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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 16
    ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पु॒रु॒त्रा चि॒द्धि वां॑ नरा वि॒ह्वय॑न्ते मनी॒षिण॑: । वा॒घद्भि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रु॒ऽत्रा । चि॒त् । हि । वा॒म् । न॒रा॒ । वि॒ऽह्वय॑न्ते । म॒नी॒षिणः॑ । वा॒घत्ऽभिः॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । आ । ग॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरुत्रा चिद्धि वां नरा विह्वयन्ते मनीषिण: । वाघद्भिरश्विना गतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरुऽत्रा । चित् । हि । वाम् । नरा । विऽह्वयन्ते । मनीषिणः । वाघत्ऽभिः । अश्विना । आ । गतम् ॥ ८.५.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 16
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (नरा) हे नेतारौ ! (वाम्) युवां (मनीषिणः) विद्वांसः (पुरुत्रा, चित्, हि) बहुषु स्थलेषु (विह्वयन्ते) आह्वयन्ति तथापि (अश्विना) हे व्यापकौ ! (वाघद्भिः) शीघ्रगामिवाहनैः (आगतं) अस्मान्नेव आगच्छतम् ॥१६॥

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    विषयः

    उपयोग्युद्योगी च राजा प्रजाप्रियो भवति ।

    पदार्थः

    हे नरा=नरौ=सर्वेषां मनुष्याणां नेतारौ । हे अश्विना=हे अश्विनौ=अश्वादिबलयुक्तौ=राजसभाध्यक्षौ । मनीषिणः= मनसो चित्तस्येषिण ईशितारो जितेन्द्रिया बुद्धिमन्तो मनस्विनः पुरुषाः । वाम्=युवाम् । पुरुत्रा चिद्धि=बहुषु प्रदेशेषु । विह्वयन्ते=विविधमाह्वयन्ति । तस्मात् कारणात् । वाघद्भिः=मेधाविभिः सह । आगतमागच्छतं सर्वत्र ॥१६ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (नरा) हे नेताओ ! यद्यपि (वाम्) आपको (मनीषिणः) विद्वान् लोग (पुरुत्रा, चित्, हि) अनेक स्थानों में (विह्वयन्ते) आह्वान करते हैं तथापि (अश्विना) हे व्यापक ! आप (वाघद्भिः) शीघ्रगामी वाहनों द्वारा (आगतं) आवें ॥१६॥

    भावार्थ

    हे ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप अनेक स्थानों में निमन्त्रित होने पर भी कृपा करके शीघ्रगामी यान द्वारा हमारे यज्ञ को सुशोभित करें ॥१६॥

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    विषय

    उपयोगी और उद्योगी राजा प्रजाओं का प्रिय होता है, यह दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (नरा) हे सर्वनेता (अश्विना) हे अश्वादि बलयुक्त राजन् और सभाध्यक्ष ! (मनीषिणः) मनीषी अर्थात् जितेन्द्रिय बुद्धिमान् मनस्वी आदि पुरुष (वाम्) आप दोनों को (पुरुत्रा+चित्+हि) बहुत प्रदेशों में (विह्वयन्ते) विविध प्रकार से या विशेषरूप से बुलाते हैं, अतः आप (वाघद्भिः) अच्छे-२ विद्वानों के साथ सब लोगों के यज्ञों में (आगतम्) आया करें ॥१६ ॥

    भावार्थ

    विद्वान् और ऋत्विक् का नाम वाघत् है । राजवर्ग जहाँ जाएँ, वहाँ उनके साथ परम बुद्धिमान् जन और धार्मिक पुरोहित अवश्य रहें, ताकि सदसद्विवेक के साथ प्रजाओं के सब विषय निर्णीत होवें ॥१६ ॥

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    विषय

    उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( नरौ ) नायक जनो ! अमात्य राजा वा स्त्री पुरुषो ! ( मनीषिणः ) मनस्वी ज्ञानी लोग ( वां ) आप दोनों को ( पुरुत्र चित् हि ) बहुत से कार्यों में ( वि-ह्वयते ) विशेष रूप से आदर पूर्वक बुलावें । आप दोनों ( वाघद्भिः ) भार वहन करने में समर्थ अश्वों के समान क्षमतायुक्त विद्वान् पुरुषों सहित (आ गतम्) आओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    विह्वयन्ते मनीषिणः

    पदार्थ

    हे (नरौ) = स्त्री-पुरुषो! (मनीषिणः) = ज्ञानी लोगों (वाम्) = आप दोनों को (पुरुत्र चित् हि) = बहुत से कार्यों में (विह्वयन्ते) = बुलाते हैं। आप (वाघद्भिः) = समर्थ (अश्विना) = अश्वों के समान (आ गतम्) = आओ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम मनस्वी बनकर ज्ञानी जनों की संगति में रहें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Learned men, thinkers and leading lights of humanity all over the world invoke and invite you many times in many ways. Ashvins, pray come by supersonic transports at the earliest.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे ज्ञानयोगी व कर्मयोगी! तुम्ही अनेक स्थानी नियंत्रित असूनही तात्काळ गमन करणाऱ्या यानाद्वारे येऊन आमच्या यज्ञाला कृपया सुशोभित करा. ॥१६॥

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