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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गर्गः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्र॒ प्र णः॑ पुरए॒तेव॑ पश्य॒ प्र नो॑ नय प्रत॒रं वस्यो॒ अच्छ॑। भवा॑ सुपा॒रो अ॑तिपार॒यो नो॒ भवा॒ सुनी॑तिरु॒त वा॒मनी॑तिः ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । प्र । नः॒ । पु॒र॒ए॒ताऽइ॑व । पश्य॑ । प्र । नः॒ । न॒य॒ । प्र॒ऽत॒रम् । वस्यः॑ । अच्छ॑ । भव॑ । सु॒ऽपा॒रः । अ॒ति॒ऽपा॒र॒यः । नः॒ । भव॑ । सुऽनी॑तिः । उ॒त । वा॒मऽनी॑तिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र प्र णः पुरएतेव पश्य प्र नो नय प्रतरं वस्यो अच्छ। भवा सुपारो अतिपारयो नो भवा सुनीतिरुत वामनीतिः ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र। प्र। नः। पुरएताऽइव। पश्य। प्र। नः। नय। प्रऽतरम्। वस्यः। अच्छ। भव। सुऽपारः। अतिऽपारयः। नः। भव। सुऽनीतिः। उत। वामऽनीतिः ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! त्वं पुरुएतेव नः प्र पश्य नः प्रतरमच्छ प्र णय नः प्रतरं वस्योऽच्छ प्रणय नः सुपारोऽतिपारयो भवा सुनीतिरुत वामनीतिर्भव ॥७॥

    पदार्थः

    (इन्द्र) दुष्टविनाशक राजन् (प्र) (नः) अस्माकम् (पुरएतेव) (पश्य) (प्र) (नः) अस्मान् (नय) (प्रतरम्) शत्रूणां बलोल्लङ्घनम् (वस्यः) वसीयोऽतिशयेन सुष्ठुधनम् (अच्छ) (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुपारः) शोभनः पारो यस्मात्सः (अतिपारयः) योऽत्यन्तं पारयति सः (नः) अस्माकम् (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुनीतिः) शोभना नीतिर्न्यायो यस्य सः (उत) (वामनीतिः) वामा प्रशंसिता नीतिर्यस्य सः ॥७॥

    भावार्थः

    यो राजा मनुष्यपरीक्षकः सर्वेषां न्यायपथेनैश्वर्य्यप्रापको दुःखात्सङ्ग्रामाच्च पारे गमयिता सदा धर्म्यनीतिर्भवेत्स एवात्र प्रशंसां लभेत ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) दुष्टों के नाश करनेवाले राजन् ! आप (पुरएतेव) आगे चलनेवाले के सदृश (नः) हम लोगों को (प्र, पश्य) अच्छे प्रकार देखिये और (नः) हम लोगों के (प्रतरम्) शत्रुओं के बल के उल्लङ्घन को (अच्छ) अच्छे प्रकार (प्र, नय) प्राप्त करिये और (नः) हम लोगों के शत्रुओं के बल का उल्लङ्घन और (वस्यः) अतिशय धन को अच्छे प्रकार प्राप्त कराइये और हम लोगों का (सुपारः) सुन्दर पार जिनसे ऐसे (अतिपारयः) अत्यन्त पार करनेवाले (भवा) हूजिये तथा (सुनीतिः) अच्छे न्यायवाले और (उत) भी (वामनीतिः) प्रशंसित नीतिवाले (भवा) हूजिये ॥७॥

    भावार्थ

    जो राजा मनुष्यों की परीक्षा लेनेवाला और सब को न्याय मार्ग से ऐश्वर्य्य को प्राप्त कराने और दुःख और सङ्ग्राम से पार पहुँचानेवाला और सदा धर्मपूर्वक नीतियुक्त होवे, वही इस संसार में प्रशंसा को पावे ॥७॥

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    विषय

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    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! विद्वन् ! तू ( नः ) हमें ( पुरः एता इव ) अग्रगामी नायक के समान ( प्र पश्य ) अच्छी प्रकार देख, हमारे सुख दुःख का अच्छी प्रकार विचार कर । ( नः ) हमें ( वस्यः ) श्रेष्ठ धन ( प्रतरं ) सब दुःखों से पार करने वाला ( अच्छ प्र नय ) अच्छी प्रकार हमें दे । तू ( सुपार: ) उत्तम पूर्ण और पालन करने हारा होकर ( अति पारयः भव) सब संकटों से पार करने वाला हो । और तू (नः) हमारे भी ( सु-नीतिः ) उत्तम सुखकारक नीति वाला और ( वाम-नीतिः ) सुन्दर नीति वाला ( भव ) हो ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गर्ग ऋषिः । १ – ५ सोमः । ६-१९, २०, २१-३१ इन्द्रः । २० - लिंगोत्का देवताः । २२ – २५ प्रस्तोकस्य सार्ञ्जयस्य दानस्तुतिः । २६–२८ रथ: । २९ – ३१ दुन्दुभिर्देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, २१, २२, २८ निचृत्त्रिष्टुप् । ४, ८, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ६, ७, १०, १५, १६, १८, २०, २९, ३० त्रिष्टुप् । २७ स्वराट् त्रिष्टुप् । २, ९, १२, १३, २६, ३१ भुरिक् पंक्तिः । १४, १७ स्वराटू पंकिः । २३ आसुरी पंक्ति: । १९ बृहती । २४, २५ विराड् गायत्री ।। एकत्रिंशदृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    [भवा सुपारः, अतिपारयः नः] सुनीति:-वामनीतिः

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (नः) = हमें (पुरः एता इव) = आगे चलनेवाले मार्गदर्शक की तरह (प्रपश्य) = देखिये। जैसे नेता अनुयायियों का ध्यान करता है, उसी प्रकार आप हमारा ध्यान करिये। (नः) = हमें (वस्यः) = श्रेष्ठ धन की (अच्छ) = ओर (प्रतरम्) = खूब ही (प्रनय) = ले चलिये। आपके अनुग्रह से हम उत्तम धनों को प्राप्त होनेवाले हों। [२] आप (सुपारः भव) = अच्छी प्रकार भवसागर से हमें पार करनेवाले होइये । (नः) = हमें (अतिपारयः) = शत्रुओं को लाँघकर पार होनेवाला करिये, हम शत्रुओं के जाल में न फँसें। आप (सुनीतिः भव) = हमें उत्तमता से ले चलनेवाले होइये (उत) = और (वामनीतिः) = [ श्रेष्ठ प्रापणः] श्रेष्ठ व्यक्तियों को प्राप्त करानेवाले होइये। आपके अनुग्रह से उत्तम व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर हम उत्तम बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमारे प्रणेता हों, उत्कृष्ट धनों को प्राप्त करायें। कष्टों व वासनाओं से पार करें। उत्तम मार्ग से ले चलें और श्रेष्ठ पुरुषों का सम्पर्क प्राप्त करायें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो राजा माणसांची परीक्षा घेणारा, सर्वांना न्याय मार्गाने ऐश्वर्य प्राप्त करून देणारा, दुःख व युद्धाच्या पलीकडे पोहोचविणारा व सदैव धर्मनीतियुक्त असेल त्याचीच या जगात प्रशंसा होते. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, leader and commander of world power, look at us and watch like a leader moving fast forward. Lead us to wealth of the world across the oceans. Be the unswerving pilot of the nation, take us to the shores beyond and lead us on by the policy and practice of nobility and gracious living.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should a king be-is further stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Indra destroyer of the wicked, like a good leader, look upon us with love. Lead us on to surpass the strength of our enemies. Convey to us very good wealth by righteous means. O excellent guardian ! bear us well through peril and lead us on to wealth with careful guidance, the follower of a good policy consistent with justice, you be the ruler of an admirable policy.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That king alone can get real admiration, who is true examiner of men, leading men onward to prosperity treading on the path of justice, taking men across miseries and war, and following a righteous policy.

    Foot Notes

    (वस्य:) वसियोतिशयेन सुष्ठुधनम्। = Very good wealth. (वामनीतिः) वामा प्रशंसिता नीतिर्यस्य सः । वाम इति प्रशस्यनाम (NG 3,8)। = A man of admirable policy. (प्रतरम्) शत्रूणां बलोल्लङ्घनम् । तृ-प्लवनसन्तरणयोः (भ्वा०) अत्र सन्तरणार्थ: । = Surpassing the strength of the foes.

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