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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 14
    ऋषिः - गर्गः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अव॒ त्वे इ॑न्द्र प्र॒वतो॒ नोर्मिर्गिरो॒ ब्रह्मा॑णि नि॒युतो॑ धवन्ते। उ॒रू न राधः॒ सव॑ना पु॒रूण्य॒पो गा व॑ज्रिन्युवसे॒ समिन्दू॑न् ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अव॑ । त्वे इति॑ । इ॒न्द्र॒ । प्र॒ऽवतः॑ । न । ऊ॒र्मिः । गिरः॑ । ब्रह्मा॑णि । नि॒ऽयुतः॑ । ध॒व॒न्ते॒ । उ॒रु । न । राधः॑ । सव॑ना । पु॒रूणि॑ । अ॒पः । गाः । व॒ज्रि॒न् । यु॒व॒से॒ । सम् । इन्दू॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अव त्वे इन्द्र प्रवतो नोर्मिर्गिरो ब्रह्माणि नियुतो धवन्ते। उरू न राधः सवना पुरूण्यपो गा वज्रिन्युवसे समिन्दून् ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अव। त्वे इति। इन्द्र। प्रऽवतः। न। ऊर्मिः। गिरः। ब्रह्माणि। निऽयुतः। धवन्ते। उरु। न। राधः। सवना। पुरूणि। अपः। गाः। वज्रिन्। युवसे। सम्। इन्दून् ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 14
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तं राजानं के गुणा सेवन्त इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे वज्रिन्निन्द्र ! यस्त्वे नियुतो गिरो ब्रह्माणि प्रवत ऊर्मिर्नाऽव धवन्ते, उरू राधो न पुरूणि सवनाऽव धवन्ते यतोऽपो गा इन्दूँश्च संयुवसे तस्माद्भवाञ्छ्रेष्ठोऽस्ति ॥१४॥

    पदार्थः

    (अव) (त्वे) त्वयि (इन्द्र) राजन् (प्रवतः) नम्रान् (न) (ऊर्मिः) तरङ्गः (गिरः) सुवाचः (ब्रह्माणि) धनान्यन्नानि वा (नियुतः) निश्चितसत्यवादाः (धवन्ते) चालयन्ति (उरू) बहु (न) इव (राधः) धनानि (सवना) सवनानि प्रेरणानि (पुरूणि) बहूनि (अपः) जलानि (गाः) भूमीर्वाचो वा (वज्रिन्) शस्त्रास्त्रयुक्त (युवसे) संयोजयसि (सम्) (इन्दून्) आह्लादान् ॥१४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये ब्रह्मचर्यादीनि शुभानि कर्माण्याचरन्ति तान्निम्नदेशं जलमिव पुरुषार्थिनं श्रीरिव सर्वा विद्याः सकलमैश्वर्य्यमखिलानन्दश्च प्राप्नुवन्ति ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उस राजा का कौन गुण सेवन करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वज्रिन्) शस्त्र और अस्त्रों से युक्त (इन्द्र) राजन् ! जो (त्वे) आप में (नियुतः) निश्चित सत्यवाद जिनमें ऐसी (गिरः) श्रेष्ठ वाणियाँ (ब्रह्माणि) धनों वा अन्नों को और (प्रवतः) निम्नों को (ऊर्मिः) लहर (न) जैसे वैसे (अव, धवन्ते) चलाती हैं और (उरू) बहुत (राधः) धनों को (न) जैसे वैसे (पुरूणि) बहुत (सवना) प्रेरणायें प्राप्त होती हैं और जिस कारण (अपः) जलों (गाः) भूमि वा वाणियों को और (इन्दून्) आनन्दों को (सम्) (युवसे) संयुक्त करते हो, इससे आप श्रेष्ठ हो ॥१४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो ब्रह्मचर्य्य आदि श्रेष्ठ कर्मों को करते हैं, उनको नीचे के स्थान को जल जैसे और पुरुषार्थी को लक्ष्मी जैसे वैसे सम्पूर्ण विद्या, सम्पूर्ण ऐश्वर्य और सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त होते हैं ॥१४॥

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    विषय

    सर्वस्तुत्य प्रभु ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (ऊर्मिः प्रवतः न) जल राशि, या जल स्रोत, वा जल-तरंग जिस प्रकार नीचे प्रदेशों की ओर जाते हैं उसी प्रकार ( गिरः ) स्तुतिकर्त्ताओं की वाणियां, और विद्वान् जन, ( ब्रह्माणि ) समस्त वेद और धनैश्वर्य, (नि-युतः ) लक्षों की संख्या में वा (नि-युतः ) तेरे अधीन रहकर युद्ध करने वाले, वा अधीन नियुक्त अश्वादि जन, (त्वे) तेरे अधीन ही ( अव धवन्ते ) चलते हैं तुझको पति के समान स्वीकार करते हैं । तू भी हे ( वज्रिन् ) बलवन् ! ( पुरूणि सवनानि ) बहुत से ऐश्वर्यों को ( ऊरु राधः न ) बहुत से धन के समान और ( अपः ) आप्त प्रजाजनों को ( गाः ) भूमियों, उत्तम बाणियों और ( इन्द्रम् ) आह्लादक दयालु पुरुषों को भी ( सं युवसे ) अच्छी प्रकार प्राप्त करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गर्ग ऋषिः । १ – ५ सोमः । ६-१९, २०, २१-३१ इन्द्रः । २० - लिंगोत्का देवताः । २२ – २५ प्रस्तोकस्य सार्ञ्जयस्य दानस्तुतिः । २६–२८ रथ: । २९ – ३१ दुन्दुभिर्देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, २१, २२, २८ निचृत्त्रिष्टुप् । ४, ८, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ६, ७, १०, १५, १६, १८, २०, २९, ३० त्रिष्टुप् । २७ स्वराट् त्रिष्टुप् । २, ९, १२, १३, २६, ३१ भुरिक् पंक्तिः । १४, १७ स्वराटू पंकिः । २३ आसुरी पंक्ति: । १९ बृहती । २४, २५ विराड् गायत्री ।। एकत्रिंशदृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उरू राधः-सवना पुरूणि

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (नियुतः) = [a praiser] स्तोता की (गिरः) = उच्चारण की गई (ब्रह्माणि) = स्तुति वाणियाँ (त्वे अवधवन्ते) = आपकी ओर इस प्रकार शीघ्रता से प्राप्त होती हैं (न) = जैसे कि (ऊर्मिः) = जल (संघात प्रवतः) = निम्न देशों की ओर। [२] इन स्तुति वाणियों के होने पर, हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त प्रभो! आप (उरू राधः न) = विशाल ऐश्वर्य की तरह (पुरूणि सवना) = पालक व पूरक यज्ञों को, (अपः) = कर्मों को (गाः) = ज्ञान की वाणियों को तथा (इन्दून्) = सोमकणों को (संयुवसे) = हमारे साथ सम्यक् जोड़ते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ– उपासकों के लिये प्रभु ऐश्वर्यों को व यज्ञों को [यज्ञ सिद्धि के लिये ऐश्वर्यों को], कर्मों व ज्ञान की वाणियों को [ज्ञानपूर्वक किये जानेवाले कर्मों को] तथा शक्ति के प्रापण के लिये सोमकणों को प्राप्त कराते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे ब्रह्मचारी इत्यादी श्रेष्ठ कर्म करतात ते निम्न स्थानी जसे जल व पुरुषार्थी लोकांना जशी लक्ष्मी प्राप्त होते तसे संपूर्ण विद्या, ऐश्वर्य व संपूर्ण आनंद प्राप्त करतात. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, O ruler of the world, like streams of flood rushing down to the sea, all voices of prayer and adoration, offers of homage and chants of the holy Word dedicated to your service rise, reach and concentrate in you. O wielder of the thunderbolt of power and justice, you hold, integrate, treasure and distribute immense wealth of means and materials of success, yajnic sessions and inspirations, wide ranging waters and social programmes of action, lands, cows and lights of knowledge, and all things of beauty and joy leading to mental and spiritual bliss of peace.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Virtues of a king-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (King) ! you are the wielder of the thunderbolt-like powerful weapons and missiles. Sure and true good words, wealth and grains come to you as waters of rivers rushing down a slope. Likewise abundant wealth, good urges move · you. You unite waters, lands or speeches and joys, therefore you are the best.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All sciences, all wealth and all joy are attained by those people, who perform good actions (like Brahmacharya-abstinence). These things go to such persons, as water goes down a slope and wealth comes to an industrious person.

    Foot Notes

    (नियत:) निश्चित-सत्यवादाः ।= Sure and true words. (ब्रह्माणि धनान्यन्नानिवा । ब्रह्मइति धननाम (NG 2,10) ब्रह्म इति अन्ननाम (NG 2, 7)= Wealth or food materials. ( इन्दून) आह्लावान् । इदि-परमेश्वर्यें । चदि-आह्लादने (भ्वा.)। = Joys.

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