ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 12
ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒स्मभ्यं॑ वाजिनीवसू म॒घव॑द्भ्यश्च स॒प्रथ॑: । छ॒र्दिर्य॑न्त॒मदा॑भ्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मभ्य॑म् । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । म॒घव॑त्ऽभ्यः । च॒ । स॒ऽप्रथः॑ । छ॒र्दिः । य॒न्त॒म् । अदा॑भ्यम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मभ्यं वाजिनीवसू मघवद्भ्यश्च सप्रथ: । छर्दिर्यन्तमदाभ्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मभ्यम् । वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू । मघवत्ऽभ्यः । च । सऽप्रथः । छर्दिः । यन्तम् । अदाभ्यम् ॥ ८.५.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथ निवासगृहप्रार्थना उच्यते।
पदार्थः
(वाजिनीवसू) हे बलेन वसुमन्तौ ! (अस्मभ्यम्, मघवद्भ्यः, च) अस्मभ्यं धनवद्भ्यः च (सप्रथः) प्रसिद्धम् (अदाभ्यम्) अबाध्यम् (छर्दिः) निवासम् (यन्तम्) प्रबध्नीतम् ॥१२॥
विषयः
प्रजाविस्तीर्णगृहादिप्रबन्धोऽपि राज्ञा कर्तव्य इत्युपदिशति ।
पदार्थः
हे वाजिनीवसू=वाजिनी वाणिज्या सुमतिर्यागक्रिया अन्नादि च । सा वसूनि धनानि ययोस्तौ । युवाम् । अस्मभ्यम् । मघवद्भ्यश्च=मघं ज्ञानविज्ञानलक्षणं सम्पत्तिलक्षणञ्च धनमस्त्येषामिति । मघवद्भ्यः=विज्ञानिभ्यः श्रेष्ठेभ्यश्च । सप्रथः=सर्वतः । पृथु विस्तीर्णम् । अदाभ्यम्=केनाप्यहिंस्यम् । ईदृशं छर्दिर्गृहम् । यन्तम्=नियच्छतं दत्तम् ॥१२ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब निवास के लिये गृहादि की प्रार्थना करना कथन करते हैं।
पदार्थ
(वाजिनीवसू) हे बल से रत्नोत्पादक ! (अस्मभ्यम्, मघवद्भ्यः, च) मुझ विद्वान् तथा धनवान् के लिये (सप्रथः) सुप्रसिद्ध (अदाभ्यम्) बाधारहित (छर्दिः) निवासस्थान का (यन्तम्) प्रबन्ध करें ॥१२॥
भावार्थ
हे बल से रत्न उत्पादन करनेवाले ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप धनवान् पुरुषों और हम विद्वानों के लिये उत्तम=सब ऋतुओं में आराम तथा आनन्ददायक और जिसमें मनुष्य तथा पशु नीरोग रह सकें और जो सब उपद्रवों से रहित हो, ऐसे निवासगृह को यन्तं=यत्न कीजिये, यह आपसे हमारी प्रार्थना है ॥१२॥
विषय
प्रजाओं के लिये विस्तीर्ण गृहादि प्रबन्ध भी राजा करे, यह उपदेश इससे देते हैं ।
पदार्थ
(वाजिनीवसू) हे वाणिज्यधन ! हे यागक्रियाधन ! हे बुद्धिधन ! हे अन्नसम्पन्न राजन् और अमात्य ! आप दोनों (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (च) तथा (मघवद्भ्यः) विज्ञानी, ज्ञानी और श्रेष्ठ पुरुषों के लिये (सप्रथः) सर्वतः विस्तीर्ण (अदाभ्यम्) और अहिंसनीय सुदृढ़ (छर्दिः) गृह का (यन्तम्) प्रबन्ध करें ॥१२ ॥
भावार्थ
वाणिज्य, सुमति, यागक्रिया, बुद्धि आदि का नाम वाजिनी है । जिनके यही वाजिनी धन है, वे वाजिनीवसु । धनिक पुरुष का नाम वेद में मघवा या मघवान् आता है । राजा को उचित है कि अकिञ्चन और धनिक दोनों के लिये निवासस्थान का प्रबन्ध करें ॥१२ ॥
विषय
उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( वाजिनी वसू ) अन्न, ऐश्वर्य बल आदि उत्पन्न करने वाली क्रिया सेना आदि को धनवत् पालन करने वाले वीर विद्वान् स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( अस्मभ्यम् ) हमारे और ( मघवद्भ्यश्च ) उत्तम धनसम्पन्न पुरुषों के उपकार के लिये ( अदाभ्यम् छर्दिः ) न नाश होने योग्य, सुखप्रद गृह प्रदान करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
अदाभ्यं छर्दिः
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! आप (वाजिनीवसू) = शक्तिरूप धनवाले हो आप (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (मघवद्भ्यः च) = और सब [मघ-मख] यज्ञशील पुरुषों के लिये (सप्रथः) = शक्तियों के विस्तारवाले, शक्तियों के विस्तार से युक्त (अदाभ्यम्) = रोगों व वासनाओं से हिंसित न होनेवाले इस (छर्दिः) = शरीर गृह को (यन्तम्) = प्राप्त कराओ। [२] प्राणसाधना से शरीर की शक्तियों का विस्तार होता है, और यह रोगों व वासनाओं से आक्रान्त नहीं होता।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान ही शक्तिरूप धन को प्राप्त करानेवाले हैं। ये यज्ञशील पुरुषों के शरीर गृह को रोगों व वासनाओं से अभिभूत नहीं होने देते।
इंग्लिश (1)
Meaning
And, O harbingers of wealth, victory and progress, bring for us and for the leading lights of power, honour and excellence spacious and peaceful homes free from fear and pressure.
मराठी (1)
भावार्थ
हे बलाने रत्न उत्पन्न करणारे ज्ञानयोगी व कर्मयोगी तुम्ही धनवान पुरुषांसाठी व आम्हा विद्वानासाठी उत्तम = सर्व ऋतुमध्ये आरामदायक व आनंददायक, ज्यात माणसे व पशू निरोगी राहू शकतील तसेच जे उपद्रवरहित असेल अशा निवासगृहासाठी प्रयत्न करावा ही तुम्हाला प्रार्थना आहे. ॥१२॥
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