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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 19
    ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यो ह॑ वां॒ मधु॑नो॒ दृति॒राहि॑तो रथ॒चर्ष॑णे । तत॑: पिबतमश्विना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ह॒ । वा॒म् । मधु॑नः । दृतिः॑ । आऽहि॑तः । र॒थ॒ऽचर्ष॑णे । ततः॑ । पि॒ब॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो ह वां मधुनो दृतिराहितो रथचर्षणे । तत: पिबतमश्विना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । ह । वाम् । मधुनः । दृतिः । आऽहितः । रथऽचर्षणे । ततः । पिबतम् । अश्विना ॥ ८.५.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 19
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अश्विना) हे तेजस्विनौ ! (यः, ह) यश्च (मधुनः, दृतिः) मधुररसस्य पात्रं (वां) युवयोः (रथचर्षणे) रथसमीपे (आहितः) स्थापितः (ततः) तत् पात्रात् (पिबतं) पानं कुरुतम् ॥१९॥

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    विषयः

    कर्तव्यतामुपदिशति ।

    पदार्थः

    हे अश्विना=अश्विनौ राजानौ ! युद्धादिस्थले यदा यदा युवां पिपासेतं तदा तदा । वाम्=युवयोः । रथचर्षणे=रथस्य मध्यभागे । आहितः=स्थापितः । योऽयं ह । मधुनो दृतिश्चर्मपात्रं वर्तते ततस्तस्माद् यथेच्छम् । मधु पिबतम् ॥१९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे तेजस्विन् (यः ह) जो यह (मधुनः, दृतिः) मधुररस का पात्र (वाम्) आपके (रथचर्षणे) रथ से देखने योग्य स्थान में (आहितः) स्थापित किया है (ततः) तिस पात्र से आप (पिबतं) पान करें ॥१९॥

    भावार्थ

    हे तेजस्वी पुरुषो ! यह सोमरस का पात्र, जो आपके रथ से ही दृष्टिगत होता है, आपके पानार्थ स्थापित किया है, कृपा कर इस पात्र से पानकर प्रसन्न हों और हम लोगों को अपने सदुपदेशों से ओजस्वी तथा तेजस्वी बनावें, यह हमारी आपसे प्रार्थना है ॥१९॥

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    विषय

    राजकर्तव्यता का उपदेश करते हैं ।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे राजन् तथा हे सचिव ! युद्धादिस्थल में जब-२ आप पीना चाहें तब-२ (वाम्) आपके (रथचर्षणे) रथ के मध्यभाग में (आहितः) स्थापित (यः+ह) जो यह (मधुनः) मधु का (दृतिः) चर्मपात्र है (ततः) उसमें ले लेकर (पिबतम्) पिया करें ॥१९ ॥

    भावार्थ

    युद्ध में जाने के समय रथ के ऊपर खान-पान की सामग्री भी रख लेनी चाहिये ॥१९ ॥

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    विषय

    उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) रथी सारथिवत्, जितेन्द्रिय, विद्यावान् ) एवं अश्वों, राष्ट्रादि के स्वामी जनो ! जिस प्रकार ( रथचर्षणे आहितः दृतिः ) रथ को खैंचने के स्थान पर जल की मशक लटकी रहती है और रथस्थ पुरुष ( मधुनः पिबतः ) जल का पान और अन्न का भोजन करते हैं उसी प्रकार ( रथ-चर्षणे ) रमण योग्य गृहस्थ वा राष्ट्र कार्य के उठाने के समय भी ( वां ) आप दोनों के लिये ( मधुनः ) मधुर अन्न, जल तथा ऐश्वर्य का ( यः ) जो ( दृतिः ) पात्र ( आहितः ) आदर पूर्वक प्रस्तुत किया जावे ( ततः ) उससे ( पिबतम् ) जल अन्नादि का अवश्य उपभोग करो । अथवा—( यः मधुनः ) जो 'मधु' अर्थात् शत्रु का दमन या पीड़क करने में समर्थ ( दृतिः ) शत्रु को काट गिराने में समर्थ शस्त्रास्त्र सैन्य ( आहितः ) राष्ट्र के सब ओर स्थापित हो ( ततः ) उसके बल पर ( पिबतम् ) राष्ट्र का पालन और उपभोग करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    मधुनः दूति:

    पदार्थ

    [१] हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (यः) = जो (ह) = निश्चय से (वाम्) = आपका (मधुनः दृतिः) = सोम का पात्र है, इस शरीर में सोमरक्षण का स्थान है, (ततः) = उससे (पिबतम्) = इस सोम को पीओ। इस सोम को सारे शरीर में व्याप्त करनेवाले होवो। सोम उत्पन्न होकर सोमयानी में संगृहीत होता है। प्राणसाधना के द्वारा यह इससे निकलकर रुधिर के साथ सारे शरीर में व्याप्त हो जाता है। [२] यह सोम (रथचर्षणे) = रथ को गति देने के निमित्त स्थापित हुआ है। [चर्षणं] सोम के सुरक्षित होने पर ही शरीर रथ की सारी गतियाँ निर्भर करती हैं। सोम-विनाश में इस रथ की सब गतियाँ समाप्त हो जाती हैं और मृत्यु हो जाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- शरीर रथ की ठीक गति इसी बात पर निर्भर करती है कि हम प्राणसाधना द्वारा शरीर में सोम का रक्षण करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, the soma cask of honey sweets installed in the chariot and the pathway is full. Therefrom drink as you come.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे तेजस्वी पुरुषांनो! सोमरसाचे पात्र तुमच्या रथात तुमच्या प्राशनासाठी ठेवलेले आहे. कृपा करून ते प्राशन करा व प्रसन्न व्हा. आम्हाला तुमच्या सदुपदेशाने ओजस्वी व तेजस्वी बनवावे ही आमची तुम्हाला प्रार्थना आहे. ॥१९॥

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