Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 20
    ऋषिः - गर्गः देवता - लिङ्गोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒ग॒व्यू॒ति क्षेत्र॒माग॑न्म देवा उ॒र्वी स॒ती भूमि॑रंहूर॒णाभू॑त्। बृह॑स्पते॒ प्र चि॑कित्सा॒ गवि॑ष्टावि॒त्था स॒ते ज॑रि॒त्र इ॑न्द्र॒ पन्था॑म् ॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग॒व्यू॒ति । क्षेत्र॑म् । आ । अ॒ग॒न्म॒ । दे॒वाः॒ । उ॒र्वी । स॒ती । भूमिः॑ । अं॒हू॒र॒णा । अ॒भू॒त् । बृह॑स्पते । प्र । चि॒कि॒त्स॒ । गोऽइ॑ष्टौ । इ॒त्था । स॒ते । ज॒रि॒त्रे । इ॒न्द्र॒ । पन्था॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अगव्यूति क्षेत्रमागन्म देवा उर्वी सती भूमिरंहूरणाभूत्। बृहस्पते प्र चिकित्सा गविष्टावित्था सते जरित्र इन्द्र पन्थाम् ॥२०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अगव्यूति। क्षेत्रम्। आ। अगन्म। देवाः। उर्वी। सती। भूमिः। अंहूरणा। अभूत्। बृहस्पते। प्र। चिकित्स। गोऽइष्टौ। इत्था। सते। जरित्रे। इन्द्र। पन्थाम् ॥२०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 20
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 33; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः कथमारोग्यं प्राप्नुयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे बृहस्पते चिकित्सेन्द्र वैद्यराजंस्त्वत्सहायेन या उर्वी सत्यंहूरणा भूमिरभूद्यत्राऽगव्यूति क्षेत्रमभूतां देवा वयमागन्मेत्था गविष्टौ सते जरित्रे पन्थां प्रागन्म ॥२०॥

    पदार्थः

    (अगव्यूति) क्रोशद्वयपरिमाणरहितम् (क्षेत्रम्) क्षियन्ति निवसन्ति तं देशम् (आ) (अगन्म) समन्तात् प्राप्नुयाम (देवाः) विद्वांसः (उर्वी) बहुफलाद्युपेता (सती) वर्त्तमाना (भूमिः) पृथिवी (अंहूरणा) येंऽहयन्ति तेंऽहवो गन्तारस्तेषां रणः सङ्ग्रामो यस्यां सा (अभूत्) भवति (बृहस्पते) बृहतां पालक (प्र) (चिकित्सा) यश्चिकित्सति रोगपरीक्षां करोति तत्संबुद्धौ। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गविष्टौ) गौः सुशिक्षिताया वाचः सङ्गतौ (इत्था) अनेन प्रकोरणऽस्माद्धेतोर्वा (सते) (जरित्रे) स्तावकाय (इन्द्र) रोगदोषनिवारक (पन्थाम्) पन्थानम् ॥२०॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! ये सद्वैद्याः स्युस्तन्मित्रतयाऽरोगा दीर्घायुषो बलिष्ठा विद्वांसो भूत्वा भूमिराज्यं प्राप्य यत्र कुत्र विमानादियानैर्गत्वाऽऽगत्य विद्वन्मार्गमाश्रयन्तु ॥२०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य कैसे आरोग्य को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (बृहस्पते) बड़ों के पालन करने (चिकित्सा) रोगों की परीक्षा करने और (इन्द्र) रोग और दोषों के दूर करनेवाले वैद्यराज ! आपके सहाय से (उर्वी) बहुत फल आदि से युक्त (सती) वर्त्तमान (अंहूरणा) चलनेवालों का सङ्ग्राम जिसमें वह (भूमिः) पृथिवी (अभूत्) होती है और जहाँ (अगव्यूति) दो कोश के परिमाण से रहित (क्षेत्रम्) निवास करते हैं जिस स्थान में ऐसा स्थान होता है उसको (देवाः) विद्वान् हम लोग (आ, अगन्म) सब प्रकार से प्राप्त होवें (इत्था) इस प्रकार से वा इस हेतु से (गविष्टौ) उत्तम प्रकार शिक्षितवाणी की सङ्गति में (सते) वर्त्तमान (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (पन्थाम्) मार्ग को (प्र) अच्छे प्रकार प्राप्त होवें ॥२०॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो श्रेष्ठ वैद्य होवें उनके साथ मित्रता से रोग रहित, अधिक अवस्थावाले, बलिष्ठ, विद्वान् हो और भूमि के राज्य को प्राप्त होकर जहाँ कहीं विमान आदि वाहनों से जा-आ कर विद्वानों के मार्ग का आश्रयण करो ॥२०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मार्गरहित क्षेत्र में मार्ग के ज्ञान की प्रार्थना । मार्गरहित क्षेत्र की अध्यात्म व्याख्या ।

    भावार्थ

    हे ( देवाः ) विद्वान् पुरुषो ! यह ( भूमिः ) भूमि ( उर्वी सती ) बहुत बड़ी होती हुई ( अंहू-रणा ) आने वाले प्राणियों से रण अर्थात् परस्पर युद्ध और रमण क्रीड़ा आदि करने योग्य ( अभूत् ) होती रही है । इस भूमि में हम लोग ( अगव्यूति क्षेत्रम् ) विना मार्ग के क्षेत्र या निवासार्थ भूमि को यदि ( आगन्म) प्राप्त हों तो हे ( बृहस्पते ) राष्ट्र के स्वामिन् ! तू ( गविष्टौ ) भूमि के प्राप्त करने पर ( प्र चिकित्स ) अच्छी प्रकार गुण दोष आदि जान । ( इत्था ) इस प्रकार (सते जरित्रे) उत्तम सज्जन विद्वान् पुरुष के लिये हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ( पन्थाम् प्र चिकित्स) मार्ग का भी ज्ञान कर । (२) अध्यात्म में महती प्रकृति तमोमय होने से पापमयी होती है । जीव इस देह रूप ऐसे क्षेत्र में आजाता है जहां उसे जन्म-मरण के बन्धन से छूटने का मार्ग नहीं मिलता। इसलिये विद्वान जन मार्ग का उपदेश किया करे । इति त्रयस्त्रिंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गर्ग ऋषिः । १ – ५ सोमः । ६-१९, २०, २१-३१ इन्द्रः । २० - लिंगोत्का देवताः । २२ – २५ प्रस्तोकस्य सार्ञ्जयस्य दानस्तुतिः । २६–२८ रथ: । २९ – ३१ दुन्दुभिर्देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, २१, २२, २८ निचृत्त्रिष्टुप् । ४, ८, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ६, ७, १०, १५, १६, १८, २०, २९, ३० त्रिष्टुप् । २७ स्वराट् त्रिष्टुप् । २, ९, १२, १३, २६, ३१ भुरिक् पंक्तिः । १४, १७ स्वराटू पंकिः । २३ आसुरी पंक्ति: । १९ बृहती । २४, २५ विराड् गायत्री ।। एकत्रिंशदृचं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'अगव्यूति क्षेत्र व अंहूरणा भूमि' का परिवर्तन

    पदार्थ

    [१] (देवाः) = हे देवो! हम (क्षेत्रं आ अगन्म) = ऐसे शरीर रूप क्षेत्र में आ पहुँचे हैं जो (अगव्यूति) = ज्ञान की वाणी रूप गौओं के प्रचार से रहित है, जो केवल भोग-प्रधान प्रतीत होता है। (उर्वी सती) = विशाल होती हुई भी यह (भूमिः) = शरीर-भूमि अंहूरणा (अभूत्) = [अंहव: आहन्तारः दस्यवः, तेषां रमणा] दास्यव भावों के रमणवाली हो गई है। शरीर विशाल है, परन्तु वह देवों का निवास स्थान न रहकर दस्युओं का निवास स्थान बन गया है। [२] हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! आप हमें (गविष्टौ) = ज्ञान की वाणी रूप गौओं के अन्वेषण में (प्र चिकित्सा) = [प्रवेदय] उपाय का ज्ञान दीजिये। ऐसा उपाय सुझाइये कि हम ज्ञान की वाणियों के अन्वेषण में लगे रहें । (इत्था सते) = इस प्रकार [सते=भवते] होते हुए मेरे लिये, दास्यव भावों के रमण का स्थान बने हुए मेरे लिये, हे इन्द्र शत्रु संहारक प्रभो ! (पन्थाम्) = मार्ग को [प्रचिकित्स] =प्रज्ञापित करिये ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारा यह शरीर क्षेत्र ज्ञान की वाणी रूप गौओं के प्रचारवाला हो । यह शरीर भूमि देवों का रमण प्रदेश बने । देव कृपा से हमें ज्ञान रुचि बनें । प्रभु हमें सन्मार्ग की प्रेरणा दें ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जे श्रेष्ठ वैद्य असतील त्यांच्याबरोबर मैत्री करून रोगरहित, दीर्घायुषी, बलवान व विद्वान बना. भूमीचे राज्य प्राप्त करून विमान इत्यादी यानाने इकडे-तिकडे जा-ये करा व विद्वानांच्या मार्गाचा अवलंब करा. ॥ २० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O noble people, brilliant pioneers, let us take over the vast virgin land which is a field good enough for warriors of action to develop and cultivate. O Brhaspati, lord of knowledge, protector and promoter of great things, Indra, destroyer of suffering, master of diagnostics and correctives, let us make the pathway for the development of cattlewealth and advancement of knowledge and education in the service of the present generation of the celebrants of divinity and nobilities of humanity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How can men get health-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (remover of diseases and defects) ! O protector of the great objects! O good physician ! by you and this earth (land) which is full of many fruits etc. and where sometimes battles are razed by active people, going about here and there and where there are plots of some miles, we acquire that land. In this way, in the combination of well-trained and refined speech, we prepare a path för a devotee of God.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! with the friendship, of good vaidyas (physicians) you should become healthy, free from all diseases. long lived, very mighty and enlightened. Then obtaining the kingdom of the earth, you should go from place to place by like aircrafts, vehicles and tread upon the path of the enlightened men.

    Foot Notes

    (अंहुरण) येऽहयन्ति तेऽहवो गन्तारस्तेषाम् रणः संङग्रामो यस्या सा । अहि-गतौ (भ्वा०) गौरिति वाङ्गनाम (NG 1, 11)।= A land where there is some times a battle among the active people. (गविष्टौ)गौः सुशिक्षिताया वाचः सङगतौ। इष्टि: यज देवपूजा संग्तिणकाणदानेषु (भ्वा०) अत्र संगतिकरणार्थः। = In the combination of the well-trained or cultured speech.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top