ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 7
इन्द्र॒ प्र णः॑ पुरए॒तेव॑ पश्य॒ प्र नो॑ नय प्रत॒रं वस्यो॒ अच्छ॑। भवा॑ सुपा॒रो अ॑तिपार॒यो नो॒ भवा॒ सुनी॑तिरु॒त वा॒मनी॑तिः ॥७॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । प्र । नः॒ । पु॒र॒ए॒ताऽइ॑व । पश्य॑ । प्र । नः॒ । न॒य॒ । प्र॒ऽत॒रम् । वस्यः॑ । अच्छ॑ । भव॑ । सु॒ऽपा॒रः । अ॒ति॒ऽपा॒र॒यः । नः॒ । भव॑ । सुऽनी॑तिः । उ॒त । वा॒मऽनी॑तिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र प्र णः पुरएतेव पश्य प्र नो नय प्रतरं वस्यो अच्छ। भवा सुपारो अतिपारयो नो भवा सुनीतिरुत वामनीतिः ॥७॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र। प्र। नः। पुरएताऽइव। पश्य। प्र। नः। नय। प्रऽतरम्। वस्यः। अच्छ। भव। सुऽपारः। अतिऽपारयः। नः। भव। सुऽनीतिः। उत। वामऽनीतिः ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वं पुरुएतेव नः प्र पश्य नः प्रतरमच्छ प्र णय नः प्रतरं वस्योऽच्छ प्रणय नः सुपारोऽतिपारयो भवा सुनीतिरुत वामनीतिर्भव ॥७॥
पदार्थः
(इन्द्र) दुष्टविनाशक राजन् (प्र) (नः) अस्माकम् (पुरएतेव) (पश्य) (प्र) (नः) अस्मान् (नय) (प्रतरम्) शत्रूणां बलोल्लङ्घनम् (वस्यः) वसीयोऽतिशयेन सुष्ठुधनम् (अच्छ) (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुपारः) शोभनः पारो यस्मात्सः (अतिपारयः) योऽत्यन्तं पारयति सः (नः) अस्माकम् (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुनीतिः) शोभना नीतिर्न्यायो यस्य सः (उत) (वामनीतिः) वामा प्रशंसिता नीतिर्यस्य सः ॥७॥
भावार्थः
यो राजा मनुष्यपरीक्षकः सर्वेषां न्यायपथेनैश्वर्य्यप्रापको दुःखात्सङ्ग्रामाच्च पारे गमयिता सदा धर्म्यनीतिर्भवेत्स एवात्र प्रशंसां लभेत ॥७॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) दुष्टों के नाश करनेवाले राजन् ! आप (पुरएतेव) आगे चलनेवाले के सदृश (नः) हम लोगों को (प्र, पश्य) अच्छे प्रकार देखिये और (नः) हम लोगों के (प्रतरम्) शत्रुओं के बल के उल्लङ्घन को (अच्छ) अच्छे प्रकार (प्र, नय) प्राप्त करिये और (नः) हम लोगों के शत्रुओं के बल का उल्लङ्घन और (वस्यः) अतिशय धन को अच्छे प्रकार प्राप्त कराइये और हम लोगों का (सुपारः) सुन्दर पार जिनसे ऐसे (अतिपारयः) अत्यन्त पार करनेवाले (भवा) हूजिये तथा (सुनीतिः) अच्छे न्यायवाले और (उत) भी (वामनीतिः) प्रशंसित नीतिवाले (भवा) हूजिये ॥७॥
भावार्थ
जो राजा मनुष्यों की परीक्षा लेनेवाला और सब को न्याय मार्ग से ऐश्वर्य्य को प्राप्त कराने और दुःख और सङ्ग्राम से पार पहुँचानेवाला और सदा धर्मपूर्वक नीतियुक्त होवे, वही इस संसार में प्रशंसा को पावे ॥७॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो राजा माणसांची परीक्षा घेणारा, सर्वांना न्याय मार्गाने ऐश्वर्य प्राप्त करून देणारा, दुःख व युद्धाच्या पलीकडे पोहोचविणारा व सदैव धर्मनीतियुक्त असेल त्याचीच या जगात प्रशंसा होते. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, leader and commander of world power, look at us and watch like a leader moving fast forward. Lead us to wealth of the world across the oceans. Be the unswerving pilot of the nation, take us to the shores beyond and lead us on by the policy and practice of nobility and gracious living.
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