुतिः
छन्दः - आसुरीपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
दशाश्वा॒न्दश॒ कोशा॒न्दश॒ वस्त्राधि॑भोजना। दशो॑ हिरण्यपि॒ण्डान्दिवो॑दासादसानिषम् ॥२३॥
स्वर सहित पद पाठदश॑ । अश्वा॑न् । दश॑ । कोशा॑न् । दश॑ । वस्त्रा॑ । अधि॑ऽभोजना । दसो॒ इति॑ । हि॒र॒ण्य॒ऽपि॒ण्डान् । दिवः॑ऽदासात् । अ॒सा॒नि॒ष॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
दशाश्वान्दश कोशान्दश वस्त्राधिभोजना। दशो हिरण्यपिण्डान्दिवोदासादसानिषम् ॥२३॥
स्वर रहित पद पाठदश। अश्वान्। दश। कोशान्। दश। वस्त्रा। अधिऽभोजना। दशो इति। हिरण्यऽपिण्डान्। दिवःऽदासात्। असानिषम् ॥२३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 23
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरमात्या राज्ञः किं प्राप्नुयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र राजन् ! दिवोदासात्त्वद्दशाऽश्वान् दश कोशान् दश वस्त्रा दशाऽधिभोजना दशो हिरण्यपिण्डांश्चाऽहमसानिषं प्राप्नुयाम् ॥२३॥
पदार्थः
(दश) एतत्सङ्ख्याकान् (अश्वान्) तुरङ्गादीन् (दश) (कोशान्) दशगुणधनपूर्णान् (दश) दशगुणानि (वस्त्रा) वस्त्राणि (अधिभोजना) अधिकानि भोजनानि (दशो) (हिरण्यपिण्डान्) सुवर्णादिसमूहान् (दिवोदासात्) कमनीयधनदातुः (असानिषम्) सम्भज्य प्राप्नुयाम् ॥२३॥
भावार्थः
ये धार्मिकाः शूरवीराः शत्रूणां विजेतारो राजभक्ताः प्रजापालनतत्परा विद्वांसोऽमात्याः स्युस्तेऽश्वादीन् सर्वान् पदार्थान् दशगुणान् राजसकाशात् प्राप्नुयुरिति ॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मन्त्रीजन राजा से क्या प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे ऐश्वर्य्य से युक्त राजन् ! (दिवोदासात्) सुन्दर धन के देनेवाले आप से (दश) दश सङ्ख्या से युक्त (अश्वान्) घोड़ों और (दश) दश सङ्ख्या से युक्त (कोशान्) दशगुने धन से पूर्ण खजानों और (दश) दश प्रकार के (वस्त्रा) वस्त्रों को और दश प्रकार के (अधिभोजना) अधिक भोजनों को और (दशो) दश प्रकार के (हिरण्यपिण्डान्) सुवर्ण आदि समूहों को मैं (असानिषम्) संविभाग करके प्राप्त होऊँ ॥२३॥
भावार्थ
जो धार्मिक, शूरवीर और शत्रुओं के जीतनेवाले, राजभक्त और प्रजा के पालन में तत्पर विद्वान् मन्त्रीजन होवें, वे घोड़े आदि सम्पूर्ण पदार्थों को दशगुने राजा के समीप से प्राप्त होवें ॥२३॥
विषय
राजा का विभूतिदान
भावार्थ
मैं ( दिवः-दासात् ) कामना करने योग्य ज्ञानप्रकाश और भूमि आदि के नाना पदार्थों के देने वाले से ( दश अश्वान् ) दश अश्व ( दश ) दश (कोपान्) कोश ( दश अधि-भोजना ) दस प्रकार के उत्तम २ भोजन और ( वस्त्रा ) पहनने के वस्त्र ( दशो हिरण्य-पिण्डान्) दस सुवर्णादि के पिण्ड भी (असानिषम् ) प्राप्त करूं । (२) अध्यात्म में अश्व इन्द्रियें, दश कोश अन्नमयादि पांच, अन्तःकरणचतुष्ट, और आत्मा इन्द्रियों के दश अर्थ, दशधा गात्र दश पिण्ड ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गर्ग ऋषिः । १ – ५ सोमः । ६-१९, २०, २१-३१ इन्द्रः । २० - लिंगोत्का देवताः । २२ – २५ प्रस्तोकस्य सार्ञ्जयस्य दानस्तुतिः । २६–२८ रथ: । २९ – ३१ दुन्दुभिर्देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, २१, २२, २८ निचृत्त्रिष्टुप् । ४, ८, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ६, ७, १०, १५, १६, १८, २०, २९, ३० त्रिष्टुप् । २७ स्वराट् त्रिष्टुप् । २, ९, १२, १३, २६, ३१ भुरिक् पंक्तिः । १४, १७ स्वराटू पंकिः । २३ आसुरी पंक्ति: । १९ बृहती । २४, २५ विराड् गायत्री ।। एकत्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
प्रस्तोक की आराधना
पदार्थ
[१] गत मन्त्र में वर्णित प्रस्तोक, ज्ञान से चमकनेवाला आराधक, आराधना करता हुआ कहता है कि मैंने (दिवोदासात्) = उस ज्ञान के देनेवाले महान् प्रभु से ही (दश अश्वान्) = दस इन्द्रियाश्वों को (असानिषम्) = प्राप्त किया है । दश (कोशान्) = इन इन्द्रियों के दस कोशों को भी उसी प्रभु से ही तो लिया है। [२] (दश वस्त्रा) = इन इन्द्रिय रूप गौओं के रक्षण के लिये दस प्राणरूप वस्त्रों को भी प्रभु ने ही मुझे प्राप्त कराया है। ये दश प्राणरूप वस्त्र (आधिभोजता) = आधिक्येन हमारा पालन करनेवाले हैं [भुज्पालने] । (उ) = और (दश) = दस (हिरण्यपिण्डान्) = हितरमणीय दस इन्द्रियों के आधारभूत शरीरों को [पिण्ड-देह] भी प्रभु ने ही तो हमारे लिये दिया है। शरीर एक है, पर दस इन्द्रियाश्वों से जुता यह शरीर-रथ यहाँ 'दश' शब्द से विशेषित हुआ है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रस्तोक अनुभव करता है कि ये दस इन्द्रियाँ, दस इन्द्रियशक्तियाँ, दश प्राण, दशेन्द्रिययुक्त ये शरीर सब उस प्रभु के हैं। ये सब प्रभु ने ही तो मुझे प्राप्त कराये हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे धार्मिक, शूरवीर, शत्रूंना जिंकणारे, राजभक्त व प्रजापालनात तत्पर विद्वान मंत्री असतील त्यांना घोडे इत्यादी संपूर्ण पदार्थांच्या दहापट राजाकडून प्राप्त झाले पाहिजे. ॥ २३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let me receive and enjoy in common ten transports, ten treasures of wealth, ten garments, ten kinds of food and ten pieces of gold from the brilliant and generous giver.$(Swami Dayanand suggests in his commentary that the ratio at the maximum between the lowest and highest paid working partner in the social order should be one to ten.)
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should the ministers receive from a king-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! let we get from you, who are giver of desirable wealth, ten fold horses and other things, ten treasures of wealth, ten fold clothes and abundant riches along with, tenfold stores of gold.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who are righteous, brave conqueror of enemies, loyal to the king, engaged in the work of nourishing the people and enlightened ministers, should receive the tenfold gift of horses and other things from the king, for distribution.
Foot Notes
(दिवोदासत्) कमनीयधनदातुः। दिवु-धातोः कन्त्यर्य्थमादाय कमनीय धनदासुः । इति व्याख्यानम् कान्ति:- कामना । दासृ-दाने (भ्वा.) | = From the giver of desirable wealth. (असनिषम्) संभज्य प्राप्नुयाम् । वण-संभक्तौ (भ्वा०)। = May get for distribution.
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