ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 10
आ नो॒ गोम॑न्तमश्विना सु॒वीरं॑ सु॒रथं॑ र॒यिम् । वो॒ळ्हमश्वा॑वती॒रिष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्वि॒ना॒ । सु॒ऽवीर॑म् । सु॒ऽरथ॑म् । र॒यिम् । वो॒ळ्हम् । अश्व॑ऽवतीः । इषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो गोमन्तमश्विना सुवीरं सुरथं रयिम् । वोळ्हमश्वावतीरिष: ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । गोऽमन्तम् । अश्विना । सुऽवीरम् । सुऽरथम् । रयिम् । वोळ्हम् । अश्वऽवतीः । इषः ॥ ८.५.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अश्विना) हे अश्विनौ ! (नः) अस्मभ्यम् (गोमन्तम्) विद्यायुक्तम् (सुवीरम्) शोभनवीरवत् (सुरथम्) शोभनवाहनवत् (रयिम्) धनम् (अश्वावतीः) व्यापकशक्तिसहिताम् (इषः) इष्टिं च (आवोढम्) प्रापयतम् ॥१०॥
विषयः
पुनः प्रार्थना विधीयते ।
पदार्थः
हे अश्विना=अश्विनौ । युवाम् । सर्वत्र नानाकार्यस्थापनैः । नोऽस्मभ्यम् । गोमन्तम्=प्रशस्तगवादिपशुसहितम् । सुवीरम्=शोभनैर्वीरैरुपेतं विविधमीरयन्ति शत्रूनिति वीराः शूरास्तैर्युक्तं वा । सुरथम्=शोभनरथसमेतम् । रयिम्=धनम् । आवोढम्=आवहतमाहरतम् । तथा च । अश्वावतीरश्वोपेताः । इषः=इष्यमाणानि । काम्यानि=अन्नानि च । आहरतम् ॥१० ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अश्विना) हे व्यापक ! (नः) आप हमारे लिये (गोमन्तम्) विद्यायुक्त (सुवीरम्) शोभनवीरयुक्त (सुरथम्) शोभनवाहनयुक्त (रयिम्) धन को तथा (अश्वावतीः) व्यापकशक्तिसहित (इषः) इष्ट कामनाओं को (आवोढम्) प्राप्त कराएँ ॥१०॥
भावार्थ
हे कर्मयोगिन् तथा ज्ञानयोगिन् ! आप हमको विद्यादान द्वारा तृप्त करें, जिससे हम परमात्मपरायण होकर वेदवाणी का विस्तार करें। हमको दुष्ट दस्यु तथा म्लेच्छ जनों के दमनार्थ शूरवीर पुरुष प्रदान करें, जो हमारी रक्षा में तत्पर रहें और हमें उत्तम वाहन तथा अन्नादि धन प्राप्त कराएँ, जिससे हम अपनी इष्टकामनाओं को पूर्ण कर सकें ॥१०॥
विषय
फिर प्रार्थना कही जाती है ।
पदार्थ
(अश्विना) हे स्वगुणों से सबके हृदय में निवासी राजन् तथा सभाध्यक्ष ! आप दोनों देश-देश में नाना कार्यों की स्थापना करके (नः) हम लोगों के लिये (गोमन्तम्) विविध गवादि पशुयुक्त (सुवीरम्) शोभन वीर संयुक्त (सुरथम्) सुरथ समेत (रयिम्) धन (आ+वोढम्) लाइये । और (अश्वावतीः) शोभनाश्वयुक्त (इषः) कमनीय अन्न एकत्रित कीजिये ॥१० ॥
भावार्थ
विविध देशों की कलाओं, वाणिज्य विद्याओं और उनके साधन यन्त्रादिकों को स्वयं जान और प्रजाओं को जनवाकर देश को सब मिलकर समृद्ध करें ॥१० ॥
विषय
उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! ( नः ) हमें ( गोमन्तं ) गौओं से युक्त, ( सु-वीरं ) उत्तम वीरों वाले ( सुरथं रयिम् ) उत्तम रथसम्पन्न ऐश्वर्य को ( आ वोढम् ) प्राप्त कराओ । और ( अश्वावतीः इषः ) अश्वों वाली सेनाओं को भी ( आ वोढम् ) धारण और वश करो। इति द्वितीय वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'गोमन् - सुवीर - सुरथ' रयि
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! (नः) = हमारे लिये (रयिं आवोढम्) = उस ऐश्वर्य को प्राप्त कराओ, जो (गोमन्तम्) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाला है, (सुवीरम्) = उत्तम सन्तानोंवाला है तथा (सुरथम्) = प्रशस्त शरीर-रथवाला है। प्राणसाधक धन को प्राप्त करता है, परन्तु उसके जीवन में इस धन का घातक प्रभाव नहीं होता। यह धन उसे भोग-विलास में फँसाकर उसकी इन्द्रियों को जीर्ण करनेवाला नहीं होता। इस धन से उसकी सन्तानें कुत्सित प्रभावों से आक्रान्त नहीं हो जाती और उसका यह शरीर ठीक बना रहता है। [२] हे प्राणापानो! आप हमें (अश्वावती:) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाली (इषः) = प्रेरणाओं को प्राप्त कराओ। प्राणसाधना से हमारी कर्मेन्द्रियाँ उत्तम बनें और प्रभु प्रेरणा के अनुसार कार्यों को करनेवाली हों। वह धन प्राप्त होता है जो हमारी इन्द्रियों, सन्तानों व शरीररूप
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से हमें रथों को उत्तम बनाता है। हमारी कर्मेन्द्रियाँ भी उत्तम बनती हैं और प्रभु-प्रेरणा के अनुसार चलती हैं ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, bring us wealth of lands and cows, brave progeny, fast chariots and progress, and bring us nourishment, energy and advancement with motive forces of the highest order of attainment.
मराठी (1)
भावार्थ
हे कर्मयोगी व ज्ञानयोगी ! तुम्ही आम्हाला विद्यादानाने तृप्त करा. ज्यामुळे आम्ही परमात्मपरायण होऊन वेदवाणीचा विस्तार करू. दुष्ट, दस्यू व ग्लेच्छ जनाच्या दमनार्थ आम्हाला शूरवीर प्रदान करा. जे आमचे रक्षण करण्यात तत्पर असावेत व आम्हाला त्यांनी उत्तम वाहन व अन्न इत्यादी धन प्राप्त करून द्यावे. ज्याद्वारे आम्ही आमच्या इष्ट कामना पूर्ण करू. ॥१०॥
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