ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 27
ए॒ताव॑द्वां वृषण्वसू॒ अतो॑ वा॒ भूयो॑ अश्विना । गृ॒णन्त॑: सु॒म्नमी॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठएताव॑त् । वा॒म् । वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू । अतः॑ । वा॒ । भूयः॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । गृ॒णन्तः॑ । सु॒म्नम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतावद्वां वृषण्वसू अतो वा भूयो अश्विना । गृणन्त: सुम्नमीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठएतावत् । वाम् । वृषण्वसू इति वृषण्ऽवसू । अतः । वा । भूयः । अश्विना । गृणन्तः । सुम्नम् । ईमहे ॥ ८.५.२७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 27
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(वृषण्वसू) हे वर्षुकधनौ (अश्विना) व्यापकौ ! (एतावत्) एतादृशम् (अतः, भूयः, वा) अतोऽधिकं वा (सुम्नम्) सुखकरम् (वाम्) युवाम् (गृणन्तः) स्तुवन्तः (ईमहे) याचामः ॥२७॥
विषयः
राजकर्त्तव्यतामाह ।
पदार्थः
हे वृषण्वसू=वसुवर्षितारौ परमोदारौ । हे अश्विना=अश्विनौ राजानौ । वयं गृणन्तः=स्तुतिं कुर्वन्तः । एतावद्धनम्=गोप्रभृतिदृश्यमानं धनम् । वा=अपि वा । अतोऽस्मादपि भूयोऽधिकतरम् सुम्नम्=सुखम् । वाम्=युवाम् । ईमहे=याचामहे ॥२७ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वृषण्वसू) हे वर्षणशील धनवाले (अश्विना) व्यापक ! (एतावत्) इतनी (अतः, भूयः, वा) अथवा इससे भी अधिक (सुम्नम्) सुख की राशि (वाम्) आपकी (गृणन्तः) स्तुति करते हुए हम (ईमहे) याचना करते हैं ॥२७॥
भावार्थ
हे सुखराशि तथा सुख के देनेवाले ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! हम लोग आपकी सब प्रकार से अधिकाधिक स्तुति करते हुए आपसे वारंवार याचना करते हैं कि कृपा करके सब प्रकार के कष्टों से बचाकर हमको सुख प्रदान करें ॥२७॥
विषय
राजा की कर्तव्यता कहते हैं ।
पदार्थ
(वृषण्वसू) हे धनवर्षिता परमोदार राजा और कर्मचारिवर्ग ! (गृणन्तः) परमात्मा की स्तुति करते हुए हम सब (एतावत्) इतना दृश्यमान गवादि पशुओं को (वा) अथवा (अतः) इससे भी (भूयः) अधिक (सुम्नम्) सुख को (वाम्) आप लोगों से (ईमहे) चाहते हैं, सो दीजिये ॥२७ ॥
भावार्थ
लौकिक और पारलौकिक दोनों धनों की वृद्धि के लिये राजा प्रयत्न करे ॥२७ ॥
विषय
उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (वृषण-वसू) बलवान् शासकों को राष्ट्र में बसाने वाले वा उनको अपना धन समझने वाले प्रधान पुरुषो ! ( गृणन्तः ) आप दोनों के प्रति उपदेश करते हुए हम प्रजाजन ( वाम् ) आप दोनों के ( एतावत् ) इतना ( सुम्नम् ) सुखकारी ऐश्वर्य वा ( अतो वा भूयः ) इससे भी अधिक की ( ईमहे ) याचना करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
सुम्नम्
पदार्थ
[१] हे (वृषण्वसू) = शक्ति सेचक धनोंवाले (अश्विना) = प्राणापानो! (वाम्) = आप से (एतावत्) = इतने (सुम्नम्) = आनन्द व रक्षण को (ईमहे) = माँगते हैं। गत मन्त्र के अनुसार हम यही चाहते हैं कि आप से रक्षित होकर हम 'अंशु अगस्त्य व सोभरि' बन पायें। [२] हे प्राणापानो! (गृणन्तः) = स्तुति-वचनों का उच्चारण करते हुए हम (अतः भूयः वा) = इस से भी अधिक आनन्द व रक्षण की कामना करते हैं। आप से रक्षित होकर हम प्रभु को ही प्राप्त करनेवाले बन पायें।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्राणापानो! आप हमारे जीवनों में वसुओं का वर्षण करते हो। आप से हम उचित रक्षण व आनन्द की याचना करते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
O virile and generous harbingers of wealth and power, Ashvins, thus do we so far and even more, celebrating your glory, pray for your favour and good will.
मराठी (1)
भावार्थ
हे सुखाच्या राशी व सुख देणारे ज्ञानयोगी व कर्मयोगी आम्ही तुमची सर्व प्रकारे अधिकाधिक स्तुती करत वारंवार याचना करतो, की कृपा करून सर्व प्रकारच्या कष्टापासून वाचवून आम्हाला सुख द्या. ॥२७॥
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