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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 22
    ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    क॒दा वां॑ तौ॒ग्र्यो वि॑धत्समु॒द्रे ज॑हि॒तो न॑रा । यद्वां॒ रथो॒ विभि॒ष्पता॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒दा । वा॒म् । तौ॒ग्र्यः । वि॒ध॒त् । स॒मु॒द्रे । ज॒हि॒तः । न॒रा॒ । यत् । वा॒म् । रथः॑ । विऽभिः॑ । पता॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदा वां तौग्र्यो विधत्समुद्रे जहितो नरा । यद्वां रथो विभिष्पतात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कदा । वाम् । तौग्र्यः । विधत् । समुद्रे । जहितः । नरा । यत् । वाम् । रथः । विऽभिः । पतात् ॥ ८.५.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 22
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ तयोर्यानमहत्त्वं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (नरा) हे नेतारौ ! (यत्) यदा (वाम्) युवयोः (रथः) यानम् (विभिः) शीघ्रतरगामिशक्तिभिर्युक्तः सन् (पतात्) उत्पतेत् तदा (वाम्) युवयोः (समुद्रे) जलधौ (जहितः) कृतनिवासः (तौग्र्यः) जलपदार्थः (कदा) कदापि (विधत्) किं कुर्यात्, कदापि न ॥२२॥

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    विषयः

    राजा समुद्रेऽपि नौकादि रक्षेदिति शास्ति ।

    पदार्थः

    हे नरा=सर्वेषां नेतारौ प्रतिनिधी राजानौ । कदा=कस्मिन् काले । तौग्र्यः=तुग्रस्य नाविकस्य पुत्रः । समुद्रे । जहितः=त्यक्तः=प्रक्षिप्तः सन् । वाम्=युवाम् । विधत्=साहाय्यार्थमाह्वयति । यद्=यदा-२ । वाम्=युवयोः । रथः=विमानलक्षणः । विभिः=विविधयन्त्रैर्युक्तः । पतात्=पतति=गच्छति तत्र ॥२२ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी के यान का महत्त्व वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (नरा) हे नेता ! (यत्) जब (वाम्) आपका (रथः) रथ (विभिः) शीघ्रगामी शक्तियों से युक्त होकर (पतात्) उड़ता है, तब (वाम्) आपका (समुद्रे) समुद्र में (जहितः) रहनेवाला (तुग्र्यः) जलीयपदार्थ (कदा) कब (विधत्) कुछ कर सकता अर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता ॥२२॥

    भावार्थ

    हे सब मनुष्यों के नेता ! जब सब शक्तियों से युक्त आपका शीघ्रगामी यान उड़ता है, तब समुद्र में रहनेवाला तुग्र्य=हिंसक जीवविशेष अथवा जल परमाणु आदि आपका कुछ भी नहीं कर सकते अर्थात् आप जल और स्थल में स्वच्छन्दतापूर्वक विचरते हैं, आपके लिये कहीं भी कोई रुकावट नहीं ॥२२॥

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    विषय

    समुद्र में भी नौकादिकों की राजा रक्षा करे, यह दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    राजा और कर्मचारियों से प्रजा जिज्ञासा करती है कि (नरा) हे सर्वनेता सर्वप्रतिनिधि राजन् और मन्त्रिवर्ग ! (कदा) किस-२ समय में (तौग्र्यः) नाविक का पुत्र (समुद्रे) समुद्र में (जहितः) त्यक्त अर्थात् समुद्र में गमन करता हुआ (वाम्) आपको सहायतार्थ (विधत्) बुलाता है (यद्) जब-जब (विभिः) विविध यन्त्रों से युक्त (वाम्+रथः) आपका विमानरूप रथ (पतात्) वहाँ पहुँचता है ॥२२ ॥

    भावार्थ

    वाणिज्य के लिये सामुद्रिक मार्ग को सदा ठीक रखना और जहाजों को विदेशों में भेजना भिजवाना भी राजकर्त्तव्य है ॥२२ ॥

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    विषय

    उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    ( तौग्र्यः ) 'तुग्र' अर्थात् शत्रुओं को मारने में समर्थ पुरुषों में कुशल, उनका स्वामी सेनापति । हे ( नरा ) नायक वरो ! ( समुद्रे ) उमड़ते हुए शत्रु सैन्य के बीच ( जहितः ) आकर ( वां ) तुम दोनों की ( कदा ) कब ( विधत् ) सेवा करे ? [ उत्तर ] ( यत् ) जब ( वां ) तुम दोनों का ( रथः ) रथ सैन्य ( विभिः ) वेगवान् अश्वों से ( पतात् ) प्रयाण करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    तौग्र्य का रक्षण

    पदार्थ

    [१] हे (नरा) = उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राणापानो! समुद्रे जहितः = [कामोहि समुद्रः] वासना के समुद्र में फेंका हुआ यह तौग्र्यः - [तुग्र्या - water, आप:- रेतः] रेतःकणरूप जलों की रक्षा की कामनावाला पुरुष कदा-कब वां विधत्-आपकी उपासना करता है? यत्-जिससे वां रथः- आपका यह शरीर रथ विभिः = इन्द्रियाश्वों के साथ पतात् प्राप्त हो। [२] हम अपने शरीर को प्राणापान का ही रथ बनायें। अर्थात् प्राणसाधना में प्रवृत्त हों। इससे इन्द्रियों के दोषों का दहन होकर इन्द्रियाश्व बड़े शक्तिशाली व स्फूर्तिमय बनेंगे। प्राणापान की साधना ही कामसमुद्र में डूबने से बचाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना ही इन्द्रियों को निर्दोष बनाती है और हमें वासना - समुद्र में डूबने नहीं देती।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O leading lights of life, some day the powers jettisoned or installed on the sea would glorify you when your chariot flying by wings would rescue them or take off from there.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सर्व माणसांच्या नेत्यानो! जेव्हा सर्व शक्तीनी युक्त तुमचे शीघ्रगामी यान उडते तेव्हा समुद्रात राहणारा तुग्रय=हिंसक जीव विशेष किंवा जल परमाणू इत्यादी तुमचे काहीही करू शकत नाही. अर्थात् तुम्ही जल स्थलात स्वच्छंदतापूर्वक विहार करता. तुमच्यासाठी कुठेही अडथळा नाही. ॥२२॥

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