ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 29
ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
हि॒र॒ण्ययी॑ वां॒ रभि॑री॒षा अक्षो॑ हिर॒ण्यय॑: । उ॒भा च॒क्रा हि॑र॒ण्यया॑ ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒र॒ण्ययी॑म् । वा॒म् । रभिः॑ । ई॒षा । अक्षः॑ । हि॒र॒ण्ययः॑ । उ॒भा । च॒क्रा । हि॒र॒ण्यया॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
हिरण्ययी वां रभिरीषा अक्षो हिरण्यय: । उभा चक्रा हिरण्यया ॥
स्वर रहित पद पाठहिरण्ययीम् । वाम् । रभिः । ईषा । अक्षः । हिरण्ययः । उभा । चक्रा । हिरण्यया ॥ ८.५.२९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 29
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(वाम्) युवयोः (रभिः, ईषा) आधारदण्डः (हिरण्ययी) हिरण्मयः (अक्षः, हिरण्ययः) अक्षश्च हिरण्मयः (उभा, चक्रा) उभौ चक्रौ (हिरण्यया) हिरण्मयौ स्तः ॥२९॥
विषयः
राजायोजनमाह ।
पदार्थः
हे राजानौ । वाम्=युवयो रथस्य । रभिः=आलम्बनभूता । ईषा । हिरण्ययी=हिरण्यमयी सुवर्णविकारा भवेत् । अक्षोऽपि । हिरण्ययः=हिरण्यनिर्मितः स्यात् । पुनः । उभा=उभौ । चक्रा=चक्रौ अपि । हिरण्यया=कनकनिर्मितौ स्याताम् ॥२९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वाम्) आपके रथ का (रभिः, ईषा) आधारदण्ड (हिरण्ययी) हिरण्मय है (अक्षः, हिरण्ययः) अक्ष हिरण्मय है (उभा, चक्रा) दोनों चक्र (हिरण्यया) हिरण्मय हैं ॥२९॥
भावार्थ
हे ऐश्वर्य्यशालिन् ! आपके रथ=यान का आधारदण्ड=धुरा सुवर्णमय, अक्ष=अग्रभाग सुवर्णमय और दोनों चक्र=पहिये सुवर्णमय हैं अर्थात् आपका सम्पूर्ण यान सुवर्ण का है ॥२९॥
विषय
राजा के आयोजन कहते हैं ।
पदार्थ
हे राजन् तथा अमात्यादिवर्ग ! (वाम्) आप दोनों के रथ की (रभिः) आलम्बन देनेवाली (ईषा) ईषा (हिरण्ययी) सुवर्णनिर्मित हो (अक्षः) अक्ष भी (हिरण्ययः) सुवर्णमय हो और (उभा) दोनों (चक्रा) चक्र=पहिये (हिरण्यया) सुवर्णरचित हों ॥२९ ॥
भावार्थ
प्रजाओं से नियुक्त राजा शोभन रथ आदि आयोजन पाने योग्य है ॥२९ ॥
विषय
उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे विद्वान् शिल्पी जनो ! ( वां ) तुम दोनों के ( इषा: ) रथ के अग्र दण्ड ( रभिः ) दृढ़ और ( हिरण्ययी ) सुवर्णादि उत्तम धातु के बने हों और ( अक्षः हिरण्ययः ) अक्ष भी लोह के दृढ़ बने हों। (उभा) दोनों ( चक्रा ) चक्र भी ( हिरण्यया ) लोह से बने, दृढ़ हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
हिरण्यय रथ
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! (वाम्) = आपका (ईषा) = रथ का दण्ड (रभिः) = दृढ़ वा (हिरण्ययी) = तेजस्विता से दीप्त है। इस शरीर में हाथ ही ईषा स्थानापन्न हैं, ये दृढ़ व तेजो दीप्त हैं। आपके रथ का (अक्ष:) = [ axle ] धुरा भी (हिरण्ययः) = तेजो दीप्त है, रीढ़ की हड्डी पृष्ठवंश ही अक्ष है। वह पूर्ण स्वस्थ है। [२] इस रथ के (उभा चक्रा) = दोनों चक्र (हिरण्यया) = स्वर्ण के समान चमकते हुए हैं। स्थूल शरीर [अन्नमयकोश] एक चक्र है, तो मस्तिष्क (विज्ञानमयकोश) दूसरा चक्र है । ये दोनों ही शक्ति व ज्योति से चमक रहे हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना के होने पर इस शरीर रथ की 'ईषा, अक्ष व दोनों चक्र' हिरण्यय, दीप्त होते हैं। सारा रथ ही चमक उठता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O travellers of the skies, golden is the chassis of your chariot, golden the axle, and both the wheels are golden too.
मराठी (1)
भावार्थ
हे ऐश्वर्यसंपन्न! तुमचे रथ (वाहन) = यानाचा आधारदंड = धुरा = सुवर्णमय, अक्ष = अग्रभाग सुवर्णमय व दोन्ही चक्र = चाके सुवर्णमय आहेत अर्थात तुमचे संपूर्ण यान सुवर्णमय आहे. ॥२९॥
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